कन्फ्यूज़ बनाम काबिल लीडरशिप

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कोरोना से निपटने में मोदी सरकार के सख्त कदमों की दुनिया भर में तारीफ हो रही है। वक्त पर किया गया लॉकडाउन और दूसरे देशों को मदद का हाथ, हर मोर्चे पर मोदी खुद डटे रहे। WHO से लेकर जापान, रूस, अमेरिका तक भारत के प्रयासों की सराहना कर रहे हैं। चीन वैक्सीन देने की बात करता रहा और उधर भारत ने करोड़ों वैक्सीन, गिफ्ट के तौर पर या किफायती दामों पर दुनिया भर के देशों में पहुंचा दी। भारत की “वैक्सीन डिप्लोमेसी” से चीन समेत दुनिया हैरान है। देश में कोरोना टीकाकरण की रफ्तार भी देखते ही बनती है, करीब 22 करोड़ के टेस्ट हो चुके हैं और 1 करोड़ 35 लाख लोगों को टीके लगाए जा चुके हैं।

जमीन पर स्वास्थय संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी अमला खूब मेहनत कर रहा है। पर फिर भी कुछ प्रांतों में कोरोना के मरीजों की संख्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही चली जा रही है। वहीं कुछ दूसरे राज्यों ने कोरोना पर मजबूत पकड़ बना रखी है। वो हर संभव प्रयास कर रहे हैं और कोरोना की दूसरी लहर को बढ़ने देने से रोका जाए।

आज हम ऐसे ही दो राज्यों और उनके नेताओं की तुलना करेंगें। यानी महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश। बॉलीवुड के सितारे चाहे जो भी कहते रहे पर आंकड़े बताते हैं कि महाराष्ट्र की हालात उद्धव ठाकरे के कंट्रोल से बाहर होती जा रही है। वहीं उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की कोशिशों ने रंग दिखाया है और कोरोना काफी हद तक कंट्रोल में है। आगे बढ़ने से पहले दोनों राज्यों में कोरोना की स्थिती पर एक नजर डाल लेते हैं। महाराष्ट्र में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। 25 फरवरी तक महाराष्ट्र में कुल 21,29,821मामले दर्ज किए गए थे। वहीं उत्तर प्रदेश में महाराष्ट्र से करीब साढ़े तीन गुना कम 6,03,232 कोरोना केस ही दर्ज किए गए। देश की सबसे बड़ी आबादी वाला उत्तर प्रदेश, कोरोना रोगियों के मामले में पहले पांच राज्यों में भी शामिल नही है। कोरोना मामलों में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी उत्तर प्रदेश से आगे खड़ी नजर आती है।

कोरोना वायरस से युद्ध में उद्धव ठाकरे और योगी आदित्यनाथ की लीडरशिप के अलावा शासन, प्रशासन और अनुशासन की परीक्षा होनी थी। इसको जानने के लिए आइये एक एक करके देखते हैं कि किस मुख्यमंत्री को कौन सा प्रदेश कैसी स्थिती में मिला। साथ ही किस व्यूरोक्रेसी, सरकारी हेल्थ स्टाफ और पुलिस के दम पर उन्हें कोरोना से लड़ना था। आम आदमी और गरीबों की स्थिती इन प्रदेशों में कैसी है। प्रदेशों के पास कितने संसाधन हैं। और इन सबसे ऊपर अपनी लीडरशिप के दम पर दोनों मुख्यमंत्रियों ने क्या रिज्लट प्राप्त किए।

सबसे पहले बात उत्तर प्रदेश की। पाकिस्तान से भी ज्यादा, 23 करोड़ की आबादी के घर उत्तर प्रदेश का अनुशासन से थोड़ा कम ही वास्ता रहा है। यहां के बाशिंदे लाइनों में खड़ा होना अपनी तौहीन समझते हैं। परले दर्जे के गैर जिम्मेदारों में उनकी गिनती होती रही है। अनुशासन का मामला इतना संगीन है कि अगर उत्तर प्रदेश  का कोई आदमी मुंबई शहर पहुंच जाए तो यह जानकर हैरान रह जाता है कि टैक्सी के लिए लाइन लगती है। यूपी पुलिस का नाम देश के सबसे निकम्मे पुलिस बलों में सदैव से रहा है। महिलाओं, दलितों से ज्यादती और भयंकर जातिप्रथा की गिरफ्त में भी रहता है यह प्रदेश। हेल्थ सेंटर के नाम पर बदबूदार सीलन भरे कुछ कमरे भर होते हैं। और जहां तक बात ब्यूरोक्रेसी की है, तो इसे देश के सबसे भ्रष्ट अफसरान पैदा करने की मशीन माना जाता है।

अब बात उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र की। अपने अनुभव से कोई भी दावे से यह बता सकता है कि महाराष्ट्रियन्स में जबर्दस्त अनुशासन होता है। और यह हर जगह दिखता है। बसों, टैक्सी की लाइनों में ट्रैफिक में, रोजमर्रा की खरीद फरोख्त में, अनुशासन लोगों के व्यवहार का हिस्सा है। कम्युनिकेशन, हेल्थ फैसिलिटी, मोबिलिटी के मामलों में भी महाराष्ट्र अव्वल नंबर पर है। देश का बिजनेस हब होने के नाते प्रति व्यक्ति आय भी अच्छी खासी है। देश के सबसे अनुशासित पुलिस बलों में से एक महाराष्ट्र का है। क्राइम रेट और महिलाओं के साथ ज्यादती की दर भी महाराष्ट्र में देश की औसत के मुकाबले कम है। महाराष्ट्र की ब्यूरोक्रेसी भी सबसे कम भ्रष्ट और काम करने वाली मानी जाती है। और सबसे महत्वपूर्ण बात महाराष्ट्र की आबादी भी उत्तर प्रदेश के मुकाबले आधी से थोड़ा ही अधिक है। 

योगी ने उत्तर प्रदेश के लिजलिजे सिस्टम के दम पर कोरोना को रोक रखा है। यह योगी आदित्यनाथ की ही लीडरशिप का नतीजा है कि आज यूपी की हालात कोरोना रोगियों के मामले में अपने आसपास के राज्यों से कहीं बेहतर है। महाराष्ट्र से तो वह कोसों आगे है। सख्त लॉकडाउन, हॉटस्पॉट की तुरंत पहचान एवं सीलींग, डोर स्टेप डिलिवरी, गरीबों को भोजन की व्यवस्था, श्रमिकों की जरूरतों का ध्यान, जनता से बेहतर कम्युनिकेशन, स्वास्थ्यकर्मियों से दुर्रव्यवहार के मामले में तुरंत कार्यवाही, समस्या बढ़ने से पहले संसाधन खड़ा करने के उपाय, ब्यूरोक्रेसी को शाबासी के साथ दंड की भी व्यवस्था, पुलिस का मनोबल बढ़ाने के उपाय आदि ऐसे अनेकों प्रोएक्टिव अप्रोच योगी ने अपनाई। प्रशासन के पेंच कुछ इस तरह से योगी ने कसे कि आज पूरा उत्तर प्रदेश एक रोबोटिक मशीन की तरह डिलीवर कर रहा है। पुलिस का मनोबल तो बढ़ा ही है साथ ही उसकी छवि भी सुधरी है। जनता में भी प्रशासन को लेकर प्रशंसा का भाव जागृत हुआ है। लोग सहयोग कर रहे हैं। इतने कम संसाधनों वाले प्रदेश में इतना बेहतरीन रिजल्ट काबिल लीडरशिप के दम पर ही पाया जा सकता था। योगी इस पर 16 आने खरे उतरे हैं।

योगी आदित्यनाथ की काबिल लीडरशिप तो छोड़िए, उद्धव ठाकरे में अगर औसत लीडरशिप क्वालिटी भी होती तो देश के सबसे संपन्न, हेल्थ पैरामीटर्स में अव्वल और अनुशासित राज्य में कोरोना को अब तक पछाड़ चुके होते। पर हुआ क्या, महाराष्ट्र आज कोरोना मामलों में अव्वल नंबर पर है। देश के आधे से ज्यादा मामले महाराष्ट्र से सामने आ रहे हैं। कोरोना से मरने वालों की तादाद में  महाराष्ट्र अव्वल है। स्वास्थ्य सिस्टम की पोल खोलने के लिए यह बताना काफी है कि देश में सबसे अधिक डेथ रेशियो यानी मृत्यु दर भी महाराष्ट्र में ही है। स्वास्थ्यकर्मी जरूर जीजान से  लगें हैं। पर उनके प्रयास तब नाकाफी हो जाते हैं जब उनकी क्षमता से अधिक मरीज पहुंच जाते हैं। शिवसेना, कांग्रेस और NCP सरकार तीन कोणों में बंटी है। उसके निर्णयों में कंफ्यूशन साफ दिखाई देता है। सरकार की तरफ से ना तो ब्यूरोक्रेसी को कोई क्लियर मैसेज है ना ही पुलिस को। इसी कंफ्यूशन का फायदा पुलिस और ब्यूरोक्रेसी में बैठे कुछ नाकारा अफसर उठा रहे हैं। जो शिवसेना सिर्फ अपने दम पर मुंबई में पूर्ण बंद करा लेती थी। वो सरकारी कुर्सी पर बैठ कर जगह जगह भीड़ को इकट्ठा होने से रोक भी नही पा रही। उसके मंत्री और सरकारी अमले को इस बात की चिंता खाए जा रही है कि अमिताभ बच्चन ने पेट्रोल की कीमतों को लेकर ट्वीट क्यों नही किया।

मदर ऑफ मॉर्डन मैनेजमेंट यानी आधुनिक मैनेजमेंट की मां कहलाने वाली मेरी पार्कर फोलेट ने एक बार कहा था कि “दूसरे लोगों से काम कराने की कला को ही मैनेजमेंट कहते हैं”। योगी आदित्यनाथ ने मैनेजमेंट की इस कला को साध लिया है। वहीं उद्धव ठाकरे इस मैनेजमेंट में पूरी तरह फेल रहे हैं। उन्हें समझना होगा कि मात्र मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने से कोई लीडर नही बन जाता। पद के कारण पदाधिकारी पैदा होता है लीडर नहीं। लीडर पैदा नही होता लीडर बनता है। अपने नेतृत्व से अपने कामों से।

लेख- संजय पाण्डेय की कलम से