बेकाबू सोशल मीडिया पर लगाम की सरकारी कोशिशें

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अभिव्यक्ति या बोलने की आजादी, जैसी आज हासिल है वैसी मानव इतिहास में कभी नही रही। पिछले कुछ दशकों में सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी का अभूतपूर्व अहसास आमजन को कराया है। सकारात्मक बदलाव के अहम औजार के तौर पर सोशल मीडिया का उपयोग आपेक्षित है, पर अफसोस, सोशल मीडिय का इस्तेमाल आज एक हथियार के तौर पर अधिक किया जा रहा है। एक ऐसा ताकतवर हथियार जिसके एक वार से सामाजिक ताना-बाना बिगाड़ सकता है। खुलेआम झूठ परोसा जा सकता है। आस्थाओं के साथ खेला जा सकता है। और तो और आज सोशल मीडिया सड़कों पर मॉब लिंचिंग का कारण भी बन रहा है।  

सरकारों की नींद उड़ाने वाला यह सोशल मीडिया कितना ताकतवर है इसका अंदाजा इसे इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद से चलता है। भारत की बात करें तो आज 115 करोड़ मोबाइल कनेक्शन में से करीब 72 करोड़ ब्राडबैंड यानी इंटरनेट से जुड़े हैं। 53 करोड़ व्हाट्सऐप मैसेज कर रहे हैं तो 45 करोड़ यू-ट्यूब पर वीडियो देख रहे हैं, 41 करोड़ फेसबुक व 21 करोड़ इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर रहे हैं वहीं राजनीतिक तौर पर सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले ट्वीटर पर मात्र 1.7 करोड़ लोग ही हैं। पर यहां समस्या बड़ी तादाद में सोशल मीडिया का इस्तेमाल नही है बल्कि समस्या फेक न्यूज और फेक न्यूज फैलाने वाले तंत्र और सोशल मीडिया कंपनियों की मनमानी को लेकर है।

आइये सबसे पहले फेक न्यूज फैलाने वाले तंत्र को समझें। एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ भारत में सोशल मीडिया पर करीब 10 करोड़ फेक एकाउंट एक्टिव हैं। जो नकली पहचान बना कर काम करते हैं। मतलब यह कि आप जिसे लड़की समझ कर चैट कर रहे है बहुत मुमकिन है कि वो कोई पुरूष हो। या फिर जिसे आप किसी खास धर्म का समझ कर अपनी फीलिंग साझा कर रहे हैं वो उस धर्म का हो ही नही। फेक न्यूज फैलाने में इन्हीं फेक एकाउंट हैं का इस्तेमाल किया जाता है। प्रचंड ध्रुविकरण के इस दौर में राजनीतिक और व्यक्तिगत अटैक को ही डिफेंस माना जाने लगा है। फेक न्यूज फैलाने के लिए ऐसा माहौल खाद का काम करता है। राजनीति एजेंडे को आगे बढ़ाने के चक्कर में जाने अनजाने लोग फेक न्यूज के जाल में उलझ जाते हैं। माइक्रोसॉफ्ट की स्टडी के मुताबिक भारत में 60 प्रतिशत सोशल मीडिया यूजर्स फेक न्यूज से रूबरू होते हैं।

सोशल नेटवर्क के माध्यम से लोग एक दूसरे से जानकारी साझा कर एक नई वर्चुअल बौद्धिक दुनिया का निर्माण करते हैं। जिसमें सत्ता के विरोध का मसाला तो होता ही है, सामाजिक और आर्थिक बदलावों के आइडिया भी होते हैं। पर पेंच भी यहीं पर है, जो जानकारी या तथ्य साझा किए जा रहे हैं अगर उसपर नियंत्रण प्राप्त कर लिया जाए तो पूरे नैरिटिव पर कब्जा संभव है। हैरानी की बात यह है कि नैरेटिव बुनियादी मुद्दो से जुड़ा है या नही इससे कोई फर्क नही पड़ता।

दो देशों के बीच 5 वीं पीढ़ी के युद्धों या शीत युद्धों में सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। नैरिटिव पर कब्जे को लेकर मोर्चे बांधे जा रहे हैं। लड़ाई अब सीमाओं की बजाए आपके घरों में सिमट आई है। अमेरिका के हालिया चुनावों ने हमें दिखाया है कि राजनीतिक तख्तापलट के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किस हद तक किया जा सकता है। 

सोशल मीडिया के दुरउपयोग की लंबे समय तक अनदेखी नही की जा सकती। उधर सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद सोशल मीडिया पर लगाम नहीं लग पा रही है। इसके लिये भारत सरकार ने साइबर सुरक्षा नीति और सूचना तकनीक कानून भी बनाया गया था लेकिन, इस कानून के क्रियान्वयन में दिक्कत आने की वज़ह से सोशल मीडिया पर अफवाहों को रोकने में कामयाबी नहीं मिल पाई। सरकार अब नए इनफॉरमेसन टेक्नोलॉजी रूल्स लेकर आई है। 

इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (गाइडेंस फॉर इंटरमीडियरीज एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स, 2021, के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को अथॉरिटी के आदेश पर 72 घंटों के भीतर जांच शुरू करनी होगी। अथॉरिटी के आदेश के ज्यादा से ज्यादा 36 घंटों के भीतर सोशल प्लेटफॉर्म को वो आपत्तिजनक कॉन्टेंट हटाना होगा। नए रूल्स के मुताबिक, शिकायत मिलने के 24 घंटों के भीतर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सेक्सुअल एक्ट या कंडक्ट वाले कॉन्टेंट को हटाना होगा।

नए नियम के तहत कोई भी यूजर्स ऐसी कोई जानकारी होस्ट, डिस्प्ले, अपलोड, मॉडिफाई, पब्लिश, ट्रांसमिट, स्टोर, अपडेट या शेयर नहीं कर सकता जो गलत या फर्जी हो। यूजर सोशल मीडिया पर ऐसे कॉन्टेंट पोस्ट नहीं कर सकते जिसेसे देश की एकता, अखंडता, सुरक्षा, संप्रभुता और दूसरे देशों के साथ भारत के मैत्री संबंधों पर खतरा पैदा हो। नए नियमों के लागू होने के बाद भारत का शुमार उन देशों में हो गया है जो फेसबुक, ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनियों का रेगुलेट कर रहा है।

सोशल मीडिया पर काबू पाने के सरकारी प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए। पर यह दुधारी तलवार की तरह है सरकार सोशल मीडिया की मनमानी पर लगाम लगाना चाहती है पर सरकार पर लगाम कौन लगाएगा, कहीं सरकारें सोशल मीडिया पर अपना शिंकजा कस कर नैरेटिव पर कब्जे का प्रयास तो नही करने लगेंगी। सच बोलने वालों की या सत्ता का विरोध करने वालों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या होगा। नए कानूनों की आड़ में सरकारों को अपने अधिकारों का दुरउयोग करने से बचना होगा। वहीं सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार करने वाले, झूठ परोसने वाले लोगों और विचारों पर अंकुश भी जरूरी है।

लेख- संजय पाण्डेय की कलम से