सरकार, सुप्रीम कोर्ट की कमेटी भरोसा ना करने वाले किसान नेता अब कमेटीयां बनाकर इज्जत बचा रहे ?

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कृषि कानूनों को काला बताते हुए पहले भारत सरकार और फिर सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई कमेटियों को धत्ता बताने वाले किसान नेताओं को आजकल महिलाओं का भरोसा जीतने के लिए कमेटियों पर कमेटियां बनाए जा रहे हैं।

टिकरी में गैंगरेप की घटना सामने आई तो बदनामी होती देख, किसान नेताओं ने संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से पूरे मामले की तफ्तीश के लिए मई महीने में प्रख्यात महिला आंदोलनकारी श्रीमति मेधा पाटकर के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया, तब एक बड़े अखबार में दी गई खबर में मेधा पाटकर का बयान लिखा गया कि

“ऐसे में आंदोलन सहित सभी स्थलों पर अगर महिलाओं के सम्मान-सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जा सकी तो आन्दोलन अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। वे किसान मोर्चे से दी गई जिम्मेदारी को बहुत गंभीरता से स्वीकार करती हैं और इस मामले की जांच कराने और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने में जो भी संभव हो सकेगा, वह करेंगी।”

जाहिर है कि कमेटी की सुप्रीमो ने शुरुआत में ही आंदोलन में आए लोगों पर नियंत्रण ना होने की बात “गारंटी नहीं दी जा सकती” वाली बात कहकर किसान नेताओं का बड़ी सफाई से बचाव भी शुरु कर दिया।

आपको बता दें कि 10-11 मई को टिकरी गैंगरेप की जांच के लिए मेधा पाटकर को सर्वेसर्वा बनाकर जो कमेटी बनाई गई थी, उसका कोई फैसला अभी तक तो सुनने में आया नहीं है।

इस कमेटी में मेधा पाटकर के अलावा प्रतिभा शिन्दे, जगमती संगवान, अमरजीत कौर, कविता कृष्णन, ऋतू कौशिक, पूनम कौशिक और ऐनी राजा को सदस्य बनाय गया था, तब दावा किया गया था कि ये कमेटी जल्द ही अपनी रणनीति बनाकर गुनहगारों को सजा दिलवाएगी। लेकिन अभी तक कमेटी ने कुछ ऐसा नहीं किया, जिससे सुर्खियां बन सकें।

संयुक्त किसान मोर्चा की पहली गैंगरेप जांट कमेटी एक महीने में कोई फैसला सुनाया नहीं, लेकिन अब यौन उत्पीड़न की दूसरी खबर जरुर सामने आ गई, तो तुरंत संयुक्त किसान मोर्चा ने एक और महिला कमेटी बना दी।

किसान मोर्चा ने बयान जारी करते हुए एक नंबर भी सार्वजनिक किया 9818119954 और कहा कि किसी भी समस्या के लिए आंदोलन से जुड़ी महिलाएं इस पर फोन कर सहायता मांग सकती हैं।

ऐसे में सवाल उठने लाजमी हैं कि जिस किसान आंदोलन के संयुक्त किसान मोर्चा ने हमेशा ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को धत्ता बताया है, ऐसे में जनता और खासतौर पर देश की आधी आबादी, महिलाएं, एसकेएम की महिला सुरक्षा कमेटी पर कैसे भरोसा कर सकती हैं ?