एक गिलास पानी पर पाक में बवाल, ये है पूरा मामला…

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पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की ओर से ईशनिंदा के आरोपों से ईसाई महिला को बरी करना देशभर में हंगामे का कारण बन गया। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से पाकिस्तान के कई शहरों में लाखों लोग सड़कों पर उतर आए। जहां एक तरफ सरकार, कोर्ट और सेना के खिलाफ नारेबाजी शुरू हुई। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के जजों पर तीखी टिप्पणी की गई और सेना प्रमुख के बारे में कहा गया कि वह मुसलमान ही नहीं हैं। साथ ही कट्टरपंथियों ने फौज को कहा कि वह आर्मी चीफ के खिलाफ बगावत करें।

पाकिस्तान में हालात बिगड़ता देख पाक पीएम इमरान खान ने एक विडियो संदेश में लोगों को समझाने की कोशिश की कि जजों ने जो फैसला दिया है वह इस्लामी कानून के मुताबिक दिया है। ऐसे में सभी को उसे स्वीकार करना चाहिए। साथ ही उन्होंने हिंसा करने पर लोगों के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेने की भी चेतावनी दी।

ये है मामला?

2010 में चार बच्चों की मां आसिया का अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ विवाद हो गया, जिसमें आसिया की गलती सिर्फ इतनी थी कि तेज धूप में उसे काम करते वक्त प्यास लग गई और उसने कुएं के पास मुस्लिम महिलाओं के लिए रखे गिलास से पानी पी लिया। जिसके बाद मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि गिलास अशुद्ध हो गया। वहीं आसिया ने अपनी पड़ोसी महिलाओं को समझाने की कोशिश की पर उन्होंने ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद की तुलना कर दी। इसके बाद पड़ोसियों ने उनपर ईशनिंदा कानून के तहत मामला दर्ज कराया। जिसके बाद से करीब पिछले आठ वर्षों से आसिया जेल में हैं।

ये है इशनिंदा कानून

जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून को लागू किया गया था। पाकिस्तान पीनल कोड में सेक्शन 295-बी और 295-सी जोड़कर ईशनिंदा कानून बनाया गया था। दरअसल पाकिस्तान को ईशनिंदा कानून ब्रिटिश शासन से विरासत में मिला। 1860 में ब्रिटिश शासन ने धर्म से जुड़े अपराधों के लिए कानून बनाया था जिसका विस्तारित रूप आज का पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून है।

पाकिस्तान में बहुसंख्यक बड़े पैमाने पर ईशनिंदा कानून का सपोर्ट करते हैं। पूर्व सैन्य तानाशाह जियाउल हक ने 1980 के दशक में ईशनिंदा कानून लागू किया था। पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया-उल-हक ने ईशनिंदा कानून में कई प्रावधान जोड़े। उसने 1982 में ईशनिंदा कानून में सेक्शन 295-बी जोड़ा और इसके तहत मुस्लिमों के धर्मग्रंथ कुरान के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया था।

इस कानून के मुताबिक, कुरान का अपमान करने पर आजीवन कारावास या मौत की सजा हो सकती है। 1986 में ईशनिंदा कानून में धारा 295-सी जोड़ी गई और पैगंबर मोहम्मद के अपमान को अपराध की श्रेणी में रखा गया जिसके लिए आजीवन कारावास की सजा या मौत की सजा का प्रावधान था।

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