किसान आंदोलन : क्या आतंकिस्तान बन रहा है टिकरी बॉर्डर ?

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क्या आतंकिस्तान बन रहा है टिकरी बॉर्डर ?

क्या आतंकिस्तान बन रहा है टिकरी बॉर्डर ? – 26 जनवरी को किसानों के नाम पर तिरंगे को अपमानित करने वाले टिकरी बॉर्डर वाले तथाकथित किसान आंदोलनकारियों पर चोरी, लूट, डकैती, वेश्यावृति, यौन उत्पीड़न, रेप और कत्ल जैसे संगीन आरोप लग चुके हैं। हालात ये हैं कि जिन्हें शुरुआत में गांववाले जिन्हें किसान समझकर आदर सत्कार करते थे, अब उनसे बचते फिर रहे हैं।

16 जून की रात झज्जर के झज्जर बहादुरगढ़ के कसार गांव के निवासी मुकेश को सिर्फ इसलिए जिंदा जला दिया गया, क्योंकि उसने पहले टिकरी वाले आंदोलनकारियों की दी शराब पी और फिर बहककर वो सच बोल दिया जिसे सुनने की आंदोलकारियों को आदत नहीं है, सच सिर्फ इतना था कि अब आंदोलन किसानों का नहीं, बल्कि कुछ ही लोगों का बनकर रह गयाहै। फिर क्या था आरोपियों ने उसपर तेल छिड़ककर आग के हवाले कर दिया।  गांव कसार के भोले भाले ग्रामीण की ये कहानी आंदोलनकारियों का व्यक्तित्व और उनमें बढ़ती आपराधिक मानसिकता दोनों का परिचय देती है। मुकेश ने मरने से पहले अपना बयान वीडियो पर भी दिया, मामला पुलिस में है, क्या सच और क्या झूठ सब सामने आना तय समझिए। लेकिन ये इकलौती घटना नहीं है,
जो आंदोलनकारियों के चरित्र पर सवाल उठाए।

फरवरी में सीधे ज्वैलरी की दुकान लूटने में जुटे किसान आंदोलनकारी, व्यापारियों में फैली दहशत

बहादुरगढ़ मेन बाजार में एक के ज्वैलरी शॉप पर तीन किसान आंदोलनकारी किसानों के झंडे और बल्ले लगाए हुए दुकान में पहुंचे और लूटपाट करने लगे, मामला समझते हुए आसपास के दुकानदार इकट्ठे हो गए और आरोपियों से खूब हाथा पाई हुई। इन तीन आरोपी लुटेरों में दो को तो पकड़ लिया गया, जबकि तीसरा भागने में कामयाब हो गया। सिटी थाना प्रभारी के मुातबिक आरोपी लुटेरे रणबीर, रेशम मोगा और फरीदकोट के रहने वाले हैं। दुकानदार की किस्मत अच्छी थी कि सहयोगी की वजह से और पडौ़सियों के समय पर मदद देने से वो बच गया। आंदोलनकारियों से बचाने के लिए बहादुरगढ़ में 23 फरवरी को व्यापारियों ने हड़ताल की जिसके बाद पुलिस ने वहां सुरक्षा बढ़ा दी। एक नहीं ऐसे कई वाक्ये हुए हैं, जिनमें लूट की वारदातों का सीधा कनेक्शन टिकरी बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन से जुड़ा है।

मार्च में टिकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारियों के अमर्यादित संबंध और कत्ल का खुलासा

टिकरी बॉर्डर से मार्च में एक किसान हाकिम सिंह की हत्या की खबर आई, पुलिस जांच शुरु हुई तो पता चला कि हत्या की वजह अवैध संबंध थे । जाहिर है कि आंदोलनकारियों में कहीं ना कहीं ऐसे लोग भी शामिल हो चुके थे जिनके अपने घर पर ही चरित्र सही नहीं थे।

अप्रैल में टिकरी बॉर्डर पर हुए यौन उत्पीड़न, गैंगरेप

टिकरी बॉर्डर पर अप्रैल के माह मे जो हुआ, उससे इंसानियत शर्मसार हो गई। बंगाल दौरे पर राकेश टिकैत जैसे बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विरोध करने को गए और उनके रेलों ने वहां किसान आंदोलन की पवित्रता की ऐसी कहानियां गढ़ीं कि बंगाल से एक बेटी आंदोनकारियों के साथ किसानों की सेवा के लिए आ गई, लेकिन वो क्या जानती थी कि ट्रेन मे चढ़ते ही किसान सोशल आर्मी वाले उसके साथ यौन उत्पीड़न करना शुरु कर दें, उसे शायद लगा होगा कि आंदोलन में जाउंगी तो बड़े नेताओं को देख सब चुप हो जाएंगे,

लेकिन यहां भी उसे मायूसी ही हाथ लगी और टिकरी बॉर्डर पर आम आदमी पार्टी से पुराने संबंध रखने वाले युवकों ने वीडियो बनाकर उस लड़की को ब्लैकमेल कर उसका शारीरिक शोषण शुरु कर दिया। हैरानी की बात तो ये है कि लड़की की मृत्यु के बाद उसे कोरोना की शिकार बताकर आंदोलनकारियों ने उसका बिना पोस्टमार्टम करवाए अंतिम संस्कार भी करवा दिया, लेकिन कहावत है कि सत्य प्रताड़ित किया जा सकता है, अपितु परास्त नहीं, सत्य सत्य ही रहता है और निकलकर बाहर आता है। पूरा मामला पिता ने पुलिस को बताया और
आखिरकार अब हरियाणा पुलिस ने गैंगरेप के आरोपी को गिरफ्त में ले लिया है।

मई में ये घटनाएं आम बनी रहीं और फिर जून में एक और बेटी ने खुलासा किया
कि टिकरी बॉर्डर में मेडिकल वोलंटियर के रुप में गई तो वहां उसका यौन शौषण किया गया। यहां मैं आपको बता दूं
कि भारत के संविधान के मुताबिक लड़कियों को गंदी नजरों से देखना भी अपराध के दायरे में आता है।

महीने बीतने के साथ ही बेशर्म होते चले गए किसान नेता भी?

गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे सिख और पगड़ीधारी किसान नेता ने जब मीडिया से बातचीत करते हुए ये कहा कि लड़की किसान आंदोलन को बदनाम नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसने पुलिस में शिकायत नहीं की। साथ ही राकेश टिकैत और योगेन्द्र यादव जैसे नेताओं के बयानों ने किसान आंदोलन के नेताओं की छवी को काफी हद तक बदल दिया।

पंजाब में किसानों के नाम पर शुरु हुए इस आंदोलन से जुड़े आदोंलनकारियों ने,
दिसंबर से अपने सात महीनों के सफर में – भारत सरकार और निजी उद्योगों के विरोध किया,
रेलवे की पटरी रोकी, हाईवे जाम किए, मोबाइल टावर तोड़े, लाल किले की प्राचीर पर तिरंगे का अपमान किया
वो अब जिस प्रकार बेटियों की आबरू और मुकेश जैसे भोलेभाले ग्रामीणो का कत्ल करने तक से नहीं हिचक रहे।
इनका खौफ अब धीरे धीरे ग्रामीणों में पैर पसार रहा है,

खबरें आम हो चुकी है कि इनके रास्ते रोकने की वजह से ग्रामीणों की बहू बेटियों का घर से निकलना मुश्किल हो चुका है। तो क्या ऐसे हालात पैदा करने वाले टिकरी बॉर्डर की तुलना आतंक के गढ़ से की जा सकती है?
सवाल ये भी है कि किसानों के नाम पर चल रहे
इस टिकरी बॉर्डर के आंदोलनकारियों के रेले को शांतिपुर्ण के नाम पर रियायत दी जाती रही,
तो आने वाले समय में ये क्या क्या गुल नहीं खिलाएंगे,
इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता।

किसान आंदोलन से जुड़े समझदार लोगों

ऐसे में अब किसान आंदोलन से जुड़े समझदार लोगों को,
लंगर चला रहे गुरुद्वारों को, सेवा के नाम पर बैठी समाज सेवी संस्थाओं को भी चिंता होनी लाजमी है
कि कहीं आंदोलन के साथ बैठना कल को इन्हीं के गले की फांस ना बन जाए।

जनता की नजरें और सवाल सरकार से भी है कि वो कब क्या कदम उठाती है,
क्योंकि जब तक भीड़ है,
चौतरफा बिखरे टैंट और कैंप हैं,
तब तक कहीं भी किसी भी अनहोनी से कोई भी इनकार नहीं कर सकता।
आखिरकार सभी बातें संभालनी पुलिस प्रशासन और सरकार को ही पड़ेंगी।