किसान आंदोलनकारियों से सुप्रीम कोर्ट भी क्यों नाराज दिखाई दे रही है ?

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किसान आंदोलनकारियों से सुप्रीम कोर्ट भी क्यों है नाराज है ?

किसान आंदोलनकारियों की ओर से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के नाम पर लगातार अपनाए जा रहे रवैये से सुप्रीम कोर्ट काफी खफा नजर आ रहा है। आंदोलनकारियों के द्वारा अनिश्चिकाल के लिए हाईवे जाम करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट कई बार उंगली उठा चुका है। अब तो अदालत ने साफ कह दिया है कि जब संसद में बहस, न्यायिक मंचों के जरिए समस्या का हल हो सकता है तो फिर सड़कों को जाम क्यों की जा रही हैं ? किसानों के कौन कौन से रवैयों ने सुप्रीम कोर्ट की बढ़ी है नाराजगी आईये जानते हैं-

सुप्रीम कोर्ट के बीते माह की टिप्पणी पर भी नहीं माने आंदोलनकारी

बीते माह भी सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह कहा था किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन सड़कों को अनिश्चिकाल के लिए जाम नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद किसान नेताओं ने सरकारी बातचीत के दौरान अपना पल्ला ये कहकर झाड़ लिया कि सड़कें उन्होंने रोकी ही नहीं हैं। जाहिर है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं की ऐसी रिपोर्ट से अदालत भी सकते में है।

बातचीत का रास्ता नहीं इख्तियार कर रहे किसान नेता

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को आदेश दिए थे कि वो किसान नेताओं से बातचीत कर, उनके आंदोलन के लिए वैकल्पिक स्थान की व्यवस्था करे, जिसके बाद हरियाणा सरकार ने अपना हलफनामा सौंपते हुए कहा है कि किसान नेता बातचीत के रास्ते का ही बहिष्कार कर रहे हैं । आपको बता दें गि हरियाणा में गुरनाम सिंह चढ़ूनी जैसे नेताओं ने सरकार की कमेटियों का ही बहिष्कार कर दिया था।

कृषी बिल पर कोर्ट की कमेटी का संयुक्त किसान मोर्चा ने किया था बहिष्कार

किसान आंदोलन की शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंच गया था, जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से कृषि कानूनों को तब तक रद्द करने के लिए आदेश दे दिए थे जब तक कि कृषि बिल पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अपनी राय और संशोधन के प्रस्ताव ना दे दे। लेकिन इस कमेटी का भी किसान नेताओं ने बहिष्कार कर दिया था। हालात ऐसे हुए थे कि कमेटी में शामिल किए गए पंजाब के किसान नेता भूपिंदर मान आंदोलनकारियों के दबाव में आकर कमेटी से अपना नाम ही वापस ले लिया था।  जाहिर है कि किसान आंदोलनकारियों का मकसद सिर्फ आंदोलन करना ही दिख रहा है और वो एक ही बात पर अड़े हैं कि सिर्फ कानून रद्द हों। संयुक्त किसान मोर्चा के इस रवैये ने भी देश की सर्वोच्च अदालत की नाराजगी बढ़ाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसान संगठन पहले ही विवादित कृषि कानूनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है तब कानूनों के खिलाफ आंदोलन को जारी रखने का क्या तुक है। जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा, ‘सत्याग्रह का क्या तुक है। आपने कोर्ट का रुख किया है। अदालत में भरोसा रखिए। एक बार जब आप अदालत पहुंच गए तब प्रोटेस्ट का क्या मतलब है? क्या आप ज्युडिशियल सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं? सिस्टम में भरोसा रखिए।’

इसके अलावा ऐसे कई मौकों पर आंदोलन की आड़ में किसानों ने कानून व्यवस्था और लोकतांत्रिक मर्यादाओं को भंग करने का काम किया है, जिसने संविधानिक मूल्यों को बनाए रखने वाली सर्वश्रेष्ठ संस्था सुप्रीम कोर्ट को आहत करने का काम किया है।

सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर नेशनल हाईवे जाम कर बैठे किसान आंदोलनकारियों की एक ही नहीं कई शिकायतें अदालत पहुंची हुई हैं, जिनमें से कुछ शिकायतें स्थानीय जनता की ओर से हैं तो कुछ शिकायतें आंदोलन की वजह से बंद पड़े उद्योगों की ओर से, ऐसे में देखना ये है कि शुरु में आंदोलन को शांतिपूर्वक मानने वाली अदालत का सब्र कब तक कायम रहता है।