इससे अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य मिलता है, जानें क्‍या है पूजा विधि

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नई दिल्ली. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी इस वर्ष 15 अगस्त, शनिवार को मनाई जाएगी।

इसे अन्नदा एकादशी भी कहते हैं। इस व्रत को करने से हर प्रकार की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस दिन भगवान श्री हरी विष्णु जी के उपेन्द्र रुप की विधिवत पूजा की जाती है।

इस दिन भगवान श्री कृष्ण को प्रिय गाय और बछड़ों का पूजन करना चाहिए तथा उन्हें गुड़ और हरी घास खिलानी चाहिए।

पुराणों में बताया गया है कि जो व्यक्ति श्रृद्धा पूर्वक अजा एकादशी का व्रत रखता है उसके पूर्व जन्म के पाप कट जाते हैं और इस जन्म में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

अजा एकादशी के व्रत से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है और मृत्यु के पश्चात व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान प्राप्त करता है। मान्यता है कि इस व्रत करने से एक हजार गोदान करने के समान फल मिलते हैं।

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शुभ मुहूर्त

  • पूजा मुहूर्त: 15 अगस्त रात 08:52 बजे से 10:30 बजे तक
  • पारण समय: 16 अगस्त, सुबह 05:51 बजे से 08:29 बजे तक

पूजा करने की विधि

  • सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि क्रियाओं से मुक्त पहले हाथ में जल लेकर हृदय से शुद्ध भावना से संकल्प करें।
  • घर में पूजा की जगह पर या पूर्व दिशा में किसी साफ जगह पर गौमूत्र छिड़ककर वहां गेहूं रखें।
  • इसके बाद उस पर तांबे का लोटा यानी कि कलश रखें।
  • लोटे को जल से भरें और उस पर अशोक के पत्ते या डंठल वाले पान रखें और उस पर नारियल रख दें।
  • इसके बाद कलश पर या उसके पास भगवान विष्णु की मूर्ति रखें और भगवान विष्णु की पूजा करें।
  • भगवान श्री विष्णु जी का पूजन धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं फल आदि से करें।
  • इसके बाद दीपक लगाएं लेकिन कलश अगले दिन हटाएं।
  • कलश को हटाने के बाद उसमें रखा हुआ पानी को पूरे घर में छिड़क दें और बचा हुआ पानी तुलसी में डाल दें।
  • व्रत के दौरान एक समय फलाहार करें।

करें ये काम

इस दिन तुलसी का रोपण, सिंचन और पूजन करने से प्रभु अति प्रसन्न होते हैं और हरिनाम का संकीर्तन करने से अपार कृपा मिलती है। विष्णु भगवान सर्वशक्तिशाली एवं सर्वव्यापक हैं एवं बिना मांगे ही अपने भक्त के कष्टों और चिंताओं को मिटा देते हैं।

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जो भक्त मात्र भगवान की भक्ति ही सच्चे भाव से करते हैं उन पर तो भगवान वैसे भी कृपा करते ही हैं जैसे अपने मित्र सुदामा पर उन्होंने बिना कुछ कहे ही सब कुछ प्रदान कर दिया था इसलिए भगवान जी से मात्र उनकी सेवा मांगने वाले भक्त सदा सुखी एवं प्रसन्न रहते हैं।