भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाला राजमार्ग ध्वस्त, रैणी गांव के नीचे गार्डर ब्रिज का एबटमेंट भी आया खतरे में

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भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाला राजमार्ग ध्वस्त

भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाला राजमार्ग ध्वस्त, रैणी गांव के पास ध्वस्त हो गया। बीती रात हुई भारी बारिश के चलते सड़क का करीब 40 मीटर भाग ढह गया। आवाजाही पूरी तरह से ठप पड़ गई है। हालांकि, बीआरओ  ने राजमार्ग को खोलने की कवायद शुरू कर दी है। इसके साथ ही रैणी गांव के नीचे ऋषिगंगा नदी पर बनाए गए वैली ब्रिज के बायें एबटमेंट भी खतरे की जद में आ गया है। बीती सात फरवरी को ऋषिगंगा कैचमेंट में आई जलप्रलय में भी यहां के स्थायी पुल को नुकसान पहुंचा था और इसके बाद गार्डर ब्रिज का निर्माण किया गया था।उधर, भूविज्ञानी व उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र  के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट के मुताबिक, उच्च हिमालय का अधिकांश क्षेत्र कालांतर में ग्लेशियरों के पीछे खिसकने व शेष मलबे के वहीं रहने के चलते बना है।

लिहाजा, क्षमता के लिहाज से जमीन उतनी मजबूत नहीं है। ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हर एक निर्माण के दौरान भूविज्ञान के हिसाब से उचित अध्ययन कराना जरूरी है। बीती रात हुई भारी बारिश से संबंधित क्षेत्र में तमाम नदी व गदेरे उफान पर आ गए थे। जगह-जगह भूस्खलन के मामले सामने आए हैं और राजमार्ग के चमोली जिले में 10 से अधिक सड़कों को नुकसान पहुंचा है। जिससे विशेषकर नीति-मलारी घाटी के 21 गांवों का संपर्क पूरी तरह कट गया है।

रैणी गांव

रैणी गांव में भी विभिन्न घरों को मलबे के चलते हल्के नुकसान की बात सामने आ रही है।
वहीं, चिपको आंदोलन की प्रणोता गौर देवी का म्यूजियम रूपी भवन भी मलबे की चपेट में आ गया।
स्थानीय निवासी हरेंद्र सिंह राणा ने बताया
कि रैणी गांव के नीचे नदी वाले भाग से निरंतर भूस्खलन हो रहा है।
इससे कभी भी रैणी गांव भीषण आपदा की जद में आ सकता है।

ऋषिगंगा कैचमेंट में करीब एक दर्जन गांव ऐसे हैं,
जहां के लोग बर्फ पड़ने के दौरान करीब छह माह निचले क्षेत्रों में प्रवास करते हैं।
जब बर्फ पिघलती है, तब ये वापस लौटते हैं।
इस समय ग्रामीणों ने निचले क्षेत्रों में प्रवास की तैयारी शुरू कर दी थी।
हालांकि, राजमार्ग के ध्वस्त होने व पुल को खतरा पैदा होने के चलते उनके कदम ठिठक गए हैं।