जानिए उत्तराखंड में स्थित चंद्रशिला पीक के रोचक तथ्य, प्रभू श्रीराम और चंद्रमा से जुड़ी कहानियां

7

उत्तराखंड राज्य को यूँ ही देवभूमि नाम की संज्ञा नही दी गई है। यहाँ का लगभग हर स्थल, हर पहाड़ी, हर मंदिर का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व हैं। उसी में एक हैं चंद्रशिला मंदिर जो कि रुद्रप्रयाग में तुंगनाथ मंदिर से ऊपर चंद्रशिला की पहाड़ियों पर स्थित हैं। चंद्रशिला मंदिर का इतिहास देव चंद्रमा व भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ हैं।

यदि आप धार्मिक यात्रा के साथ-साथ रोमांच का भी अनुभव चाहते हैं तो अवश्य ही आपको चंद्रशिला पर जाना चाहिए। आज हम आपको चंद्रशिला से जुड़ी कुछ महत्पूर्ण जानकारी देंगे जिसके बाद आपका मन यहां जाने के लिए उत्तेजित रहेगा।

चंद्रशिला पीक का ट्रेक करने के लिए देश-विदेश से हर वर्ष लाखों की संख्या में सैलानी यहाँ आते हैं लेकिन यह ट्रेक केवल अपनी सुंदरता के लिए ही नही अपितु धार्मिक महत्ता के कारण भी प्रसिद्ध हैं। इसके शिखर पर चंद्रशिला मंदिर बना हुआ हैं जिसका संबंध चंद्र देव व भगवान श्रीराम से है। आइए एक-एक करके दोनों कथाओं के बारे में जानते हैं।

चंद्रमा से जुड़ी कहानी

सतयुग में राजा दक्ष हुए थे जिनकी कई पुत्रियाँ थी जिनमें से एक पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था और उनके आत्म-दाह के बाद 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ था। दक्ष की 27 पुत्रियों का विवाह देव चंद्रमा से हुआ था लेकिन चंद्रमा का विशेष स्नेह राजा दक्ष की बड़ी पुत्री रोहिणी से ही था।

जब अन्य 26 पुत्रियों के द्वारा इसकी शिकायत राजा दक्ष से की गयी तो उन्होंने चंद्रमा को बहुत समझाया लेकिन जब वे नही समझे तो उन्हें क्षय रोग से पीड़ित रहने का श्राप मिला। उसके बाद इस रोग से मुक्ति पाने के लिए चंद्रमा ने कुछ समय के लिए चंद्रशिला की इस पहाड़ी पर भी शिवजी का ध्यान किया था। उसके बाद से ही इस शिला का नाम चंद्रशिला पड़ गया। इसके साथ ही इसे मून रॉक भी कहा जाता है।

ReadAlso;उत्तराखंड: चमोली में स्थित रुद्रनाथ महादेव मंदिर का जाने इतिहास. पंच केदार में रूद्रनाथ है चौथा केदार..

प्रभू श्रीराम से जुड़ी कहानी

यह तो हम सभी जानते हैं कि श्रीराम का जन्म इस धरती से पाप का अंत करने व राक्षस राजा रावण का वध करने के लिए हुआ था लेकिन रावण राक्षस होने के साथ-साथ ब्राह्मण पुत्र भी था। इसलिए रावण वध के कारण श्रीराम के ऊपर ब्रह्महत्या का पाप लगा था जिसके लिए श्रीराम ने कई तरह से पश्चाताप भी किया था।

उसी पश्चाताप के फलस्वरूप श्रीराम ने चंद्रशिला की इस पहाड़ी पर भी कुछ समय तक रहकर ध्यान किया था और भगवान शिव से क्षमा याचना की थी। श्रीराम के द्वारा इस पहाड़ी पर ध्यान लगाने के कारण चंद्रशिला पहाड़ी की महत्ता भक्तों के बीच और अधिक बढ़ गयी।