संघर्षविराम के बावजूद बढ़ी तकरार, डिप्लोमैटिक कोशिशों से टला बड़ा युद्ध

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भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और हालिया संघर्षविराम के बावजूद, सीमाई क्षेत्रों में शांति कायम नहीं हो सकी है। शनिवार को संघर्षविराम समझौते के कुछ ही घंटों बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे पर उल्लंघन के आरोप लगाने शुरू कर दिए, जिससे हालात एक बार फिर नाजुक हो गए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिकी मध्यस्थों द्वारा पर्दे के पीछे की डिप्लोमैटिक बैकचैनल्स और क्षेत्रीय शक्तियों की मध्यस्थता न होती, तो यह टकराव एक पूर्ण युद्ध का रूप ले सकता था और वह भी दो परमाणु संपन्न राष्ट्रों के बीच।

जम्मू-कश्मीर हमला बना तनाव का कारण

इस संकट की शुरुआत पिछले महीने जम्मू-कश्मीर में हुए एक भीषण आतंकी हमले से हुई, जिसमें 26 भारतीय पर्यटकों की जान चली गई। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में हवाई हमले शुरू कर दिए। जवाब में, पाकिस्तान की ओर से भी हवाई टकराव, तोपों से गोलाबारी और मिसाइल हमलों के आरोप सामने आए।

विवादित दावे, तेज़ बयानबाज़ी

दोनों देशों ने न सिर्फ एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों पर हमले के आरोप लगाए, बल्कि भारी नुकसान पहुंचाने का भी दावा किया। मीडिया और राजनीतिक मंचों पर बयानबाज़ी तेज हो गई। भारत ने पाकिस्तान पर “लगातार संघर्षविराम उल्लंघन” का आरोप लगाया, जबकि पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने संघर्षविराम का पूरा पालन किया है।

सूत्रों के अनुसार, इस संकट के दौरान अमेरिका, खाड़ी देशों और कुछ यूरोपीय देशों की कूटनीतिक सक्रियता से पर्दे के पीछे महत्वपूर्ण संवाद हुए। इन बैकचैनल डिप्लोमेसी के जरिए दोनों देशों को सीधे युद्ध से पीछे हटाया गया। हालांकि अभी भी सीमावर्ती इलाकों में तनाव बना हुआ है, लेकिन वृहद युद्ध की संभावना फिलहाल टल गई है।

एक पूर्व राजनयिक ने कहा, “स्थिति अब भी नाजुक है। हालांकि संघर्षविराम की घोषणा हो चुकी है, लेकिन जमीनी स्तर पर भरोसे की कमी और पारस्परिक संदेह बना हुआ है।”

क्या आगे शांति संभव है?

मौजूदा हालात में यह कहना कठिन है कि यह संघर्षविराम स्थायी रहेगा। जब तक सीमा पार आतंकवाद, घुसपैठ और जवाबी सैन्य कार्रवाई जैसी समस्याओं पर ठोस समाधान नहीं निकलता, तब तक शांति सिर्फ कागजों पर रह सकती है।