उत्तराखंड सरकार ने रोकी हाइब्रिड कारों पर टैक्स छूट, टाटा और महिंद्रा के विरोध के बाद फैसला टला

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उत्तराखंड सरकार द्वारा हाइब्रिड कारों को वाहन कर (रोड टैक्स) में 100% छूट देने के फैसले को फिलहाल रोक दिया गया है। यह निर्णय राज्य कैबिनेट द्वारा जून के पहले सप्ताह में लिया गया था, लेकिन अब इसे टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा जैसी प्रमुख घरेलू कंपनियों के विरोध के बाद पुनर्विचार के लिए टाल दिया गया है।

प्रदेश सरकार का यह फैसला “उत्तराखंड मोटरयान कराधान सुधार अधिनियम” में संशोधन कर लागू किया जाना था, जिससे केंद्र सरकार के मोटरयान (9वां संशोधन) नियम 2023 के तहत प्लग-इन हाइब्रिड इलेक्ट्रिक और स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों को वित्तीय वर्ष 2025-26 तक रोड टैक्स में पूर्ण छूट मिलनी थी।

टैक्स छूट से क्या होता फायदा?

परिवहन विभाग के अनुसार, अगर यह छूट लागू होती तो हाइब्रिड कारों का पंजीकरण उत्तराखंड में बढ़ता और राज्य को 28% से 43% तक जीएसटी का लाभ मिलता, पंजीकरण की संख्या बढ़कर 750 से 2000+ तक पहुंच सकती थी, उपभोक्ताओं को कार खरीदने में आर्थिक राहत मिलती। उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों की तरह छूट देकर उत्तराखंड अपने टैक्स सिस्टम को प्रतिस्पर्धी बनाने की कोशिश कर रहा था।

किसने किया विरोध और क्यों?

इस फैसले का विरोध टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा ने किया है। इन दोनों कंपनियों की आपत्तियाँ मुख्य रूप से इस प्रकार हैं –

दोनों कंपनियाँ हाइब्रिड तकनीक में पिछड़ी हैं, जबकि वे इलेक्ट्रिक वाहनों पर फोकस कर रही हैं।

हाइब्रिड को टैक्स में बढ़त देने से ग्राहकों का रुझान ईवी से हट सकता है।

उत्तराखंड में दोनों कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है, और यह निर्णय व्यापारिक योजनाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।

इन कंपनियों का कहना है कि सरकार को ऐसा निर्णय लेने से पहले स्थानीय निवेशकों और उद्योगों के हितों का ध्यान रखना चाहिए।

सरकार की स्थिति असमंजस में

राज्य सरकार इस पूरे मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्ताव अगली कैबिनेट बैठक में रद्द भी किया जा सकता है। इस समय सरकार दो विरोधाभासी हितों के बीच फंसी है – एक ओर उपभोक्ताओं को राहत और राज्य को संभावित राजस्व लाभ वही दूसरी ओर स्थानीय उद्योगों और घरेलू निवेशकों की नाराज़गी।

वित्त और ऑटो क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के बीच स्पष्ट नीति संतुलन जरूरी है। यदि केवल हाइब्रिड को बढ़ावा दिया गया तो देश में बन रही ईवी मैन्युफैक्चरिंग इकोनॉमी को नुकसान हो सकता है। वहीं, उपभोक्ता हित के दृष्टिकोण से देखें तो ज्यादा विकल्प और सस्ते रजिस्ट्रेशन से आम जनता को लाभ हो सकता है।

फिलहाल यह प्रस्ताव अस्थायी रूप से रोक दिया गया है, और सरकार उच्चस्तरीय विचार-विमर्श कर रही है। अब देखना होगा कि सरकार उपभोक्ताओं को प्राथमिकता देती है या घरेलू कंपनियों के हितों को। यह मुद्दा राज्य में नीति बनाम निवेश की गहरी बहस को जन्म दे चुका है और इसका असर उत्तराखंड के औद्योगिक माहौल और ऑटोमोबाइल नीति दोनों पर पड़ेगा।