हथियारों से संघर्ष को क्यों सही बताते आए हैं
हथियारों से संघर्ष को क्यों सही बताते आए हैं दर्शन पाल ? 2006 में दिए इंटर्व्यू में दिया था सशस्त्र नक्सल संघर्ष को समर्थन? आज किसान आंदोलन से पंजाब के कद्दावर किसान नेता के रुप में अपनी पहचान बना चुके दर्शन पाल का माओवादी और नक्सलियों से क्या कोई संबध रहा है। क्या वो हथियारों से लैस नक्सली आंदोलन को समर्थन देते हैं, अगर रिपोर्ट्स को मानें तो जवाब हां में है। 27 अगस्त, 2006 में वर्ल्ड पीपुल्स ब्लोग में दिए ओह माय न्यूज़ और अल अहराम के हवाले से छपे इंटरव्यू में दलीप सिंह की नक्सली हथियारबंद समर्थक सोच साफ दिखाई पड़ती है।
आज के पंजाब के किसान नेता और संयुक्त किसान मोर्चा के अहम हिस्से दर्शन पाल को लेकर छपे इस 2006 के इंटर्वयू में सवाल पूछा गया है कि क्या वो जबरन परिवर्तन करवाने को सही मानते हैं (So forcible struggle can be legitimate?)
इसके जवाब में दर्शन पाल के मार्फत कहा गया है कि जब कोई विकल्प ना बचे तो हथियारों के जरिए संघर्ष इस बात का संकेत है कि अब सिस्टम बंद हो चुका है। पाल कहते हैं कि ऐसे (हिंसक कार्य ) इंसानी प्रवृति का हिस्सा हैं, तब जब वो मजबूर हो जाएं। वो इराक और फिलिस्तीन का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जब कोई चारा ना बचे तो सशस्त्र आंदोलन की बात कही ।
आपको बता दें कि ये इंटरव्यू साल 2006 से पहले के हैं, तब आज के किसान आंदोलन के नेता दर्शन पाल रिवोल्यूश्नरी डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया के वाइस प्रेजिडेंट के पद पर थे। और इसी साल एक ओर माओवादी संगठन PDFI की स्थापना भी की।
लाल किला हिंसा जैसे आरोपों से आए दिन घरता किसान आंदोलन, क्या माओवादी सोच है वजह ?
आज के किसान नेता दलीप सिंह का माओवादियों से रिश्ता पुराना है और वो Al-ahram और Ohmynews जैसे बंद हो चुके न्यूज पोर्टर्ल्स में दिए इंटरव्यूज़ में ये भी बता चुके हैं कि उन्हें सशस्त्र संघर्ष से कोई परहेज नहीं है।
ऐसे में सवाल उठने लाजमी हैं कि कहीं किसान आंदोलन में आए दिन होती घटनाओं और पुलिस-प्रशासन से संघर्ष की असल वजह पंजाब में नक्सली सोच का हावी होना तो नहीं है। सवाल इसलिए भी गंभीर है कि पंजाब पर पहले ही पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई की नजर है और खालिस्तान समर्थक नारे भी किसान आंदोलन के दौरान लग चुके हैं। ऐसे में सवाल अब देश की सुरक्षा एजेंसियों के सामने है कि वो इस पूरे प्रकरण को किस तरह से देख-परख रही हैं और जरुरत पड़ने पर क्या कोई बड़ी कार्यवाही भी की जा सकती है।
सवाल ये भी उठने तय हैं कि क्या किसान आंदोलन से जुड़ने से पहले दर्शन पाल नक्सली हथियारबंद सोच को टाटा बाय-बाय कह चुके हैं या नहीं।
Original text-
Darshan Pal: When no other alternative remains. So the resort to armed struggle is less an expression of fanaticism as an indication of the closure of the system? Pal: Human beings go to that extent only when they are compelled. For example, the Iraqi people: what is the alternative in front of the Iraqi people? They can’t pray for freedom. For the Palestinian people, pushed out of their own land? Sometimes these repressed exploited people,
when they can’t fight for their lives in the framework of law or constitutions,
adopt unconstitutional ways, of which armed struggle is one way.
The crisis started in the late 1980s when there came offensives in all fields —
economic, cultural, political, military —
under the name of the new world order.
After 11 September the situation changed more radically,
though even before this the American leadership was in no mood for dissent.
They will not tolerate it now,
if dissent is at a minimal level.
never in history did the power go unchallenged:
people challenge it. People challenged colonialism, and many more will challenge the neo-colonial kinds of oppression we now suffer. why are people all over the world have shown sympathy with the Iraqi people? An era has started now. All over the world people are coming out against the oppressive, discriminatory and exploitative system. The depressive era of the 1980s and early 1990s has gone. The people are coming out of that sleep