क्या कांग्रेस ने दिए थे गुरनाम सिंह चढ़ूनी को रुपए ?
क्या कांग्रेस ने दिए थे गुरनाम सिंह चढ़ूनी को रुपए – क्या कक्काजी के आरोप सही थे ? राजनीति से दूरी की बात करने वाले अब चुनाव लड़ने की क्यो कर रहे बात ? किसान आंदोलन में जनवरी पर कक्काजी ने आरोप लगाए थे कि गुरनाम सिंह चढ़ूनी किसान आंदोलन के लिए कांग्रेस से मोटी फंडिग ले रहे हैं, जिसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा में काफी बवाल भी हुआ और फिर सभी लोग अपनी बातों से पीछे हट गए। लेकिन अब जब गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने चुनाव लड़ने की बात कह दी है तो फिर सवाल उठ रहे हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले चढ़ूनी ने हरियाणा में कांग्रेस से फंडिंग लेकर इतना विशाल आंदोलन चालू रक्खा ।
जनवरी के तीसरे हफ्ते में किसान आंदोलन अपने चरम पर था और इसी बीच एक ऐसी खबर आई, जिसने सबको चौंका दिया, किसान आंदोलन से ही जुड़े एक नेता शिव प्रसाद कक्काजी ने आरोप लगाए थे कि भारतीय किसान यूनीयन (चढ़ूनी) के नाम पर अपना अलग किसान मोर्चा चला रहे किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी की कांग्रेस से डील हो चुकी है और उस डील से उन्हें कांग्रेस हरियाणा के नेता मोटी रकम दे रहे हैं, जिसका अंदाजा भी दस करोड़ रुपए तक का था। शिवप्रसाद कक्का जी के इस सनसनी खेज खुलासे के बाद एकबार को किसान आंदोलन की पोल खुलती दिखी और किसान नेताओं को आनन फानन में जांच पूरी होने तक चढ़ूनी को संयुक्त किसान मोर्चे से बेदखल करना पड़ा।
चढ़ूनी पर आरोप लगे थे कि
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चढ़ूनी अपने मोर्चे की अलग से फंडिंग करते हैं
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हरियाणा के एक बड़े नेता से बड़ी राशि ली और इसकी जानकारी किसी को नहीं दी।
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टेंट में आते हैं राजनीतिक लोग
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राजनीतिक दलों के साथ आंदोलन कर रहे हैं गुरनाम सिंह चढ़ूनी
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17 जनवरी को किसान संसद के नाम पर गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने राजनीतिक दलों को बुलाया।
संयुक्त किसान मोर्चा जिस किसान आंदोलन की छवी को गैर राजनीतिक बताते आया हो, उसमें इतना बडा खुलासा या कहें आरोप लग जाए तो खलबली मचनी तय थी और हुआ भी यही। किसान मोर्चा की बैठक में चढ़ूनी को शामिल नहीं किया गया और सरकार से हो रही बैठक में भी।
चढ़ूनी ने मानहानी का दावा ठोकने की बात की, लेकिन अदालत तक नहीं पहुंचे
गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कांग्रेस से सांठगांठ और 10 करोड़ रुपए के साथ कांग्रेस की टिकट के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि वो राजनीति से कोसों दूर हैं और किसानों के लिए संघर्षरत हैं। साथ ही उन्होंने ये दावा किया था वो इस मामले में उन्हें बदनाम करने की साजिश करने वालों पर अदालत में मानहानी का दावा ठोकेंगे। लेकिन इसके बाद ये खबर शांत हो गई और उन्हें फिर से संयुक्त किसान मोर्चे से जोड़े रखा गया। सवाल उठने लाजमी हैं कि स्वयं को स्पष्ट तौर पर सिर्फ किसान नेता बताने वाले गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने इतने गंभीर आरोप लगने के बाद भी अदालत का रुख क्यों नहीं किया? क्यों उन्होंने मानहानी का दावा नहीं ठोका? बताते हैं कि इसकी वजह संयुक्त किसान मोर्चा की बैठकों में दूर हुए आपसी मतभेद ही वजह है।
चढ़ूनी के चुनाव लड़ने के बात से फिर राजनीतिक संबंधों पर उठे सवाल
गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भले ही जनवरी में खुद को बयानबाजी कर राजनीति से दूर घोषित कर दिया हो , लेकिन अब तो उन्होंने स्वयं ही पंजाब चुनावों में हाथ आजमाने की बात कर दी है। ऐसे में कक्का जी के लगाए आरोप फिर से उभर सकते हैं कि आखिर क्या सच है ?
क्या चढ़ूनी कांग्रेस के इशारे पर हरियाणा में ऐसे किसान आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे,
जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी के विधायकों, पार्षदों पर ही नहीं,
बल्कि सरकारी संपत्ति को भी चोट पहुंचाई ।
अब देखना ये है कि चुनावों के दौरान चढ़ूनी किस पार्टी के प्रचार प्रसार के लिए काम करते हैं, और अगर वो कांग्रेस के लिए ऐसा करते हैं
तो ये तय समझिए कि कक्का जी के आरोपों की खबरें चुनावों से ऐन पहले फिर से हेडलाइन बनेंगी।
किसान आंदोलन का जाल, चुनावों में कांग्रेस के लिए जंजाल बन सकता है।