
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और भुगतान से जुड़ी चुनौतियों के बीच भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात में कमी करने का निर्णय लिया है। सूत्रों के अनुसार, देश की प्रमुख तेल रिफाइनिंग कंपनियां अब रूस से सीधी खरीद को अस्थायी रूप से रोकने की तैयारी में हैं।
भारत, जो पिछले दो वर्षों से रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार रहा है, अब वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में जुट गया है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस के ऊर्जा निर्यात पर नए प्रतिबंधों और मूल्य-सीमा को लेकर दबाव बढ़ा दिया है।
जानकारी के अनुसार, भारतीय रिफाइनर कंपनियों को हाल के महीनों में रूस से तेल खरीद के भुगतान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। डॉलर और दिरहम जैसी प्रमुख मुद्राओं में लेनदेन पर लगे प्रतिबंधों के कारण भुगतान प्रक्रिया जटिल हो गई है। परिणामस्वरूप, कई कंपनियां अब मध्यस्थ देशों या ट्रेडिंग कंपनियों के माध्यम से सीमित आयात पर विचार कर रही हैं।
सरकारी स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी कंपनियों ने संकेत दिया है कि वे फिलहाल रूस से नए अनुबंध नहीं करेंगी। हालांकि, पहले से तय आपूर्ति अनुबंधों के तहत आने वाले शिपमेंट समय पर पूरे किए जाएंगे। निजी क्षेत्र की रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी भी अपने आयात ढांचे की समीक्षा कर रही हैं।
सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित नहीं करेगा। सरकार अन्य तेल उत्पादक देशों — जैसे सऊदी अरब, इराक और संयुक्त अरब अमीरात — के साथ नए आपूर्ति समझौते करने पर विचार कर रही है, ताकि घरेलू मांग और कीमतों में स्थिरता बनी रहे।
पिछले वर्ष भारत ने कुल कच्चे तेल आयात का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा रूस से खरीदा था, लेकिन अब इस हिस्से में उल्लेखनीय गिरावट की संभावना जताई जा रही है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यदि मौजूदा प्रतिबंध जारी रहे तो रूस से तेल आयात अगले कुछ महीनों में घटकर लगभग 20 प्रतिशत तक सिमट सकता है।
ऊर्जा विशेषज्ञों के अनुसार, यह निर्णय भारत के लिए आर्थिक और कूटनीतिक दोनों दृष्टियों से अहम है। इससे न केवल भारत अपनी ऊर्जा आपूर्ति में विविधता ला सकेगा, बल्कि पश्चिमी देशों के साथ अपने व्यापारिक और राजनीतिक संतुलन को भी बनाए रखेगा।













