यूपी में कांग्रेस की संजीवनी बन सकता है प्रियंका का पदार्पण

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 लखनऊ जनवरी लम्बे इंतजार के बाद कांग्रेस की स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी वाड्रा ने आखिरकर सक्रिय राजनीति में कदम रखते हुए सियासी गुणा-भाग के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में अहम जिम्मेदारी स्वीकार कर ली।

उन्होंने कहा कि प्रियंका का अब तक का काम करने का तरीका यह बताता रहा है कि वह कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देती हैं। जब ऐसा कोई नेता सियासत में अगुवाई करने लगता है तो जितने नाराज लोग होते हैं, वह उसके नेतृत्व में गोलबंद होने लगते हैं। प्रियंका की अल्पसंख्यकों में जो छवि है वह उन्हें कांग्रेस की तरफ ले जा सकती है।

2019 का चुनावी रण लगातार दिलचस्प होता जा रहा है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को आगे करके 2019 का सबसे बड़ा दांव खेल दिया है। ये दांव भी चला गया है सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जहां से दिल्ली की सत्ता का रास्ता तय होता है। प्रियंका गांधी के हाथ में उत्तर प्रदेश कमान आने से अब ये साफ हो गया है कि यूपी में तो कम से कम मुकाबला प्रियंका गांधी बनाम नरेंद्र मोदी होने जा रहा है।

हालांकि, प्रियंका के आने से काफी सवाल भी खड़े होते हैं। क्या राहुल कांग्रेस को लेकर अपनी सोच को आगे ले जाने में नाकाम हो गए हैं या अकेले पड़ गए हैं। जो प्रियंका गांधी की जरूरत पड़ी है। खासकर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की सियासत में पूर्वांचल का दबदबा बढ़ा है। प्रियंका के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के संगठन में नयी जान फूंककर उस दबदबे को तोड़ने की होगी।

सियासी जानकार प्रोफेसर सुरेन्द्र द्विवेदी कहते हैं कि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा है। प्रियंका को खुद को साबित करना अभी बाकी है। प्रियंका से अपेक्षाएं ज्यादा हैं, लिहाजा उनके आने से उम्मीद जरूर जागी है।

उन्होंने कहा कि प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारने के पीछे कांग्रेस नेतृत्व की मंशा यह भी लगती है कि वह खासकर युवाओं को एक नयी उम्मीद देने की कोशिश में है। खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा कि प्रियंका के आने से उत्तर प्रदेश में एक नये तरीके की सोच आएगी और राजनीति में सकारात्मक बदलाव आएगा।