क्या है पितरों का तर्पण करने का धार्मिक महत्व?, क्या है श्राद्ध जानिए यहां..

3

श्राद्ध कर्म का संक्षिप्त विवरण मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के अर्थात् नित्य, नैमित्तिक और काम्यं, जबकि यमस्मृति में पाँच प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख हुआ है।

यथा ‘नित्य नैमित्तिकम काम्यं त्रिविध वृद्धि-श्रद्धमथापरं पार्वण चेति विज्ञेय, श्राद्धं पंच विधं बुधैः ।।’

1- नित्य श्राद्धः- नित्य प्रति किये जाने वाले श्राद्ध को ‘नित्य श्राद्ध’ कहते है।

2- नैमित्तिक श्राद्धः- एकोदिष्ट प्रभृति श्राद्ध को ‘नैमित्तिक श्राद्ध’ कहते है।

3- काम्य श्राद्ध- वृद्धि काल में अर्थात् पुत्र जन्म, विवाह जैसे मांगलिक अवसर, नये घर की नींच रखते समय में जो श्राद्ध किया जाए उसे ‘वृद्धि श्राद्ध’ या ‘काम्य श्राद्ध’ कहा गया है।

4- पार्वण श्राद्ध- अमावस्या तिथि अथवा किसी पर्व-त्यौहार के दिन जो श्राद्ध किया जाए, वह ‘पार्वण श्राद्ध’ कहलाता है।

बृहस्पति की याज्ञवल्क्य संहिता में भी उपरोक्त पाँच प्रकार के श्राद्धों का उल्लेख हुआ ही है, किन्तु भविष्य पुराण में बारह प्रकार के श्राद्धों को उल्लेख आया है। यथा
‘नित्यं नैमित्तिक काम्यं वृद्धि श्राद्ध सपिण्डनम्। पार्वण चेति विज्ञये गोष्टयां शुद्ध यर्थमष्टम् कमर्ण।
” नवम् प्राप्त दैविक दशमं स्मृतम्।
यात्रास्वेकादशं प्रोक्तं पुष्टयर्थ द्वादशं स्मृतम्।।’ अर्थात् नित्य, काम्य, वृद्धि, सपिण्डन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धयर्थ श्राद्ध, कर्माग श्राद्ध, दैविक, यात्रार्थ, पुष्टयर्थ, श्रौत स्मार्त श्राद्ध यह बारह प्रकार के श्राद्ध माने गये है।

यह श्राद्ध निम्न प्रकार माने गए है:-

• सपिण्डन श्राद्धः- जिस श्राद्ध में प्रेत पिंड को पितृ पिंड में सम्मिलित किया जाए, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है। यह श्राद्ध दसगात्र श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।

• गोष्ठी श्राद्धः- जो श्राद्ध गोशाला आदि में सम्पन्न में किया जाए, वह ‘गोष्ठी श्राद्ध’ कहे जाते है।

• शुद्धयर्थ श्रद्धः- नव शिशु के आगमन, नामकरण संस्कार आदि के बाद अथवा अशौच के बाद जो शुद्धि निमित्त श्राद्ध रूप में ब्रह्मणों को भोजन कराया जाए, उसे ‘शुद्धयर्थ श्राद्ध’ कहा गया है।

• कर्माग श्राद्धः- गर्भाधान में सोमरस पान के रूप में सीमान्तान्यन संस्कार या पुंसवन संस्कार सम्पन्न किया जाए और उस समय जो श्राद्ध सम्पन्न होता है, वह ‘कर्मांग श्राद्ध’ कहलाता है।

• दैविक श्राद्धः- सप्तम्यादि तिथियों में विशिष्ट हविष्य के द्वारा देवताओं के निमित्त जो हविष्य दिया जाता है, वह ‘दैविक श्राद्ध’ के नाम से जाना जाता है।

• यात्रार्थ श्राद्धः- तीर्थाटन के उपरान्त घर वापिस आकर या तीर्थ में जाकर यात्रा के समय घृत द्वारा जो श्राद्ध किया, वह ‘यात्रार्थ श्राद्ध’ के नाम से जाना जाता है।

• पुष्टयर्थ श्रद्धः- शारीरिक निरोगता अथवा आर्थिक उन्नति के लिए जो श्राद्ध कुल देवी स्थान, कुलदेव स्थान पर बैठकर सम्पन्न किए जाते है, वह ‘पुष्टयर्थ श्राद्ध’ के नाम से जाने जाते है।

ReadAlso;कलयुग में कब और कहां जन्म लेंगे भगवान कल्कि? जानिए विष्णुजी के दसवें अवतरण का उद्देश्य