मोदी सरकार के तीन तालाक पर फैसले के बाद मुस्लिम महिलाएं अपने हक की जीत मानती है। मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को तीन तालाक बिल को मंजूरी दे दी है। इस अध्यादेश के बाद एक बार में एसएमएस, ईमेल, कॉल, या किसी भी माध्यम से तीन तलाक को अपराध माना गया है। साथ ही इसमें कुछ संशोधन भी किया गया है। जिसमें अब मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा। पिछले कुछ समय से यह अध्यादेश राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था। विपक्षी दलों ने इस अध्यादेश में बदलाब की मांग की थी। जिसके बाद बदलाव के बाद बुधवार को इसे पारित कर दिया गया।
तीन तलाक पर क्या है नया अध्यादेश
केंद्र सरकार ने नए अध्यादेश के बाद देश में किसी भी तरह के तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अब तलाक को बोलकर, लिखकर, ईमेल, एसएमएस या व्हाट्सएप के माध्यम को गैर कानूनी माना गया है।
1- बदले नियम के मुताबिक बीवी का पक्ष सुने बिना मजिस्ट्रेट जमानत नहीं दे सकते। इसलिए अब जमानत देना आसान नहीं होगा ।
2- नए कानून के तहत महिला पक्ष को अहमियत दी गई है। इसके तहत पत्नी के प्रयास और रजामंदी से ही समझौता हो सकता है। शिकायत के बाद कोई समझौता अदालत से बाहर नहीं होगा। यदि शौहर सुलह करना चाहता है तो उसे बीवी को मनाना होगा। इसके लिए बीवी और शौहर मिलकर अदालत में समझौते के लिए अपील करेंगे।
3- मामले के दौरान नाबालिग बच्चे मां के संरक्षण में होंगे। पत्नी और बच्चों को गुजारा भत्ता अदालत के निर्देश पर शौहर को देना होगा।
4- कानून में यह प्रावधान है कि इस मामले में मजिस्ट्रेट जमानत तभी देंगे जब पति प्रावधानों के मुताबिक बीवी को मुआवजा राशि देने को राजी हो। इस मुआवजे की राशि अदालत तय करेगी।
5- पुराने मामलों में यह कानून अमल में नहीं आएगा। उस पर उसके प्रावधान लागू नहीं होगा। ऐेसे किसी मामले का निस्तारण उसके कानूनी पहलू को ध्यान में रखकर किया जाएगा।
तलाक : पुराना अध्यादेश और नया अध्यादेश
1- संशोधन के पूर्व यह प्रावधान था कि इस मामले में पहले कोई भी मुकदमा दर्ज करा सकता था। इतना ही नहीं पुलिस खुद संज्ञान में लेकर मामला दर्ज कर सकती है। लेकिन संशोधन के बाद इसमें बदलाव किया गया है। नया संशोधन ये कहता है कि अब पीड़ित का सगा रिश्तेदार ही केसे दर्ज करा सकेगा।
2- पहले गैर जमानती अपराध और संज्ञेय अपराध था। पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती थी। लेकिन अब नया संशोधन यह कहता है कि मजिस्ट्रेट को जमानत देने का अधिकार होगा। हालांकि इसके लिए तीन साल की सजा को बरकरार रखा गया है।
3- पहले समझौते का कोई प्रावधान नहीं था। अब नयाा संशोधन ये कहता है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा।