उत्तराखंड: चमोली में स्थित रुद्रनाथ महादेव मंदिर का जाने इतिहास. पंच केदार में रूद्रनाथ है चौथा केदार..

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रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा मंदिर है जहाँ केवल उनके मुख की पूजा की जाती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर हैं जहाँ केवल शिव के मुख की पूजा की जाती है जबकि बाकि शरीर की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में की जाती है। इसके पीछे महाभारत के समय की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।

रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के जंगलों व पहाड़ों के बीच में एक गुफा में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के पंच केदारों में चतुर्थ केदार है जिसकी चढ़ाई सबसे लंबी है। आज हम आपको रुद्रनाथ मंदिर की कहानी, इतिहास, भूगोल, सरंचना, यात्रा व ट्रैकिंग इत्यादि सब बताएँगे।

रुद्रनाथ मंदिर का इतिहास

मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत के समय में पांडवों के द्वारा किया गया था। रुद्रनाथ मंदिर के निर्माण की कथा के अनुसार जब पांडव महाभारत का भीषण युद्ध जीत गए थे तब वे गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव के पास गए लेकिन शिव उनसे बहुत क्रुद्ध थे।

इसलिए शिवजी बैल का अवतार लेकर धरती में समाने लगे लेकिन भीम ने उन्हें देख लिया। भीम ने उस बैल को पीछे से पकड़ लिया। इस कारण बैल का पीछे वाला भाग वही रह गया जबकि चार अन्य भाग चार विभिन्न स्थानों पर निकले। इन पाँचों स्थानों पर पांडवों के द्वारा शिवलिंग स्थापित कर शिव मंदिरों का निर्माण किया गया जिन्हें हम पंच केदार कहते हैं।

पंच केदार में रूद्रनाथ है चौथा केदार

रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था। बैल का जो भाग भीम ने पकड़ लिया था वहां केदारनाथ मंदिर स्थित हैं। अन्य तीन केदारों में मध्यमहेश्वर (नाभि), तुंगनाथ (भुजाएं) व कल्पेश्वर (जटाएं) आते हैं। रुद्रनाथ मंदिर को पंच केदार में से चतुर्थ केदार के रूप में जाना जाता है।

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रुद्रनाथ मंदिर का भूगोल

यह मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह चमोली जिले के सगर गाँव से 20 किलोमीटर दूर हैं जहाँ का रास्ता पैदल चलकर पार करना पड़ता हैं। समुंद्र तट से रुद्रनाथ मंदिर की ऊंचाई 3,600 मीटर (11,811 फीट) है।

मंदिर का मार्ग अल्पाइन व बुरांस के जंगलों और पेड़ों से घिरा हुआ है जहाँ आपको असंख्य पेड़, पुष्प, पशु-पक्षी देखने को मिलेंगे। मंदिर की चढ़ाई में प्राकृतिक झरने व गुफाएं भी देखने को मिलेंगी। इसकी चढ़ाई के मार्ग को उत्तराखंड का बुग्याल क्षेत्र कहते है। मंदिर भी एक गुफा के अंदर ही स्थित हैं जो इसे सबसे अलग रूप प्रदान करती है।

इसे रुद्रनाथ मंदिर का रहस्य कहा जाये या कुछ और लेकिन यहाँ पर स्थापित शिवलिंग सभी के लिए किसी रहस्य से कम नही है। प्राचीन कथा के अनुसार यहाँ शिव के बैल रुपी अवतार का मुख प्रकट हुआ था, इसलिए इसे स्वयंभू शिवलिंग के नाम से भी जाना जाता है।

शिवलिंग एक मुख की आकृति लिए हुए है जिसकी गर्दन टेढ़ी है। यह शिवलिंग एक प्राकृतिक शिवलिंग है जिसकी गहराई का आज तक पता नही लगाया जा सका है। दूर-दूर से भक्तगण इसी के दर्शन करने और महादेव का आशीर्वाद पाने यहाँ आते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर में स्थित पित्रधार

सगर गाँव से रुद्रनाथ की यात्रा शुरू होती है जो कि 20 किलोमीटर लंबी है। इस मार्ग के अंत में पित्रधार नामक एक पवित्र स्थल आता है जहाँ से मंदिर बस 5 किलोमीटर की उतराई पर स्थित है। इस पित्रधार को पितरों के पिंडदान के लिए पवित्र जगह माना गया है। मान्यता है कि लोग गया की बजाए यहाँ भी अपने पितरों का पिंडदान कर सकते हैं। यहाँ आने वाले लोग पित्रधार में अपने पितरों के नाम के पत्थर रखा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर में वैतरणी नदी

गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा अपनी तेरहवीं के दिन वैतरणी नदी को पार करके ही यमलोक पहुँचती है। रुद्रनाथ मंदिर के पास भी जो नदी बहती हैं, उसे वैतरणी नदी कहा गया है। इसके अलावा इसे बैतरनी नदी या रुद्रगंगा नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे मोक्ष प्राप्ति की नदी भी कहते हैं। वैतरणी नदी में भगवान शिव/ विष्णु की पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित है। कई लोग यहाँ भी पिंडदान करते हैं।

रुद्रनाथ मंदिर के आसपास का दृश्य

मंदिर के आसपास आपको कई अन्य छोटे मंदिर भी देखने को मिलेंगे जो पाँचों पांडवों, माता कुंती व माता द्रौपदी को समर्पित हैं। इसके अलावा मंदिर के आसपास व कुछ दूरी पर छह कुंड स्थित हैं, जिनके नाम हैं:

  • नारद कुंड
  • सरस्वती कुंड
  • तारा कुंड
  • सूर्य कुंड
  • चंद्र कुंड
  • मानस कुंड

रुद्रनाथ मंदिर के अन्य नाम 

नीलकंठ महादेव

भगवान शिव का एक अन्य नाम नीलकंठ भी हैं क्योंकि समुंद्र मंथन के समय निकले 14 रत्नों में से एक हलाहल विष भी था जिसे भगवान शिव ने पिया था। इसके बाद से उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ गया था।

रुद्रमुख

रुद्रनाथ के साथ-साथ इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग को रुद्रमुख के नाम से भी जाना जाता है। इसमें रूद्र भगवान शिव के रोद्र रूप को समर्पित एक नाम है जबकि मुख का अर्थ मुहं होता है।

रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा

रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा मुख्यतया तीन जगहों से शुरू होती हैं व हर स्थल से मंदिर की यात्रा करने का अपना एक अलग अनुभव हैं। यह यात्रा सगर गाँव, मंडल गाँव या हेलंग से शुरू होती हैं। मुख्यतया लोग इसे सगर गाँव से ही शुरू करते हैं। यात्रा में कम से कम 3 से 4 दिन का समय लगता हैं, इसलिए आप अपने रहने और खाने-पीने का सामान साथ में लेकर चले क्योंकि ऊपर इसकी व्यवस्था नामात्र के बराबर होती हैं।

रुद्रनाथ मंदिर खुलने व बंद होने का समय

मंदिर के कपाट भक्तों के लिए प्रातः काल 6 बजे के पास खुल जाते हैं व संध्या 7 बजे के आसपास बंद हो जाते हैं। रुद्रनाथ मंदिर में पूजा का समय सुबह की आती 8 बजे होती है। फिर संध्या में 6:30 बजे के पास आरती की जाती है। इसके कुछ देर बाद मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।