यह पर्वतीय पौधा करता हैं तनाव सम्बंधित दुष्प्रभावों को कम, शोध में हुआ खुलासा

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उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अनाज मंडुवा मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना जा रहा है, सोधो से पता चला है मंडवे के पौधे के तने का रस तनाव के दुष्प्रभाव को रोकने में बेहद फायदेमंद है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक शोध में यह खुलासा हुआ है। पहली बार परिषद के अल्मोड़ा स्थित विवेकानंद पर्वतीय अनुसंधान संस्थान ने मंडुवे के तने के रस पर शोध किया, जिसमें पाया गया कि मुंडवे के हरे तने से निकलने वाले रस में पर्याप्त पोषक तत्व व एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसके झा ने मंडुवा के तने के रस पर किए शोध के विश्लेषण को साझा किया। रिपोर्ट के अनुसार, मंडुवा की 11 प्रजातियों के हरे तने से निकलने वाले रस पर शोध किया गया। तने से रस निकालकर उसी दिन प्रयोगशाला में रस की मात्रा और कई पोषक तत्वों की जांच की गई, जिसमें मंडुवे के हरे तने में औसतन 76.9 प्रतिशत रस और 3.1 प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाया गया।

मंडवे में पोषक तत्व मौजूद

शोध में तने के रस की मिठास औसतन 31 डिग्री ब्रिक्स पाई गई। इसका अर्थ यह कि 100 ग्राम रस में 31 ग्राम सुक्रोज घुला हुआ है। इसके अलावा एंटी ऑक्सीडेंट और मेटाबोलाइट की मात्रा 0.11 से 0.49 मिलीग्राम तक है। इस रस में पोटैशियम, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, तांबा, आयरन, मैंगेनीज समेत अन्य पोषक तत्व भी मौजूद हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, ये प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट तनाव के हानिकारक प्रभाव को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जो मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि मंडुवे के तने के रस में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मौजूद हैं। भविष्य में तने के रस से मूल्य वर्धित उत्पाद बनाने की शोधपरक रणनीति बनाई जा सकती है।

राज्य कर विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी एसपी नौटियाल ने मार्च 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर मंडुवे के तने के रस पर शोध करने का आग्रह किया था। जब मंडुवे के पौधे पर बालियां निकलनी शुरू होती हैं, तो उस समय हरे तने में मिठास रस होता है। गांवों में लोग गन्ने की तरह मंडुवे के तने को स्वाद लेते हैं, लेकिन आज तक इस पर कोई शोध नहीं हुआ है। नौटियाल की इस पहल के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने शोध किया।