शपथ ग्रहण और महागठबंधन

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हिन्दी हृदय भूमि के तीन प्रदेशों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों और मंत्रिमण्डलों के सदस्यों के शपथ ग्रहण समारोह सोमवार को सम्पन्न हो गए। इन समारोहों पर टिप्पणी करने की सामान्य स्थितियों में कोई जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि यह एक संवैधानिक आवश्यकता होती है।

नवागत मुख्यमंत्री अथवा मंत्री अपने पद एवं गोपनीयता की शपथ लेते हैं कि वे संविधान के अनुरूप पक्षपात से परे रहकर अपने दायित्वों का निर्वहन करेंगे। लेकिन टिप्पणी करने की जरूरत इसलिए पड़ रही है कि देश की राजनीति के वर्तमान ध्वज वाहकों ने ऐसे अवसरों का भी विशेष राजनीतिक संदेश देने में उपयोग किया है।

याद कीजिये कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से जनता दल (एस) की एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व में बनी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर भारतीय जनता पार्टी के विरोधी दलों के नेता एकत्र हुए। उन्होंने तस्वीरें खिंचवाईं और देश को यह संदेश देने का प्रयास किया कि भाजपा विरोधी महागठबंधन आकार ले रहा है। इस तस्वीर में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और बसपा सुप्रीमो मायावती की नजदीकी का सभी ने संज्ञान लिया।

ये शपथ ग्रहण समारोह अपने आप में इसलिए भी विशिष्ट हैं क्योंकि ये एक ही दिन तीनों राज्यों की राजधानियों जयपुर, भोपाल और रायपुर में सम्पन्न हुए और तीनों जगह कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए फिलहाल तैयार विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता इनमें शामिल होने के लिए दिन भर दौड़ लगाते रहे। इसके बावजूद यह शो उतना प्रभावी नहीं रहा जितना कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में रहा था।

इसकी सबसे बड़ी वजह रही बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समारोह में शिरकत न करना। राजनीतिक क्षेत्रों में अनुमान लगाया जा रहा है कि द्रमुक प्रमुख एम. के. स्टालिन के इस बयान से कुछ विपक्षी नेताओं के कान खड़े हो गए हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर उनकी पहली पसंद हैं। स्टालिन के इस बयान के कुछ ही देर बाद दिल्ली में विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता ने कहा सपा, तृणमूल कांग्रेस, बसपा, तेलुगु देशम पार्टी और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी इससे सहमत नहीं हैं।

राजनीतिक दलों को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि एक ही बात के कई पहलू होते हैं। जिस ईवेन्ट से वे जनता को लुभाना चाहते हैं, वही ईवेन्ट खराब प्रदर्शन से उनके लिए नुकसानदेह भी हो सकती है। हर राजनीतिक दल के लिए वोट की राजनीति अपने अस्तित्व के लिए अनिवार्य है, लेकिन इसके लिए राष्ट्र के सतत निर्माण और उसके सर्वांगीण विकास की राजनीति की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। दलों के बीच तालमेल राजनीतिक विचारधारा और नीतियों व कार्यक्रमों के आधार पर ही होने चाहिए।

अन्यथा स्थिति में यह जनता के साथ धोखा होगा। हालांकि बसपा और सपा ने इन राज्यों में कांग्रेस की नवगठित सरकारों को अपना समर्थन तो दिया है। लेकिन स्टालिन के बयान की जिस प्रकार प्रतिक्रिया हुई है, वह महागठबंधन के आकार ग्रहण करने में बाधक ही बनेगी। अतएव, क्या यह अच्छा नहीं होगा कि शपथ ग्रहण समारोहों को महागठबंधन की राजनीति से मुक्त रखा जाए।

अनिल गुप्ता

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