सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा, रिकवरी नोटिस मिला तो देंगे अदालत में चुनौती

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संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ गत 19 दिसंबर को राजधानी लखनऊ में प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन्हें जारी होने वाली रिकवरी नोटिस को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का ऐलान किया है। हिंसा के मामले में आरोपी बनाए गए पूर्व आईपीएस अधिकारी आर एस दारापुरी ने गुरुवार को ‘भाषा’ को बताया कि उन्हें ऐसी खबरें मिली हैं कि हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए उन्हें रिकवरी नोटिस जारी किया गया है।

मगर उन्हें अभी तक ऐसा कोई नोटिस नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें रिकवरी का कोई नोटिस मिलता है तो वह उसे उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। दारापुरी ने बताया कि इससे पहले गत 30 दिसंबर को उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया था जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि वह 19 दिसंबर को वारदात के दिन घर में नजरबंद किए गए थे। ऐसे में उनके खिलाफ हिंसा भड़काने का आरोप पूरी तरह से गलत है।

उधर, इसी मामले में आरोपी बनाई गई सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जाफर ने भी कहा कि सरकार अगर उन्हें रिकवरी नोटिस जारी करती है तो वह उसे अदालत में चुनौती देंगी। उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश सरकार असंवैधानिक तरीके से लोगों को रिकवरी नोटिस भेज रही है। सदफ ने कहा कि उनके खिलाफ हिंसा भड़काने के कोई सबूत नहीं हैं, बल्कि फेसबुक पर पड़ा वीडियो इस बात का गवाह है कि उन्होंने पुलिस को बताया था कि दंगाई कौन हैं।

सदफ ने कहा कि इसके बावजूद पुलिस ने उन अराजक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय खुद उन्हें ही गिरफ्तार कर गंभीर प्रताड़ना दी। गौरतलब है कि गत 19 सितंबर को लखनऊ के परिवर्तन चौक इलाके में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए अपर जिलाधिकारी (पूर्वी) केपी सिंह ने पिछले सोमवार को 28 लोगों को 63 लाख रुपये की वसूली के आदेश दिए हैं।

 20 मार्च तक जमा करने में असफल रहने पर लोगों की संपत्ति कुर्क कर इस नुकसान की भरपाई की जाएगी। जिन 28 लोगों से यह वसूली की जानी है उनमें सदफ और दारापुरी के साथ-साथ रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, सामाजिक कार्यकर्ता रोबिन वर्मा, दीपक कबीर और पवन राव अंबेडकर भी शामिल हैं।