(आंदोलन के दौरान जिस तरह से जीयो का नुकसान और एयटेल का फायदा हुआ, उससे ये सवाल उठना लाजमी है कि आंदोलन किसके इशारे पर और क्यों किया गया)
जुलाई, अगस्त 2020 में कांग्रेस ने कृषि बिल के खिलाफ अपनी पूरी ताकत झोंक दी, केंद्र था पंजाब । और फिर कांग्रेस शासित पंजाब में कांग्रेस समर्थित और अन्य पार्टियों के सदस्यों ने मिलकर जनता को इकट्ठा करना शुरु किया नतीजतन एक सैलाब उमड़कर किसान आंदोलन के रुप में आकार लेना शुरु हुआ।
आंदोलन में तीन बातें (या अफवाहें) मुख्य थीं जिसमें पहली थी
एमएसपी की अफवाह की सरकार एमएसपी खत्म करना चाहती है।
दूसरा मुद्दा था खेती के निजीकरण का जिसमें दावे किए गए कि पूरे देश में सिर्फ दो उद्योगपतियों अडानी और अंबानी के फायदे के लिए मोदी सरकार ने कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग चालू की है।
और
तीसरा मुद्दा था कि मंडियां खत्म करना चाहती है केंद्र सरकार।
तीनों मुद्दों को कांग्रेस, सीपीआईएम के पंजाब स्थित नेताओं ने कुछ इस तरह से प्रस्तुत किया की पूरा ध्यान तीन लोगों पर केंद्रित हो गया पहला मोदी सरकार, दूसरा अंबानी और तीसरा अडानी । दावा हुआ कि अगर नए तीन कृषि बिलों के लागू होते ही पंजाब समेत पूरे देश की खेती अंबानी और अडानी ग्रुप की गुलाम बन जाएगी औऱ ये सारी जमीनें कब्जा लेंगे।
गांव के लोगों को भोले-भाले कहा जाता है और इस बार भी यही साबित हुआ, राजनीतिक दलों के बहकावों में पंजाब के लोग आ गए और ग्रामीणों का हुजुम उमड़ पड़ा। दिल्ली पहुंचते ही इनका ठिकाना बना सिंघू और टिकरी बॉर्डर के पास और फिर अफवाहों की मशीनरी सिंघू बॉर्डर के रास्ते दिल्ली से सीधे पंजाब के गांव गांव तक घुस गई, हरियाणा और राजस्थान के कई इलाके भी इन अफवाहों के शिकार हो गए और फिर किसानों के हित को लेकर शुरु हुआ आंदोलन मोबाइल कंपनियों की कॉर्पोरेट वॉर का हिस्सा नजर आने लगा (जिसके बारे में अभी तक भारत की जनता ने सिर्फ सुना ही था)
जिस तरह से आंदोलनकारियों ने एक एक कर सभी धरनास्थलों पर जीयो के मोबाइल सिम के नए पैक खरीदकर उनकी पैकिंग के लिफाफे जलाए गए और फिर सिम को काटने की तस्वीरें और वीडियो वायरल की गईं, इसे सोची समझी रणनीति ही कहा जा सकता है। आंदोलन के नेताओं ने दावा किया कि मोदी सरकार कानून तभी वापस लेगी जब अंबानी की कंपनी को बर्बाद कर दोगे। जहिर है कि जिस तरह से आंदोलनकारियों ने विशेष कंपनियों के खिलाफ मुहिम चलाई, उससे कहीं ना कहीं किसी अन्य कंपनी को तो फायदा मिलना ही था। आंदोलन में गुलाम जैसे शब्दों का भी खूब इस्तेमाल किया गया और देखते ही देखते पंजाब में राजनीतिक एजेंटों ने जीयो से अपना मोबाइल नंबर पोर्ट करवाने का प्रचार प्रसार चालू कर दिया। इस बात में कोई शक नहीं कि पंजाब मेंअक्टूबर 2020 से चली जीयो विरोधी स्कीम काफी कामयाब हुई, शुरुआती दिनों में हजारों लोगों के नंबर जीयो से पोर्ट भी हुए।
दिसंबर आते आते इस बात पर जीयो की ओर से भी मुहर लग गई कि साजिश के तहत लोगों से उसकी कंपनी के नंबर पंजाब में तेजी से पोर्ट करवाए जा रहे हैं। 11 दिसंबर को ये सूचना जीयो ने टेलिकॉम विभाग को दी और इसका फायदा फिर से आंदोलन के नेताओं को मिला। उन्होंने इस बात को कुछ इस तरह से प्रचारित करना शुरु कर दिया कि उनका या कहें किसानों का निशाना सही जगह लग रहा है, अब जैसे ही अंबानी परेशान होगा, मोदी झुककर सारे कृषि संशोधन बिल वापस ले लेगा। पागलपन की हदें पार कर चुके पंजाब के आंदोलन के नेताओं ने नया तरीका भी इजाद कर दिया, टावर बंद करने का। जहां तहां 5-10 लोगों की भीड़ लेकर नेताओं के गुर्गों ने जीयो के टावर्स पर जाकर बिजली बंद करनी, तारों को काटना शुरु कर दिया, ताकि इलाके में लोगों के पास जीयो का सिग्नल ही ना आ पाए। साजिश पूरी तरह से कामयाब हुई और पंजाब में लगभग 1500 टावर को नुकसान पहुंचाया गया।
नतीजा वही होना था, जो हुआ, वर्क फ्रोम होम कर रहे लोग बौखलाहट में अपना नंबर पोर्ट करवाने के लिए दौड़ेने लगे, लेकिन यहां भी उनकी मुसीबत ये थी कि उन्हें पोर्ट करने के लिए किसी सिग्नल वाले इलाके में जाकर ही पोर्ट करना था। शायद ये भी एक वजह है कि पंजाब में किसान आंदोलनकारियों ने सोचे समझे तरीके से उन जगहों के टावर सुरक्षित रखे, जहां पोर्टिंग का मैसेज भेजा जा सकता था। ताकि यूजर आसानी से पोर्ट करवाकर दूसरी कंपनी में जा सके।
अब सवाल ये है कि आंदोलनस्थल पर कौन सी कंपनी के लिए कनेक्शन पोर्ट करवाने पर बल दिया जा रहा था, तो जवाब है पंजाब के ही मूल निवासी सुनील भारती मित्तल की कंपनी एयरटेल में।
जहां, जितने आंदोलनस्थल थे उनमें से ज्यातर में किसान नेताओं ने एयरटेल के स्टॉल लगाए हुए दिखे, जहां लोग जाकर पोर्टिंग कर अपना एयरटेल में नंबर मुफ्त पा रहे थे। आंदोलनस्थलों पर लगी इन स्टॉल्स में भीड़ भी खूब देखी गई। मोबाइल चार्जिंग की सुविधा भी इन्हीं मोबाइल पोर्टिंग स्टॉल्स के इर्द गिर्द दी जाती थी। मतलब ये कि आंदोलन किसानों का चल रहा था और एक खास कंपनी के ग्राहकों में रॉकेट की रफ्तार से इजाफा होता जा रहा था। मोबाइल यूजर्स का डेटा रिलीज होने पर भी यही साफ दिखाई पड़ा कि आंदोलन में सबसे ज्यादा फायदा अगर किसी को हुआ है तो वो है एयरटेल कंपनी को।
जनवरी के अंत में आई टीआरएई की रिपोर्ट बताती हैं कि नवंबर के बाद से ही एयरटेल के ग्राहकों में तेजी से बढ़ोतरी हुई जबकि जीयो ही नहीं, वोडाफोन-आईडिया को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा।
नवंबर में एयरटेल के 4.37 मिलियन यानी लगभग 43 लाख 70 हजार ग्राहक बढ़े
जीयो को लगभग 1.93 मिलियन यानी लगभग 19 लाख 30 हजार ग्राहकों का नुकसान हुआ
और
वोडाफोन-आईडिया को भी लगभग 2.80 मिलियन यानी 20 लाख 80 हजार ग्राहकों का नुकसान झेलना पड़ा।
अब सवाल उठता है कि किसान आंदोलन के सबसे उग्र होने की शुरुआत में जीयो का नुकसान होना तो तय था, लेकिन वोडाफोन आईडिया को नुकसान कैसे हुआ, ये समझ से परे की बात है। लेकिन एक बात तय है कि किसान आंदोलन के साथ ही एयरटेल की किस्मत चमक गई। अब इन मोबाइल धारकों की बिलिंग का न्यूनतम अनुमान भी लगाएं और मात्र 200 रुपए प्रतिमाह के रीचार्ज की दर लगाएं तो आप अनुमान लगा सकते हैं कि एयरटेल को अपने मौजूदा नेटवर्क पर 43.70 लाख नए ग्राहकों से कितना फायदा हुआ
नए ग्राहक | रीचार्ज (औसत) | नई बिलिंग(औसत) |
4370000 | 200 | 874000000 |
43 लाख 70 हजार | 200 रुपए | 87 करोड़ 40 लाख रुपए |
जाहिर है कि इस आंदोलन से एयरटेल को प्रतिमाह लगभग 90 लाख रुपए का फायदा हुआ, जिसे सालाना गिनेंगे तो ये आंकड़ा 10 अरब से भी ज्यादा तक पहुंच सकता है। किसानों के फायदे के नाम पर चालू हुआ आंदोलन किसी और के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ हो या नहीं, लेकिन एयटरेल के लिए ये आंदोलन किसी वरदान से कम नहीं है।