देश सेवा और पिता का सपना लेकर घर से निकली बेटी को नहीं पता था कि वह अपने पिता को आखिरी बार देख रही है. अग्निपथ योजना के तहत भारतीय नौसेना में अग्निवीर बन गई. परिवार, गांव, मां और बहुत लोग थे जो उसकी इस उपलब्धि का जश्न मना रहे थे लेकिन जो पिता बेटी के कामयाब होने का सपना देख रहा था वह उसे सच होते नहीं देख पाया. परिवार ने भी बेटी को पिता के गुजर जाने की खबर देर से दी. एक तरफ पिता के सपना पूरा करने की खुशी तो दूसरी तरफ उनके न रहने का गम… ऐसी है छत्तीसगढ़ की 19 साल की बेटी हिशा बघेल की कहानी.
19 साल की हिशा बघेल, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के बोरीगरका गांव की रहने वाली है. अग्निवीर के तहत भारतीय नौसेना में भर्ती हुई और जब वह अपनी 16 सप्ताह की कड़ी ट्रेनिंग पूरी करके पहली बार गांव लौटी तो स्वागत में गांव वालों व दोस्तों, रिश्तेदारों ने उसे सिर आंखों पर बैठा लिया. स्वागत, जुलूस के रूप में 2 घंटे रैली निकाली गई.
अग्निवीर हिशा बघेल के पिताजी संतोष बघेल खुद ऑटो चलाते थे. कैंसर बीमारी से 5 मार्च 2023 को निधन हो गया, लेकिन परिजनों ने हिशा को पिता की मौत की खबर नहीं दी. उसे कुछ समय बाद बताया कि उसके पिता अब नहीं रहे. संतोष बघेल का सपना रहा था कि बेटी हिशा पढ़-लिखकर कामयाब हो जाए, सरकारी नौकरी पाए. वहीं, हिशा की इच्छा सेना में जाकर देश की सेवा करने की रही और दोनों का यह सपना पूरा हुआ. हिशा का चयन इंडियन नेवी में हुआ और उसके बाद उनकी ट्रेनिंग उड़ीसा के चिल्का में 16 सप्ताह तक हुई. हिशा ट्रेनिंग पूरी करके जैसे ही अपने गांव पहुंची तो हर कोई उनके स्वागत को आतुर था.
हिशा के गांव की सीमा पर पहुंचने से पहले लोग उसके स्वागत के लिए खड़े थे और उसके पहुंचते ही डीजे की धुन में नाचने लगे और लोग उसे मालाएं पहनाने लगे तो कहीं गांव की महिलाओं ने घर से निकलकर उसकी आरती उतार कर टीका भी लगाया. हिशा जब घर पहुंची तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने जैसे ही अपने माता को देखा तो सैल्यूट मारकर उनके गले लग गई. बेटी और मां के इस भावपूर्ण मिलन को देखकर हर किसी की आंखें नम हो गई. स्वर्गीय पिता के फोटो में नमन कर उन्हें याद किया.
दुर्ग जिले के बोरीगारका गांव की बेटी हिशा बघेल छत्तीसगढ़ प्रदेश की पहली ‘महिला अग्निवीर’ बन गई है. हिशा ने अग्निवीर के तहत नेवी में ओडिशा के चिल्का में इंडियन नेवी से सीनियर सेकेंडरी रिक्रूट का 16 सप्ताह का प्रशिक्षण लिया हैं. उनकी यह ट्रेनिंग मार्च तक चली. 28 मार्च को वह देश की सुरक्षा के लिए तैयार हो गई. खास बात यह है कि हिशा ने अग्निवीर बनने के लिए खुद को तैयारी की थी. इसके लिए वह स्कूल के दिनों से ही हर दिन दौड़ और योग के जरिए खुद को तैयार कर रही थीं.
दुर्ग जिले के छोटे से गांव बोरीगारका की रहने वाली हिशा बघेल मिसाल बन गई है. उसने गांव के ही स्कूल में पढ़ने के दौरान सेना में जाने का सपना देखा था. इसके लिए तैयारी भी तभी से शुरू कर दी. स्कूली शिक्षा पूरी कर उतई महाविद्यालय में प्रवेश लिया तो उनके सपनों को उड़ान मिली. यहां पर हिशा पहले एनसीसी कैडेट बनी. इसके बाद गांव में युवकों के साथ दौड़ने का कठोर अभ्यास किया. ऐसा करने वाली वह दुर्ग जिले व गांव की पहली और अकेली लड़की थी.
भारत सरकार की अग्निवीर योजना ने हिशा के सपनों को पंख दे दिए. जैसे ही सितंबर में नौसेना के लिए अग्निवीर योजना के तहत भर्ती शुरू हुई तो हिशा ने भी आवेदन कर दिया था. हिशा की फिटनेस को देखते हुए अफसरों ने उसका चयन कर लिया. हिशा की इस उपलब्धि पर उसके गांव के स्कूल सहित कॉलेज में खुशी की लहर है. गांव के लोग बेटी से काफी खुश हैं. हिशा की इस उपलब्धि को देखते हुए गांव के अन्य बेटे-बेटियों ने भी सेना में जाने के लिए अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं.
हिशा की मां सती बघेल बताती हैं कि उसके स्वर्गीय पिता संतोष बघेल ने बच्चों की पढ़ाई में कोई कसर नही छोड़ी है. संतोष पिछले 12 सालों से कैंसर से जूझते हुए 05 मार्च 2023 को निधन हुआ हो गया. उनके इलाज और बच्चों की पढ़ाई के लिए जमीन और जीवन यापन कराने वाले ऑटो को भी बेच दिया था. वहीं हिशा भी अपने ट्यूशन की फीस देने के लिए खुद घर में ट्यूशन पढ़ाती थी. अब हिशा अग्निवीर बन चुकी हैं. भारतीय नौसेना में अग्निवीर योजना के तहत कुल 560 पदों पर लड़कियों की भर्ती होनी थी. इसमें पहले चरण में 200 लड़कियों का चयन किया गया, जिसमें हिशा बघेल भी शामिल हैं. वह छत्तीसगढ़ की पहली महिला अग्निवीर के रूप में मेरिट और फिजिकल टेस्ट के आधार पर चुनी गईं.
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