पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित 2000 साल पुराना हिंगलाज माता का मंदिर

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हिंगलाज माता का मंदिर

हिंगलाज माता का मंदिर-पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित 2000 साल पुराना हिंगलाज माता का मंदिर है|
कोरोना महामारी का  समय चल रहा  है. और पूरी दुनिया इसे लेकर सतर्क भी है. इसी दौरान कल से चैत्र नवरात्र की भी शुरुआत हो चुकी है.

पाकिस्तान में देवी की एक ऐसी शक्तिपीठ है, जहां इन नौ दिनों में दुनियाभर से हजारों – लाखों श्रृद्धालु पहुंचते थे. इस बार निश्चित तौर पर वैसा नहीं होगा लेकिन इस शक्तिपीठ की मान्यता दुनियाभर में हिंदुओं के बीच सबसे ज्यादा है. चैत्र नवरात्र की धूम है. देवी मां को सभी रूपों में सजाया और पूजा जा रहा है. नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की आराधना, व्रत और अन्य धार्मिक कार्यक्रम होते हैं. इस मौके पर शक्तिपीठों में भक्तों की भीड़ भी होती है. हालांकि ये समय कोरोना है. इसके बाद भी श्रृद्धालु मंंदिरों में पहुंच रहे हैं. इसी मौके पर हम बताने जा रहे हैं एक खास शक्तिपीठ के बारे में. इसे दुनियाभर में देवी के भक्तों के बीच खास जगह मिली हुई है. देवी की ये शक्तिपीठ भारत में नहीं पाकिस्तान में है.

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता मंदिर की. इसे हिंगलाज भवानी मंदिर भी कहा जाता है.
यह मंदिर 2000 साल से भी अधिक पुराना है. पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर बसा यह मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. यहां जाने का रास्ता बहुत मुश्किल है लेकिन भक्त और श्रद्धालु साल भर इस मंदिर में आते हैं. नवरात्रों के दौरान यहां मेला लगता है जहां हजारों की संख्या में हिंदू और मुसलमान दुनियाभर से आते हैं.

भगवान शिव और देवी सती का विवाह

इस मंदिर की कहानी बहुत प्राचीन है. भगवान शिव और देवी सती का विवाह हो चुका था.
लेकिन देवी सती के पिता दक्ष ने भगवान शंकर का अपमान किया तो देवी सती ने आत्मदाह कर लिया. जब शंकर जी को अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो गुस्से में भर उठे. आत्मदाह के बाद देवी के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे,
जहां जहां ये गिरे वहां शक्तिपीठ बनी.

हिंगलाज मंदिर वहां स्थित है जहां देवी सती का सिर गिरा था.
इसीलिए मंदिर में माता अपने पूरे रूप में नहीं दिखतीं, बल्कि उनका सिर्फ सिर नजर आता है. चूंकि सिर का महत्व शरीर में सबसे ज्यादा होता है,
लिहाजा हिंगलाज माता का महत्व भी शक्तिपीठों में सबसे ज्यादा माना जाता है.

यहां पर हिंदू-मुसलमान की एकता साफ नजर आती है. मुसलमान भी देवी के सामने सिर झुकाए नजर आते हैं. पाकिस्तानियों के लिए यह मंदिर नानी का मंदिर है.
नानी के इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तिभाव से आते हैं.
मंदिर की प्रबंधक कमेटी में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं. यहां पहुंचने का रास्ता जितना मुश्किल है,?
उतना ही सुन्दर भी. यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है लेकिन प्राचीन बहुत है. ये गुफा के अंदर है.

क्या भारतीय यहां दर्शन के लिए जा सकते हैं? इस सवाल का जवाब यही है कि जा तो सकते हैं  लेकिन जरूरी कागजात के बाद ही. वहां जाने के लिए भारतीयों को पाकिस्तान सरकार से परमिशन लेनी पड़ती है. अगर पासपोर्ट वीजा सबकुछ सही हो तो पाकिस्तान सरकार अनुमति दे सकती है. यह शक्तिपीठ बहुत सिद्ध है. दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह भी मान्यता है कि जो भी भक्त 10 फीट लंबी अंगारों की एक सड़क पर चलते हुए
माता के दर्शन करने पहुंचे, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी.

देवी पुराण के मुताबिक कितने शक्तिपीठ है|

देवी पुराण के मुताबिक, 51 शक्तिपीठ में से सिर्फ 42 भारत में स्थित हैं.
इसके अलावा पांच देशों में 9 शक्तिपीठ है.
इनमें पाकिस्तान में एक, बांग्लादेश में चार, श्रीलंका में एक, तिब्बत में एक तथा नेपाल में दो शक्तिपीठ हैं.
पाकिस्‍तान में हिंगलाज शक्तिपीठ, तिब्‍बत में मानस शक्तिपीठ, श्रीलंका में लंका शक्तिपीठ,
नेपाल में गण्डकी शक्तिपीठ व गुह्येश्वरी शक्तिपीठ, बांग्लादेश में सुगंध शक्तिपीठ, करतोयाघाट शक्तिपीठ, चट्टल शक्तिपीठ और यशोर शक्तिपीठ है.
भारत से काफी लोग विदेशों में स्थित इन शक्तिपीठों के दर्शन के लिए जाते रहते हैं.