हालांकि 2019 लोकसभा चुनाव में अभी थोड़ी देर है लेकिन राजनीतिक सरगर्मी अपने उफान पर है। जहां बीजेपी सबका साथ और सबका विकास की बात कर रही है तो वहीं विपक्ष का कहना है कि ये एक चुनावी लॉलीपॉप है जिसे केंद्रीय सरकार हड़बड़ाहट में आम चुनावों से पहले लागू कराना चाहती है।
आरक्षण की मांग एक ऐसी चिंगारी है, जिसके लगते ही उसे आग का रूप लेने में तनिक भी समय नहीं लगता है। फिर चाहें वो अनुसूचित जाति हो जाट हो मराठा हो गुर्जर हो या फिर पटेल आरक्षण। बता दें कि पहली बार ऐसा हुआ है कि लोकसभा से कोई बिल पास हो गया और किसी तरह का कोई धरना या कोई विरोध देखने को नहीं मिला हो।
ये आरक्षण सवर्णों को नहीं बल्कि जनरल कैटेगरी को मिला है इसमें वो सभी लोग आते हैं जो कि SC, ST, OBCके आरक्षण में नहीं हैं लेकिन जनरल कैटेगरी में गरीबी के शिकार हो रहे हैं। इसलिए इसमें जनरल कैटेगरी के हिंदू सवर्ण, मुस्लमान और ईसाई के साथ अन्य धर्म के लोग भी आएंगे।
इस बिल की जनरल कैटेगरी में भी आरक्षण का लाभ लेने के लिए कई पैमाने तय किए गए हैं। अगर आपकी आय 8 लाख प्रतिवर्ष से ज्यादा है, दूसरा खेती के लिए 5 एकड़ से ज्यादा जमीन है, तीसरा 100 वर्ग फीट घर बनाने की जमीन है, चौथा 10 वर्ग फीट म्यूनिसपल एरिया में जमीन है और पांचवा 1000 वर्ग फीट से ज्यादा बड़ा घर हो तो आपको इस आरक्षण के अंतर्गत लाभ नहीं मिलेगा।
साथ ही इस बिल को लागू करने के लिए अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन भी करना पड़ेगा जो कि संविधान का 124वां संशोधन कहलाएगा। बता दें की अनुच्छेद 15 समानता के अधिकार बात करता है तो वहीं अनुच्छेद 16 नौकरियों में समानता का अधिकार प्रदान करता है।
जहां विपक्षी पार्टियों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के ठीक तीन महीने पहले लाए गए इस बिल के जरिए बीजेपी नाराज़ सवर्णों को खुश करना चाह रही है। तो वहीं कांग्रेस को ये डर सता रहा है कि कहीं बीजेपी इसका फायदा न उठा ले। अब लोकसभा के बाद यह बिल राज्यसभा में जाना है जिसका सत्र एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया है।
वैसे तो सवर्ण आरक्षण बिल में कई पेंच हैं, अब ये देखना दिलचस्प होगा कि ये बिल राज्य सभा से पास होकर अमली जामा ले पाता है या नहीं।
प्रियंका अस्थाना