“वंतारा: करुणा का वन” — अनंत अंबानी पर एक प्रेरक कहानी

3

मुंबई की चकाचौंध वाली दुनिया से दूर, गुजरात के जंगलों के बीच एक ऐसा स्थान बसाया गया था जहाँ इंसान नहीं, बल्कि जानवरों की धड़कनों का संगीत गूंजता था। नाम था— वंतारा।

इस अद्भुत अभियान के पीछे थे अनंत अंबानी, जिनकी आँखों में हमेशा से एक अलग चमक थी—दया की, संवेदना की, और उस दुनिया के लिए गहरे प्रेम की जो इंसानों की हलचल के बीच अक्सर खो जाती है।

बचपन में अनंत ने कई बार घायल पक्षियों को अपने हाथों में उठाया था। एक बार उन्होंने एक हाथी को सड़क किनारे घायल देखा, उसकी आँखों में दर्द और उम्मीद का भंवर… उसी दिन अनंत ने तय कर लिया था—

“अगर मैं कुछ कर सकता हूँ, तो दुनिया में कोई भी जीव अकेला या असहाय नहीं रहेगा।”

वर्षों बाद, इसी भावना ने जन्म दिया—वंतारा, दुनिया के सबसे बड़े और सबसे संवेदनशील पशु संरक्षण प्रोजेक्ट्स में से एक।

वंतारा की धरती

वंतारा सिर्फ एक सेंचुरी नहीं था — यह एक घर था।

यहाँ घायल हाथियों के लिए पुनर्वास केंद्र था, जहाँ उनकी देखभाल उतनी ही स्नेह से होती थी जैसे माँ अपने बच्चों की करती है।
यहाँ बचाए गए शेर थे, जिनकी आँखों में कभी डर था लेकिन धीरे-धीरे वह भरोसे में बदल गया।
यहाँ पक्षियों के लिए हवाई क्लिनिक था, जहाँ छोटे-छोटे परिंदों की धड़कनों को भी गंभीरता से सुना जाता था।

हर पेड़, हर पगडंडी, हर झोपड़ी—अनंत की संवेदना का निशान थी।
एक मिशन, एक संदेश

वंतारा आज सिर्फ एक रिज़र्व नहीं, बल्कि इंसानियत का संदेश देता है—
कि दया सबसे बड़ी संपत्ति है।
कि प्रकृति को बचाना दुनिया को बचाना है।
और किसी भी जीव का दर्द, चाहे वह बोल न सके, नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।

अनंत अंबानी ने यह साबित किया कि बड़ी उपलब्धियाँ हमेशा बड़े शहरों से नहीं, बड़े दिलों से जन्म लेती हैं।