
उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में बढ़ते जीएसटी चोरी के मामलों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए एक महत्वपूर्ण और तकनीकी रूप से सशक्त कदम उठाया है। राज्य में अब पहली डिजिटल फॉरेंसिक लैब स्थापित की जाएगी, जिसकी लागत लगभग 12.9 करोड़ रुपये होगी। इस प्रस्ताव को हाल ही में राज्य कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। यह अत्याधुनिक लैब राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गुजरात के सहयोग से संचालित की जाएगी और राज्य कर विभाग की जांच प्रक्रिया को तेज, सटीक और तकनीकी रूप से मजबूत बनाएगी।
अब तक जीएसटी चोरी से जुड़े मामलों में जब्त किए गए मोबाइल, लैपटॉप, हार्ड ड्राइव और अन्य डिजिटल उपकरणों की जांच के लिए उन्हें राष्ट्रीय स्तर की लैब्स में भेजना पड़ता था, जिससे कार्रवाई में देरी होती थी। लेकिन इस नई लैब की स्थापना से जांच प्रक्रिया न केवल तेज होगी, बल्कि राज्य के भीतर ही डिजिटल साक्ष्यों की फॉरेंसिक पड़ताल संभव हो पाएगी। इससे विभाग को तुरंत और ठोस कार्रवाई करने में मदद मिलेगी।
राज्य कर विभाग के अधिकारियों के अनुसार, जीएसटी चोरी के मामलों में डिजिटल साक्ष्य सबसे अहम होते हैं। कई बार फर्में अपनी वास्तविक आय या लेन-देन से जुड़े दस्तावेजों को डिजिटल रूप में छिपा लेती हैं। ऐसे मामलों में फॉरेंसिक विश्लेषण से डेटा को रिकवर कर, सटीक जानकारी जुटाई जा सकती है। अब तक इस क्षेत्र में उत्तराखंड के पास न तो तकनीकी संसाधन थे, न विशेषज्ञता। यही वजह थी कि राज्य कर विभाग ने स्थानीय डिजिटल लैब की आवश्यकता सरकार के सामने रखी थी।
राज्य सरकार का मानना है कि इस लैब से छापेमारी और निगरानी की कार्यक्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। जांच और साक्ष्य विश्लेषण की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और फर्मों के खिलाफ कार्रवाई तेज होगी। इसका असर सरकारी राजस्व पर भी पड़ेगा, क्योंकि समय पर की गई जांच और कार्रवाई से टैक्स वसूली में सुधार की संभावना बढ़ेगी।
यह फैसला न केवल टैक्स चोरी रोकने की दिशा में उठाया गया एक प्रभावी कदम है, बल्कि उत्तराखंड को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर और आधुनिक बनाने की दिशा में भी एक नई पहल है। आने वाले समय में यह फॉरेंसिक लैब राज्य के कर विभाग की रीढ़ साबित हो सकती है।