पड़ोसी देशों में भी बिखरते हैं सावन के रंग

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#श्रावण शब्द श्रवण से बना है जिसका अर्थ है सुनना। अर्थात् सुनकर धर्म को समझना। वेदों को श्रुति कहा जाता है अर्थात उस ज्ञान को ईश्वर से सुनकर ऋषियों ने लोगों को सुनाया था। हिन्दू पंचांग का आरम्भ चैत्र मास से होता है।

 

इस माह का नाम श्रवण

चैत्र मास से पांचवां माह श्रावण मास कहा जाता है। इस माह की पूर्णिमा के दिन आकाश में श्रवण लक्षण का मो बनता है। इसलिए श्रावण नक्षत्र के नाम से इस माह का नाम श्रवण हुआ।

इस माहसे चार्तुमास की शुरूआत होती है। यह मास चार्तुमास के चार महीनों में बहुत शुभ मास माना जाता है। कार्तिक माह को विष्णु तो श्रावण माह को शिव का प्रमुख महीना माना जाता है।

हिन्दुओं में सावन और कार्तिक का महीना व्रत का महीना होता है। इसमें भी सावन के महीने का सबसे ज्यादा महत्व होता है। हालांकि वर्ष भर ही कोई न कोई व्रत उपवास चलते रहते हैं।

जैसे एकादशी, चर्तुदशी, नौमी, प्रदोष आदि। लेकिन चार्तुमास, श्रावण और कार्तिक माह की महिमा क वर्णन वेद-पुराणों में मिलता है। सावन के महीने को मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माह भी कहा जाता है।

 

बहुत ही मंगलकारी

यह माह काफी पवित्र होता है, इस माह में भोले बाबा की विशेष पूजा करनी चाहिए। धार्मिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन के महीने में कठोर तप किया था।

सावन माह में शिव की पूजा-अर्चना करने से श्रद्धालुओं की हर मंशा पूरी होती है। इस बार का सावन माह पूरे पांच सोमवार का है जो रूद्राभिषेक आदि अनुष्ठान के लिए बहुत ही मंगलकारी है।

 

सोमवार के दिन शिव पूजा का विशेष

पौराणिक मान्यता है कि सावन माह के दौरान भगवान शिव ने जनकल्याण के लिए ही हलाहल का विषपान किया था। शिव का तांडव नृत्य और डमरू से ओंकार ध्वनि इसी माह में उत्पन्न हुई।

मार्कण्डेय ने लम्बी आयु के लिए इसी माह में घोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया। जिससे यमराज को नतमस्तक होना पड़ा। स्कन्दपुराण के अनुसार सोमवार के दिन शिव पूजा का विशेष महत्व है।

शिव साधकों के लिए इहलोक और परलोक में कुछ असम्भव नहीं है। जो इच्छा मन में होती है शिव की कृपा से वह किसी भी हालत में पूरी हो जाती है। इसी माह में देवताओं में प्रथम पूजनीय गणेश, माता पार्वती व नन्दी की भी पूजा करने की परम्परा है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है. सबसे पहले जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगा जल और गन्ने के रस से महादेव का अभिषेक किया जाता है।

इसके बद बेलपत्र, नीलकमल, कनेर, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, राई और फूल चढ़ाए जाते हैं। फिर धतूरा, भांग और श्रीफल चढ़ाने का विधान है। शिवलिंग के अभिषेक के बाद विधिवत् भगवान भोलेनाथ की आरती उतारी जाती है।

ओउम् नमः शिवाय मंत्र का जाप करने व रूद्राक्ष धारण करने से सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है और तमाम रोग व्याधि कष्ट दूर होते हैं। सावन के महीने का बहुत अधिक महत्व होता है।

धार्मिक मान्यताओं के इस माह में भोले शंकर की पूजा-अर्चना करने से विवाह संबंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं। जिन लोगों के विवाह में परेशानियां आ रही हैं, उन्हें सावन के महीने में भोले बाबा की विशेष पूजा- अर्चना करनी चाहिए।

 

जुड़े मॉरीशस में

सावन में कांवड़ियों की यात्रा की धूम मचती रहती है। जगह-जगह लोग कांवड़ियों के स्वागत में पंडाल व भोजन जलपान की व्यवस्था में लगे रहते हैं।

किन्तु इस बार कोरोना के कारण कांविड़यों की यात्रा स्थगित है। शिव मन्दिरों में लोग सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए व प्रशासानिक निर्देशों का पालन करते हुए दर्शन पूजन कर रहे हैं।

विश्व के अनेक देशों में जहां-जहां भारतीय हिन्दू है वहां-वहां उनके देवी-देवता और देवालय हैं। अपने देश के पड़ोसी हिन्दू राष्ट्र नेपाल से लेकर सुदूर मॉरीशस, सूरीनाम, गुसाना, त्रिनिदाद, फिजी आदि देशों में भी सावन माह को भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय महीना मानकर प्रत्येक सोमवार को भजन-पूजन, रूद्राभिषेक इत्यादि अनुष्ठान का आयोजन करते हैं।

इतिहास, संस्कृति, लोकतांत्रिक मूल्यों और पुरखों के घनिष्ठ संबंध से जुड़े मॉरीशस में भारत की भावना और ध्वनि सर्वव्यापी है। वहां भी सावन माह में श्रद्धालु शिव की पूजा-अर्चना बड़े मनोयोग से करते हैं।

जब भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया जाता है तो भगवान शिव से जुड़े ज्योतिर्लिंगों का भी बखान किया जाता है। प्रायः बारह ज्योतिर्लिंगों की प्रतिष्ठा है।

 

1997 में मॉरीशस की यात्रा

ये भारत में ही है लेकिन विश्व का तेरहवां शिव ज्योतिर्लिंग मारीशस में है। इस बात को कम लोग जानते हैं। मॉरीशस का प्रसिद्ध ‘गौरीशेखरनाथ’ नामक शिव मंदिर ही तेहरवां ज्योतिर्लिंग है। इसे हम मॉरीशस का केदारनाथ अथवा रामेश्वर कह सकते हैं।

यो तो मॉरीशस बहुत ही सुन्दर व आर्कषक द्वीप है। विभिन्न धर्मों के लोग यहां निवास करते हैं। फिर भी वे रूचिपूर्वक कुल आबादी के 52 प्रतिशत भारतीय समाज के त्योहारों में सम्मिलित होते रहते हैं। आज से 23 वर्ष पूर्व मैंने सन् 1997 में मॉरीशस की यात्रा की थी।

वहां हिन्दी साहित्य मर्मज्ञ व समाजसेवी डॉ. सरिता बुद्दू के घर 15 दिनों तक ठहरने का सुअवसर मिला था। उनके साथ में तत्कालीन राष्ट्रपति कासिम मुत्तीन के सरकारी बंगले पर गया था। उनसे मेरी भारतीय सभ्यता व संस्कृति के बारे में गंभीर व विशद् बात हुई।

भारतीय त्योहारों विशेषकर सावन तथा महाशिवरात्रि के बारे में राष्ट्रपति कासिम मुत्तीन की जानकारी व विशेष लगाव से मैं अचंभित रह गया। उस यात्रा की स्मृतियां आज भी मेरे मनोमस्तिष्क में पूरी तरह जींवत ओर तरोताजा हैं।

‘छोटे भारत’ के रूप में प्रसिद्ध इस देश पर भारतीय संस्कृति और भारतीयता की गहरी छाप है। उत्तर भारत की ही तरह यहां भी कांवड़ यात्राएं निकाली जाती हैं अैर मेले लगते हैं। हम हिन्दुस्तानी जहां कहीं भी जाते हैं अपनी छाप छोड़ देते हैं।

बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर हिन्दुस्तानियों की तादात बहुत ज्यादा है, कुछ तो ऐसे देश हैं जो हमारा दूसरा घर बन गये हैं। मॉरीशस के दक्षिण-पश्चिम में शिव गंगा तालाब पर सावन माह या शिवरात्रि पर पूरा मॉरीशस उमड़ पड़ता है।

 

यह तालाब समुद्र तट से 1800 मीटर ऊपर

एक सौ बीस वर्ष पूर्व भारत की पवित्र नदियों से प्रतीकात्तक रूप से जल लाकर ‘परी तालाब’ में डाला गया था अज्ञैर इसे नाम दिया गया ‘गंगा तालाब’। यह तालाब समुद्र तट से 1800 मीटर ऊपर और मॉरीशस के दिल में स्थित है। इस बार यह अद्भुत संयोग है कि सावन सोमवार से शुरू होकर सोमवार पर ही समाप्त हो रहा है।

इससे पहले यह योग 1976, 1990, 1997 व 2017 में बना था। इस बार सावन में 47 वर्ष बाद सोमवती अमावस्या व सोमवती पूर्णिमा का संयोग बना जबकि इससे पहले यह अद्भुत संयोग वर्ष 1973 में बना था। श्रावण महिमा का महत्व वेद-पुराण, उपनिषदों आदि में बताया गया है कि यह महीना आध्यात्मिक उन्नति, शक्ति व ऊर्जा के संचयन का अवसर प्रदान करता है और सम्पन्न ज्ञान, दर्शन व चरित्र का पाठ पढ़ाता है। इस माह का धार्मिक व वैज्ञानिक दोनों दृष्टि से विशेष महत्व है।

हम बाबा भोलेनाथ से प्रार्थना करते हैं कि कोरोना जैसी महामारी से तत्काल छुटकारा दिलाने की महती कृपा करें क्यों यह कोरोना महामारी वर्तमान समय का बहुत बड़ा संकट और सम्पूर्ण मानव जाति के लिए चुनौती के साथ बड़ा सन्देश भी है। 

 

-डॉ. श्रीनाथ सहाय

-लेखक उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं-