मरीजों की सुरक्षा के लिए उत्तराखंड सरकार की ‘रेफरल नीति’, बिना जानकारी के मरीज नहीं होंगे रेफेर

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रेफरल नीति के तहत अब किसी भी अस्पताल के चिकित्सक किसी गंभीर मरीज को एक से दूसरे अस्पताल में रेफर करके उस मरीज को अपने हाल पर नहीं छोड़ सकते हैं। अस्पताल में बेड की उपलब्धता की जानकारी लेकर ही मरीज को स्थानांतरित किया जाएगा।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने सरकारी अस्पतालों के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करने और मरीजों की सुविधा के लिए रेफरल नीति तैयार की है, इस नीति के अनुसार, अब किसी भी अस्पताल के चिकित्सक किसी गंभीर मरीज को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में रेफर करके उसे उसके हाल पर नहीं छोड़ सकते हैं। चिकित्सकों को दूसरे अस्पताल के नोडल अधिकारी से बातचीत करके वहां बेड की उपलब्धता की जानकारी लेनी होगी, इसके बाद ही मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाएगा।

इस प्रकार से होगी व्यवस्था

दून मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक अधीक्षक डॉ. अनुराग अग्रवाल ने बताया कि पहली बार दून हॉस्पिटल के लिए रेफरल सिस्टम के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टरों के बीच नीति बनने से पहले भी इस बारे में चिकित्सकों से बातचीत होती थी और अनावश्यक रूप से किसी भी मरीज को रेफर नहीं किया जाता था और यदि गंभीर स्थिति के मरीज को इमरजेंसी के चलते रेफर करने की ज़रूरत पड़ती तो दूसरे अस्पताल से बातचीत करके बेड की उपलब्धता की जानकारी ली जाती थी। फिर मरीज को रेफर किया जाता था।

डॉ अनुराग ने बताया कि केंद्र सरकार की ओर से रेफरल नीति जारी कर दी गई गई और इसे दून हॉस्पिटल में लागू करने के पूरे प्रयास किया जा रहे हैं। यह नीति मरीजों की बेहतर सेवा के लिए है अब मरीज को जिस भी अस्पताल में रेफर किया जाएगा उस अस्पताल में रेफरल नीति के तहत बेड की उपलब्धता की जानकारी ली जाएगी। साथ ही उन्होंने बताया कि कोई भी चिकित्सक नहीं चाहता कि मरीज को बिना किसी वजह से रेफर किया जाए, लेकिन यदि मरीज को आइसीयू में भर्ती कराने की ज़रूरत है और अस्पताल में आइसीयू उपलब्ध न हो तो ऐसे में उसे रेफर करना ही उचित होता है। इसी प्रकार से अगर अस्पताल में स्पेशलिस्ट डॉक्टर की कमी है तो तब भी मरीज को रेफर करना पड़ता है। जल्द ही दून हॉस्पिटल में एक वर्कशॉप का आयोजन होना है जिसमें सभी चिकित्सकों को रेफरल नीति के बारे में विस्तार से से बताया जाएगा।