दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन शुरू
दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन शुरू तो तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुआ था, मगर उसके बाद सरकार के सीधे विरोध और अब यह पार्टी विशेष के विरोध पर केंद्रित हो चुका है। इसी के साथ मंच से वक्ताओं के बोल भी बदल रहे हैं। कृषि कानूनों से ज्यादा अब आगामी चुनावों को लेकर भाषण ज्यादा दिए जा रहे हैं। आंदोलन में अब गैर कृषि संगठनों की भागीदारी तो न के बराबर है। ऐसे में मंच पर पहुचने वाले किसान संगठनों के नेता पार्टी विशेष का नाम लेकर ही उसके नेताओं, मंत्रियों और विधायकों को सबक सिखाने का प्रचार करते दिखते हैं।
किसान आंदोलन अब पार्टी विरोध पर हुआ केंद्रित
ज्यादातर वक्ता अब तो एक ही बात पर जोर देते हैं कि फलां राज्य में सत्ता पक्ष को नाकाम कर दिया और अब आगे फलां राज्य में करेंगे। यह अलग बात है कि जब आंदोलन शुरू हुआ तो इसमें किसी भी दल के नेताओं को मंच के आसपास जगह नहीं मिलती थी और पार्टी विशेष के विरोध की बात नहीं होती थी। उस समय पंजाब के किसान नेताअों को यह भी आह्वान करते सुना जा सकता था कि नारे लगाने में किसी की मर्यादा भंग न की जाए। विरोध हो, मगर सम्मानित तरीके से हो।
लेकिन यह सब धीरे-धीरे बदल गया। बाद में आंदोलन के बीच ऐसी भाषा का भी प्रयोग किया जाने लगा
जो सीधे तौर पर गाली-गलौच है।
अब यह आंदोलन सात माह पूरे करने जा रहा है।
शुरूआत में किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि यह इतना लंबा चलेगा।
अभी यह और कितना लंबा चल जाए, इसकी भी कोई सीमा नहीं दिख रही है।
सरकार ने जो आखिरी मीटिंग में प्रस्ताव दिया था वह तो आंदोलनकारियों ने ठुकरा दिया था।
वे अपनी मांग पर टस से मस तक नहीं हो रहे हैं।
इतना लंंबा आंदोलन बहादुरगढ़ के व्यापार और उद्योग को बड़ा नुकसान पहुंचा चुका है।