राजधानी दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के गर्भ गृह में महिलाओं की प्रवेश के अभी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।बता दें कि दरगाह में प्रवेश के लिए पुणे से लॉ की पढ़ाई करने वाली एक लड़की ने दायर की है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में आज सोमवार को सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने केंद्र, आप सरकार और पुलिस से सोमवार से जवाब मांगा। केंद्र, दिल्ली सरकार और पुलिस के अलावा मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने ‘दरगाह’ के न्यास प्रबंधन को भी नोटिस जारी किया और उनसे 11 अप्रैल 2019 तक याचिका पर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा।
अदालत कानून की तीन छात्राओं की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिन्होंने दावा किया कि दरगाह तक महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं है। वकील कमलेश कुमार मिश्रा के जरिए दायर याचिका में दावा किया गया है कि हजरत निजामुद्दीन की ‘दरगाह’ के बाहर एक नोटिस लगा है जिसमें अंग्रेजी तथा हिंदी में साफ तौर पर लिखा है कि महिलाओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं है।याचिकाकर्ता ने दावा किया गया है कि 27 नवंबर को जब वह निजामुद्दीन औलिया की दरगाह गई थी तब दरगाह के बाहर महिलाओं के प्रवेश पर निषेध का एक नोटिस टांग दिया गया था। आपको बता दें कि यह दरगाह प्रमुख सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की कब्र पर बनाई गई है। याचिका में केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस और मंदिर के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश जारी करने और इस प्रवेश पर रोक को ‘असंवैधानिक’ घोषित करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि- ‘निजामुद्दीन दरगाह की प्रवृति एक सार्वजनिक स्थान की है और लिंग के आधार पर किसी सार्वजनिक स्थान पर किसी के प्रवेश का निषेध भारत के संविधान के ढांचे के विपरीत है।’मीडिया रिपोर्ट मुताबिक वकील कमलेश कुमार मिश्रा के माध्यम से दायर पीआईएल में दलील दी गई कि अधिकारियों या दिल्ली पुलिस से बार-बार जानकारी मांगने के बावजूद उन्हें किसी तरह का कोई जवाब नहीं मिला है। याचिका में सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा है कि जब सुप्रीम कोर्ट सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को इजाजत दे सकती है तो यहां क्यूं नहीं। इसमें अजमेर शरीफ दरगाह और हाजी अली दरगाह जैसे कई अन्य मंदिरों का भी उल्लेख किया गया है जो महिलाओं के प्रवेश पर रोक नहीं लगाते हैं।