चार साल पहले जब किसानों ने मोदी सरकार को वोट दिया था तो यह सोच कर दिया कि शयाद हमारे दिन भी अच्छे आएंगे, लेकिन कर्जमाफी और फसल का उचित मूल्य न मिलने पर किसान सरकार से नाराज है। जिसके बाद पिछले 6 महीनों में कई दफा दिल्ली आकर आंदोलन भी किया। सरकार से बात करने की कोशिश भी की गई, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा और राजस्थान में किसान पहले से आंदोलन कर रहे थे। अब उत्तराखंड के हरिद्वार से चलकर राजधानी दिल्ली की सड़कों पर मंगलवार को पहुंचे हजारों किसानों की कुछ मांगों पर सहमति जताकर मोदी सरकार ने ‘डैमेज कंट्रोल’ करने की कोशिश जरूर की, लेकिन किसानों की नाराजगी को दूर नहीं कर सकी।
मंगलवार की दोपहर किसान दिल्ली-यूपी बॉर्डर (गाजीपुर बॉर्डर) पर डटे रहे और पुलिस से उनकी झड़प भी हुई। इस दौरान कई किसान घायल हुए, पुलिस ने उनपर आंसू गैस के गोले दागे और पानी की बौछारें कीं, पर मोदी सरकार के द्वारा समझाने-बुझाने के बाद देर रात किसान अपना आंदोलन खत्म करने घोषणा करके वापस लौट गए। लेकिन किसानों का ये आंदोलन राजनीतिक संदेश देने के मकसद में काफी हद तक कामयाब रहा है।
चुनावी साल में किसानों का सड़क पर उतरकर आंदोलन करना बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन गया है। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद किसानों का यह पहला बड़ा आंदोलन था। इस आंदोलन में पश्चिम यूपी के किसान ज्यादा शामिल थे और खासकर जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले किसानों की संख्या अधिक थी।
मंगलवार को किसानों और पुलिस के बीच टकराव से बिगड़े हालत को सरकार ने तेजी से संभालने की कोशिश की है। इससे साफ है कि बीजेपी किसान आंदोलन से राजनीतिक नफे-नुकसान का अंदाजा लगा लिया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश में लोकसभा की करीब दो दर्जन सीट हैं, जिन पर किसान मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं। इसके अलावा अवध, बुंदेलखंड और पूर्वांचल की करीब ढाई दर्जन लोकसभा सीटों पर किसानों का प्रभाव है।
2014 के लोकसभा चुनाव में किसान प्रभाव वाली यूपी की ये सभी सीटें बीजेपी के खाते गई थी। हालांकि कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल की तबस्सुम हसन ने विपक्षी दलों के समर्थन से बीजेपी उम्मीदवार को करारी मात दी। आरएलडी की जीत में सबसे अहम भूमिका जाट समुदाय के लोगों ने निभाई थी।
पश्चिम यूपी से मंगलवार को किसान आंदोलन में आए उपेंद्र चौधरी कहते हैं कि आज किसानों की हालत बहुत खराब है। मोदी सरकार सिर्फ उद्योगपतियों को खुश करने में लगी है, उन्हें इस देश के किसानों की कोई फिक्र नहीं है। जबकि हम लोगों ने 2014 में बड़े उम्मीदों के साथ बीजेपी को वोट किया था, लेकिन हमारे दर्द में सिर्फ चौधरी अजित सिंह ही खड़े नजर आते हैं।
किसान क्रांति यात्रा में शामिल बिजनौर के किसान अनीस अहमद ने कहा कि बीजेपी ने किसानों की हालत को बहुत खराब कर रखा है। मोदी सरकार ने कहा था कि किसानों से जुड़े सामनों पर जीएसटी नहीं लगेगी, इसके बावजूद ट्रैक्टर की खरीदारी पर 28 फीसदी जीएसटी ली जा रही है। हमारे गन्ने का भुगतान नहीं हो रहा है। ऐसे में हमें इस सरकार को अब दोबारा से नहीं आने देना है।
किसान आंदोलन से सबसे ज्यादा राजनीतिक फायदा आरएलडी को मिलता दिख रहा है। यही वजह रही कि चौधरी अजित सिंह ने किसानों से मिलने में देर नहीं की। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये भी रही कि अजित सिंह पश्चिम यूपी से आते हैं और मंगलवार के आंदोलन में सबसे ज्यादा जाट समुदाय के किसान शामिल थे। यही दोनों आधार अजित सिंह का है।
कैराना उपचुनाव में अजित सिंह और उनके बेटे जयंत सिंह ने गन्ने को मुद्दा बनाया था, जिसका उन्हें राजनीतिक फायदा भी मिला। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए आरएलडी ने अपने आधार को मजबूत करने के लिए किसान मुद्दों को हवा देना शुरू कर दिया है। आरएलडी नेता मानते हैं कि किसान बीजेपी के खिलाफ वोट देने का मन बना चुके हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी महागठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ेगी। इस बात की घोषणा पार्टी ने पहले ही कर रखी है। आरएलडी की सियासत किसान और जाट के सहारे ही जिंदा रही है, जब इन दोनों अपने हाथ पीछे खींचे तो अजित सिंह जीरो पर सिमट गए। अब वो दोबारा से अपनी राजनीति में नई जान फूंकने में लगे हैं।