मुपट्टम नारायणन जी, गर्मी के दौरान पशु-पक्षियों, को पानी की दिक्कत ना हो, इसके लिए मिट्टी के बर्तन बांटने का अभियान चला रहे हैं। गर्मियों में वो पशु-पक्षियों की इस परेशानी को देखकर खुद भी परेशान हो उठते थे। फिर उन्होंने सोचा कि क्यों ना वो खुद ही मिट्टी के बर्तन बांटने शुरू कर दें ताकि दूसरों के पास उन बर्तनों में सिर्फ पानी भरने का ही काम रहे। आप हैरान रह जाएंगे कि नारायणन जी द्वारा बांटे गए बर्तनों का आंकड़ा एक लाख को पार करने जा रहा है। अपने अभियान में एक लाखवां बर्तन वो गांधी जी द्वारा स्थापित साबरमती आश्रम में दान करेंगे। आज जब गर्मी के मौसम ने दस्तक दे दी है, तो नारायणन जी का यह काम हम सब को ज़रूर प्रेरित करेगा और हम भी इस गर्मी में हमारे पशु-पक्षी मित्रों के लिए पानी की व्यवस्था करेंगे।
साथियो, मैं ‘मन की बात’ के श्रोताओं से भी आग्रह करूंगा कि हम अपने संकल्पों को फिर से दोहराएं। पानी की एक-एक बूंद बचाने के लिए हम जो भी कुछ कर सकते हैं, वो हमें जरूर करना चाहिए। इसके अलावा पानी की Recycling पर भी हमें उतना ही जोर देते रहना है। घर में इस्तेमाल किया हुआ जो पानी गमलों में काम आ सकता है, Gardening में काम आ सकता है, वो जरुर दोबारा इस्तेमाल किया जाना चाहिए। थोड़े से प्रयास से आप अपने घर में ऐसी व्यवस्थाएं बना सकते हैं। रहीमदास जी सदियों पहले, कुछ मकसद से ही कहकर गए हैं कि ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून’। और पानी बचाने के इस काम में मुझे बच्चों से बहुत उम्मीद है। स्वच्छता को जैसे हमारे बच्चों ने आंदोलन बनाया, वैसे ही वो ‘Water Warrior’ बनकर, पानी बचाने में मदद कर सकते हैं।
साथियो, हमारे देश में जल संरक्षण, जल स्रोतों की सुरक्षा, सदियों से समाज के स्वभाव का हिस्सा रहा है। मुझे खुशी है कि देश में बहुत से लोगों ने Water Conservation को life mission ही बना दिया है। जैसे चेन्नई के एक साथी हैं अरुण कृष्णमूर्ति जी ! अरुण जी अपने इलाके में तालाबों और झीलों को साफ करने का अभियान चला रहे हैं। उन्होंने 150 से ज्यादा तालाबों-झीलों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी उठाई और उसे सफलता के साथ पूरा किया। इसी तरह, महाराष्ट्र के एक साथी रोहन काले हैं। रोहन पेशे से एक HR Professional हैं। वो महाराष्ट्र के सैकड़ों Stepwells यानी सीढ़ी वाले पुराने कुओं के संरक्षण की मुहिम चला रहे हैं। इनमें से कई कुएं तो सैकड़ों साल पुराने होते हैं, और हमारी विरासत का हिस्सा होते हैं। सिकंदराबाद में बंसीलाल -पेट कुआँ एक ऐसा ही Stepwell है। बरसों की उपेक्षा के कारण ये stepwell मिट्टी और कचरे से ढक गया था। लेकिन अब वहाँ इस stepwell को पुनर्जीवित करने का अभियान जनभागीदारी से शुरू हुआ है।
साथियो, मैं तो उस राज्य से आता हूँ, जहाँ पानी की हमेशा बहुत कमी रही है। गुजरात में इन Stepwells को वाव कहते हैं। गुजरात जैसे राज्य में वाव की बड़ी भूमिका रही है। इन कुओं या बावड़ियों के संरक्षण के लिए ‘जल मंदिर योजना’ ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। पूरे गुजरात में अनेकों बावड़ियों को पुनर्जीवित किया गया। इससे इन इलाकों में वाटर लेवेल(water level) को बढ़ाने में भी काफी मदद मिली। ऐसे ही अभियान आप भी स्थानीय स्तर पर चला सकते हैं। Check Dam बनाने हों, Rain Water Harvesting हो, इसमें Individual प्रयास भी अहम हैं और Collective Efforts भी जरूरी हैं। जैसे आजादी के अमृत महोत्सव में हमारे देश के हर जिले में कम से कम 75 अमृत सरोवर बनाए जा सकते हैं। कुछ पुराने सरोवरों को सुधारा जा सकता है, कुछ नए सरोवर बनाए जा सकते हैं। मुझे विशवास है, आप इस दिशा में कुछ ना कुछ प्रयास जरूर करेंगे।
मरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ उसकी एक खूबसूरती ये भी है कि मुझे आपके सन्देश बहुत सी भाषाओं, बहुत सी बोलियों में मिलते हैं। कई लोग MYGOV पर Audio message भी भेजते हैं। भारत की संस्कृति, हमारी भाषाओं, हमारी बोलियाँ, हमारे रहन-सहन, खान-पान का विस्तार, ये सारी विविधताएँ हमारी बहुत बड़ी ताकत है। पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक भारत को यही विविधता, एक करके रखती हैं , एक भारत-श्रेष्ठ भारत बनाती हैं । इसमें भी हमारे ऐतिहासिक स्थलों और पौराणिक कथाओं, दोनों का बहुत योगदान होता है। आप सोच रहे होंगे कि ये बात मैं अभी आपसे क्यों कर रहा हूँ। इसकी वजह है “माधवपुर मेला”। माधवपुर मेला कहाँ लगता है, क्यों लगता है, कैसे ये भारत की विविधता से जुड़ा है, ये जानना मन की बात के श्रोताओं को बहुत Interesting लगेगा।
साथियो, “माधवपुर मेला” गुजरात के पोरबंदर में समुद्र के पास माधवपुर गाँव में लगता है। लेकिन इसका हिन्दुस्तान के पूर्वी छोर से भी नाता जुड़ता है। आप सोच रहे होंगें कि ऐसा कैसे संभव है ? तो इसका भी उत्तर एक पौराणिक कथा से ही मिलता है। कहा जाता है कि हजारों वर्ष पूर्व भगवान् श्री कृष्ण का विवाह, नार्थ ईस्ट की राजकुमारी रुक्मणि से हुआ था। ये विवाह पोरबंदर के माधवपुर में संपन्न हुआ था और उसी विवाह के प्रतीक के रूप में आज भी वहां माधवपुर मेला लगता है। East और West का ये गहरा नाता, हमारी धरोहर है। समय के साथ अब लोगों के प्रयास से, माधवपुर मेले में नई- नई चीजें भी जुड़ रही हैं। हमारे यहाँ कन्या पक्ष को घराती कहा जाता है और इस मेले में अब नार्थ ईस्ट से बहुत से घराती भी आने लगे हैं| एक सप्ताह तक चलने वाले माधवपुर मेले में नार्थ ईस्ट के सभी राज्यों के आर्टिस्ट(artist) पहुंचते हैं, हेंडीक्राफ्ट(handicraft) से जुड़े कलाकार पहुंचतें हैं और इस मेले की रौनक को चार चाँद लग जाते हैं। एक सप्ताह तक भारत के पूरब और पश्चिम की संस्कृतियों का ये मेल, ये माधवपुर मेला, एक भारत – श्रेष्ठ भारत की बहुत सुन्दर मिसाल बना रहा है|