ग्लेशियर और झीलों पर इसरो ने किया बड़ा खुलासा, क्या है जानिए!

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साफ-सुथरी हवा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन शहर नैनीताल की फिजाओं में लगातार बढ़ता प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है. आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एडीज, इसरो और दिल्ली विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों ने नैनीताल के हिमालयी क्षेत्रों में करीब पांच सालों तक गहनता से शोध कार्य किया, जिसमें पाया गया कि यहां के वायुमंडल में प्रदूषण की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिसके कारण कई तरह के दुष्प्रभाव वायुमंडल में देखने को मिल रहे हैं, जो हिमालय की सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहे हैं.

क्या है रिपोर्ट में खास जानिए 

इसरो की रिपोर्ट में सबसे महत्वपूर्ण खुलासा यह है कि प्रकृति और जलवायु को संजोकर रखने वाला हिमालय एक गंभीर समस्या से जूझ रहा है. यह समस्या कुछ और नहीं, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग है. हिमालय में साल दर साल मौसम के परिवर्तन की वजह से ग्लेशियर पीछे की तरफ खिसक रहे हैं. इसरो की रिपोर्ट में विस्तार पूर्वक आंकड़े देते हुए बताया गया है कि इसरो लगातार तीन दशक से अधिक समय से हिमालय की इन गतिविधियों का डाटा तैयार कर रहा है.

झीलों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी, रिपोर्ट में खुलासा

जो हकीकत सामने आई है, उससे यह पता लगा है कि 1984 से लेकर साल 2023 तक जो आंकड़े जुटाए गए हैं उसके मुताबिक, हिमालय में 2,431 झील हैं, जो लगभग 10 हेक्टेयर से भी बड़ी हैं. 2,431 झील में से 676 ऐसी झील हैं, जिनका आकार लगातार बढ़ रहा है और यह चिंता का विषय है. हालांकि भारत में 130 झील हैं, जिसमें से गंगा नदी के ऊपर सात बड़ी झील, सिंधु नदी के ऊपर 65 और ब्रह्मपुत्र के ऊपर 58 झील बनकर तैयार हो गई हैं. यह सभी ग्लेशियर के तेजी से पिघलने के बाद बनी हैं. हालांकि हिमालय में झीलों का बनना कोई नई बात नहीं है, लेकिन चिंता की बात यह है कि इनकी संख्या लगातार न केवल बढ़ रही है, बल्कि इनका आकार बढ़ने का समय भी बेहद कम है.

क्यों तेजी से बढ़ता जा रहा झीलों का आकार?

इसरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन 130 झील में से 10 झील ऐसी हैं, जिनका आकार दो गुना बड़ा है, जबकि 65 झील ऐसी हैं, जिनका डेढ़ गुना आकर तेजी से कम समय में बढ़ा है. सबसे अधिक तेजी से हिमाचल प्रदेश के घेपांग घाट में बनी झील का ग्लेशियर बढ़ा है, जिसकी इमेज भी इसरो ने जारी की है. यह झील 4,068 मीटर की ऊंचाई पर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके बढ़ने का इजाफा लगभग 178 फीसदी हुआ है. 1984 में यह झील महज 36.40 हेक्टर में थी, जबकि अब इसका आकार 101.30 हेक्टेयर हो गया है.

तेजी से पिघल रहे हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियर

वहीं वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक कला चंद साई कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग हिमालय क्षेत्र में लंबे समय से तेजी से हो रही है, जिसकी एक नहीं कई वजह हैं, जिसमें गोलबल वार्मिंग, पर्यावरण में बदलाव के साथ ही कई कारण हैं, जिसके चलते ही हिमालय के जिन क्षेत्रों में पहले बर्फबारी हुआ करती थी, अब वहां पर बारिश होती है और बारिश की वजह से भी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं.