भगवान केदारनाथ की आरती

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भगवान केदारनाथ की आरती

भगवान केदारनाथ की आरती
जय केदार उदार शंकर,
मन भयंकर दुःख हरम.
गौरी गणपति स्कन्द नंदी,
श्री केदार नमाम्यहम.

शैल सुन्दर अति हिमालय,
शुभ मंदिर सुन्दरम.
निकट मन्दाकिनी सरस्वती,
जय केदार नमाम्यहम.

उदक कुण्ड है अधम पावन,
रेतस कुण्ड मनोहरम.
हंस कुण्ड समीप सुन्दर,
जय केदार नमाम्यहम.

अन्नपूर्णा सह अर्पणा,
काल भैरव शोभितम.
पंच पाण्डव द्रोपदी सह,
जय केदार नमाम्यहम.

शिव दिगम्बर भस्मधारी,
अर्द्ध चन्द्र विभूषितम.
शीश गंगा कंठ फणिपति,
जय केदार नमाम्यहम.

कर त्रिशूल विशाल डमरू,
ज्ञान गान विशारदम.
मद्महेश्वर तुंग ईश्वर,
रूद्र कल्प महेश्वरम.
पंच धन्य विशाल आलय,
जय केदार नमाम्यहम.

नाथ पावन हे विशालम.
पुण्यप्रद हर दर्शनम्.
जय केदार उदार शंकर,
पाप ताप नमाम्यहम.

बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम की अनोखी कहानी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में…..

‘स्कंद पुराण’ में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं, ‘हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है।’ केदारखंड में उल्लेख है, ‘अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्’ अर्थात् बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है।

पुराण कथा के अनुसार भगवान केदारनाथ के बारे में

पुराण कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।

महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए भगवान शंकर अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंसे पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए।

 

भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

दीपावली महापर्व पर भगवान केदारनाथ की पूजा

दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य है की 6 माह तक दीपक निरंतर जलता रहता है।