: कोरोना वायरस दुनिया के लिए डर और मातम लेकर आया है। चीन के वुहान शहर की सुनसान सड़कों को देखकर डर लगता है मानों वुहान भूतों का शहर है। सड़कों पर गाड़ियां नहीं, बाजार बंद, हर तरफ डर, भय, मातम का माहौल और एक अजीब सी मायूसी। लोग जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं वहीं चीन के वाइस प्रीमियर सुन चुनलान के वुहान दौरे के दौरान एक व्यक्ति अपार्टमेंट से चिल्ला कर बता रहा है कि वुहान के अधिकारी फर्जी काम कर रहे हैं। वीडियो चर्चा का केंद्र बनने के साथ बता रहा है कि वुहान में जहां-तहां फंसे लोग किस कदर असहाय और मजबूर थे।
कोरोना संक्रमण के केंद्र के रहे चीन के शहर वुहान शहर से लौटे लातूर के एमबीबीएस छात्र आशीष कुर्मे (20) वहां का भयावह मंजर बताते बताते सिहर उठते हैं। आशीष बताते हैं कि वह वुहान के पास स्थित एक यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे हैं। कोरोना का पहला केस 8 दिसंबर को ही मिल गया था, लेकिन इसकी जानकारी जनवरी के पहले हफ्ते में मिली। शुरुआत में लोगों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं थी। मरीजों के मिलने और मौतों का आंकड़ा बढ़ा तो पूरे शहर में किलेबंदी कर दी गई।
हमें नियमित मास्क उपलब्ध कराया जाता था और स्वास्थ्य जांच भी होती थी। आशीष बताते हैं कि सड़कों पर जो लाशों का वीडियो चल रहा था, वह फर्जी था। मैं जब वापस लौटा तब देखा। ये सच है कि वुहान में उस वक्त जिंदगी बदलने लगी थी। जनवरी के पहले हफ्ते से ही लोगों के शरीर के तापमान की जांच होने लगी थी। लोग 23 जनवरी तक सामान्य ढंग से घूम फिर रहे थे। बाजार जा रहे थे लेकिन अचानक किलेबंदी हो गई और लोग जहां-तहां फंस गए।
किलेबंदी के बाद हमारे शिक्षक हमारी देखभाल करते थे। हमें जो भी चाहिए था सब मिल रहा था। किसी बाहरी को हमारे हॉस्टल में आने की इजाजत नहीं थी। हालात खराब हुए तो मैंने घर वापसी का फैसला किया तब पता चला कि वुहान एयरपोर्ट बंद है। बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने घर वापसी के लिए बस यूनिवर्सिटी भेजी जहां से हमें एयरपोर्ट पहुंचाया गया। इस दौरान सरकारी अधिकारी और पुलिस की टीम सड़क पर मौजूद थी। तीस सवालों का जवाब देने के बाद विमान में बैठने दिया गया। भारत लौटा तो चौदह दिनों तक निगरानी में रहा।