
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित हालिया उच्चस्तरीय बैठक के दौरान ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते (JCPOA) को लेकर एक बार फिर सीधा टकराव देखने को मिला। लंबे समय से ठंडे बस्ते में पड़ी इस ऐतिहासिक डील को पुनर्जीवित करने की कोशिशें फिलहाल नाकाम होती नजर आ रही हैं। बैठक में दोनों देशों के प्रतिनिधियों के सख्त बयानों ने यह साफ कर दिया कि परमाणु वार्ता अभी गंभीर गतिरोध में फंसी हुई है।
क्यों फंसी है परमाणु वार्ता?
ईरान और अमेरिका के बीच विवाद की जड़ आपसी अविश्वास और शर्तों की कठोरता है। ईरान ने दो टूक शब्दों में कहा कि जब तक उस पर लगे सभी आर्थिक और तेल निर्यात संबंधी प्रतिबंध पूरी तरह नहीं हटाए जाते, वह किसी भी तरह की रियायत नहीं देगा। वहीं अमेरिका का कहना है कि प्रतिबंधों में ढील से पहले ईरान को अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को सीमित करना होगा।
इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने ईरान पर आरोप लगाया है कि वह कुछ संदिग्ध परमाणु स्थलों की जांच में सहयोग नहीं कर रहा। अमेरिका इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन और ‘असहयोग’ करार दे रहा है।
गारंटी बना बड़ा मुद्दा
वार्ता में एक और बड़ा पेच भविष्य की गारंटी को लेकर है। ईरान चाहता है कि अमेरिका लिखित आश्वासन दे कि भविष्य में कोई भी नई अमेरिकी सरकार इस समझौते से एकतरफा बाहर नहीं निकलेगी, जैसा कि ट्रम्प प्रशासन के दौरान हुआ था। हालांकि, अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि ऐसी संवैधानिक गारंटी देना उसके लिए संभव नहीं है।
यूरेनियम संवर्धन ने बढ़ाई वैश्विक चिंता
विशेषज्ञों के अनुसार, ईरान द्वारा यूरेनियम को 60 प्रतिशत तक संवर्धित करना गंभीर चिंता का विषय है। यह स्तर सैन्य ग्रेड (90 प्रतिशत) के काफी करीब माना जाता है। इस घटनाक्रम ने मध्य-पूर्व में सुरक्षा चिंताओं को और गहरा कर दिया है। इजरायल और खाड़ी देशों ने अमेरिका पर दबाव बनाया है कि वह ईरान के प्रति नरम रुख न अपनाए, क्योंकि इससे क्षेत्र में हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है।
सख्त बयान, तल्ख माहौल
बैठक के दौरान ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि ने कहा, अमेरिका को समझना होगा कि दबाव और प्रतिबंधों की नीति काम नहीं करेगी। हमने कूटनीति को प्राथमिकता दी है, लेकिन अपने राष्ट्रीय हितों और वैज्ञानिक प्रगति से समझौता नहीं करेंगे।
वहीं अमेरिकी विदेश विभाग ने चेतावनी भरे लहजे में कहा, ईरान का बढ़ता परमाणु कार्यक्रम वैश्विक शांति के लिए गंभीर खतरा है। कूटनीति के अलावा हमारे पास अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।
कूटनीति की राह मुश्किल
ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने मध्यस्थता की कोशिशें जरूर की हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध और बदलते वैश्विक समीकरणों के कारण परमाणु वार्ता की प्राथमिकता कमजोर पड़ती दिख रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत जारी रखने की अपील की है।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि आने वाले हफ्तों में कोई ठोस सहमति नहीं बनती, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगा सकती है। ऐसे में यह विवाद कूटनीतिक संकट से निकलकर बड़े सैन्य टकराव की ओर भी बढ़ सकता है।













