दिल्लीः इलाहाबाद शहर के एक सघन आबादी वाले इलाके दारागंज के उत्तरी कोने पर गंगा नदी के किनारे स्थित यह नागवासुकी मंदिर है।नागवासुकि मंदिर में शेषनाग और वासुकीनाग की मूर्तियां हैं। पूर्वी और उत्तरी छोर पर गंगा नदी से घिरा और नीम के पेड़ों की शीतल छाया से ढंका यह मंदिर प्रकृति के सुरम्य गोंद में बना हुआ है।
नागवासुकी मंदिर के पश्चिमी छोर पर लगभग 3 किमी की दूरी पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पश्चिमोत्तर में छात्रों की भीड़–भाड़ से पटा इलाका छोटा एवं बड़ा बघाड़ा, पूर्वी छोर में गंगा पार कर प्राचीनकाल में प्रतिष्ठापुरी नाम से प्रसिद्ध झूंसी और दक्षिणी छोर पर लगभग 2 किमी की दूरी पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदीयों का संगम और लेटे वाले बड़े हनुमान जी का मंदिर स्थित है।
इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए दूरसे लोग आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां नागवासुकी के चौखट पर पूजा करवाने से कालसर्प दोष खत्म होता है। मेरा अपना अनुभव रहा है कि नागवासुकी मंदिर पर पहुंचकर आप एक अलौकिक शांति का अनुभव करेंगे।
नागवासुकी मंदिर का उल्लेख पुराणों में मिलता है। पुराणों में ऐसा माना गया कि गंगा स्वर्ग से गिरी और पृथ्वी से होते हुए पाताल लोक चली गयीं। पाताल लोक में गंगा की धार नागवासुकी के फन पर गिरने से वहां पर भोगवती तीर्थ की स्थापना हुई, तत्पश्चात नागवासुकी और शेषनाग वेणीमाधव के दर्शन के लिए प्रयाग(इलाहाबाद) आये तो साथ भोगवती भी आया। बताते है कि नागवासुकी के साथ भोगवती का वास होता है। मंदिर के पूरब में गंगा के पश्चिम में भोगवती का वास है, बरसात के दिनों बाढ़ आने से पानी मंदिर की सीढ़ियों पर आ जाता है तब श्रद्धालू भोगवती स्नान करतें हैं। अठ्ठारह्वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जब नागपुर के शासक रघुजी भोसले ने इलाहाबाद पर हमला कर सूबे के प्रधान शूज़ा खान को मार डाला और इलाहाबाद को लूटा। इसके बाद श्रीधर नाम के राज पंडित ने नागवासुकी मंदिर का जीर्णोद्धार किया।
इस प्रकार की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का हमारें देश या प्रदेश या शहर में होना हमारे लिए निश्चित ही गौरव की बात है। इन धरोंहरों पर हम हमेशा गर्व कर सकें इसके लिए आवश्यक यह है कि यह अपने यथारूप में बनी रहें, इनकें सौंदर्य में कमी न हो, इनके महत्व को क्षति न पहुंचे। नागवासुकी मंदिर के जिस सौंदर्यता, मनोहरता के हम कायल हैं कहीं न कहीं उसी का ह्रास हो रहा है। मंदिर के किनारों पर वहां के पुजारी लोग पूजा अर्चना के बाद कपड़े और पूजा सामग्री का विसर्जन करतें हैं। यह गंदगी दिनोंदिन इकठ्ठा होती जा रही है जो वहां का स्वच्छ और मनोरम वातावरण को दूषित कर रहा है। भविष्य में यह बड़ी समस्या का रूप ले सकता है। दूसरी तरफ शहर के नालों का पानी मंदिर के उत्तरी छोर पर गंगा नदी में मिल रहा है जोकि आसपास को पानी को पूरी तरह काली कर चुका है। हांलाकि शहरों के नालों का पानी और औद्योगिक दषकों का नदियों में बहना एक राष्ट्रीय समस्या बना हुआ है। ऐसी समस्याओं का निस्तारण सरकारी स्तर पर किया जाना तो चाहिये ही पर नागरिक होते हुए हमारा भी दायित्व बनता है कि जितना हो सके हम अवश्य करें। यहीं सांस्कृतिक धरोहरें हमारी अमूल्य संपत्ति है। यदि हमारी संस्कृति रूपी संपत्ति संरक्षित रही, समझों तब हम सुरक्षित हैं। हमारा भविष्य सुरक्षित है।