प्रयागराज के त्रिवेणी संगम तट पर इस समय दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला महाकुंभ 2025 पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के इस पवित्र संगम पर लाखों श्रद्धालु और साधु-संत डेरा डाले हुए हैं। 13 जनवरी 2025 से शुरू हुआ यह महापर्व 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। अब तक संगम में 11 करोड़ से अधिक श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगा चुके हैं, और आयोजन के अंत तक करीब 45 करोड़ श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की संभावना है।
महाकुंभ में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र नागा साधु बने हुए हैं, जिनके धूणी रमाने और तपस्वी जीवन के प्रति लोगों का विशेष आकर्षण है। इसके अलावा, अघोरी साधु, जिन्हें अक्सर रहस्यमयी और भयावह माना जाता है, भी श्रद्धालुओं और आगंतुकों के लिए जिज्ञासा का विषय बने हुए हैं। अघोरी साधु अपने कठोर तप और अनूठी साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी जीवनशैली, साधना प्रक्रिया और रहस्य से भरे व्यवहार ने हमेशा ही लोगों को मोहित किया है।
अघोरी साधु रहस्य, साधना और दीक्षा की कठिन राह
अघोरी साधुओं को मृत्यु और जीवन के बंधनों से परे माना जाता है। वे भगवान शिव के विकराल स्वरूप कालभैरव और देवी मां काली की आराधना करते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे श्मशान भूमि में तपस्या करते हैं और मानव खोपड़ी को अपनी साधना का प्रतीक मानते हैं। अघोरी बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है और इसमें कई प्रकार की कठिन दीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
अघोरी बनने की प्रक्रिया
अघोरी साधु बनने के लिए एक साधारण व्यक्ति को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत गुरु से दीक्षा लेने के साथ होती है। तीन मुख्य दीक्षाएं होती हैं:
हरित दीक्षा: इस दीक्षा में गुरु अपने शिष्य को मंत्र देता है। यह मंत्र साधना का मुख्य आधार होता है। मंत्र का नियमित जाप शिष्य के मन-मस्तिष्क को एकाग्र करता है और आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।
शिरीन दीक्षा: इस चरण में गुरु शिष्य को तंत्र साधना की विधियां सिखाता है। शिष्य को श्मशान में जाकर तपस्या करनी होती है और इस दौरान उसे कई कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
रंभत दीक्षा: यह सबसे कठिन और अंतिम दीक्षा होती है। इसमें शिष्य को अपने जीवन और मृत्यु का अधिकार गुरु को सौंप देना होता है। गुरु जो भी आदेश देता है, शिष्य को उसे हर हाल में मानना पड़ता है। इस दीक्षा में गुरु शिष्य के भीतर से अहंकार का पूरी तरह नाश कर देता है।
अघोरी साधु को अपने तप के दौरान किसी भी प्रकार के भय, मोह या लालच से ऊपर उठना पड़ता है। यही कारण है कि अघोरी साधु को न तो मृत्यु का भय होता है और न ही सांसारिक बंधनों की चिंता।
अघोरी साधना और उपासना
अघोरी साधु श्मशान भूमि में तपस्या करते हैं। वे शव पर एक पैर रखकर साधना करते हैं और भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप के साथ-साथ मां काली की आराधना करते हैं। उनके गुरु भगवान दत्तात्रेय माने जाते हैं, जिन्हें त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का अवतार कहा गया है।
अघोरी अपने साथ एक मानव खोपड़ी (कपाल) रखते हैं, जिसे वे पूजा और भक्ति का प्रतीक मानते हैं। उनके शरीर पर श्मशान की भस्म लगी होती है, और वे काले वस्त्र धारण करते हैं। अघोरी साधु का यह स्वरूप जीवन के नश्वरता के प्रति उनकी गहरी समझ और साधना को दर्शाता है।
महाकुंभ में अघोरियों का महत्व
महाकुंभ में अघोरी साधु विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। लोग उन्हें देखना, उनके रहस्यमयी जीवन के बारे में जानना और उनके आशीर्वाद पाना चाहते हैं। अघोरी साधुओं के कठिन तप और साधना के प्रति लोगों में गहरी जिज्ञासा रहती है।
महाकुंभ 2025 न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व से श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है। यह पर्व भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और आस्था का अद्भुत संगम है। संगम तट पर लाखों श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की कामना कर रहे हैं।
महाकुंभ में साधु-संतों के प्रवचन, धार्मिक अनुष्ठान और पवित्र स्नान के साथ-साथ तंत्र और अघोर साधना जैसे विषय भी लोगों की जिज्ञासा को बढ़ा रहे हैं। यह पर्व भारत की समृद्ध धार्मिक परंपरा और संस्कृति का सजीव उदाहरण है, जो हर किसी के लिए प्रेरणा और आस्था का स्रोत है।