समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने के बाद अवैध शादी से पैदा हुई संतानों को भी संपत्ति में अधिकार मिलेगा। यूसीसी के निर्धारित मानकों को पूरा न करने पर शादियां अवैध घोषित की जा सकती हैं। यूसीसी में शादियों की हर रस्म का सम्मान किया जाएगा। फिर वह चाहे किसी भी धर्म, संप्रदाय आदि के रिवाजों के तहत हुई हों। ये सभी विवाह यदि दोनों पक्ष मानकों को पूरा करते हैं तो वैध माने जाएंगे।शासन ने शादी की रस्मों को लेकर स्थिति को साफ किया है। यूसीसी के तहत विवाह समारोह उसी परंपरागत तरीके से पूरे किए जा सकेंगे जैसे कि अब तक होते आए हैं। इनमें सप्तपदी, निकाह, आशीर्वाद, होली यूनियन या आनंद विवाह अधिनियम 1909 के तहत आनंद कारज शामिल हैं।
इसके अलावा विशेष विवाह अधिनियम 1954 और आर्य विवाह मान्यकरण अधिनियम 1937 के अनुसार हुए विवाह भी मान्य होंगे। शासन की ओर से बताया गया है कि अधिनियम सभी धार्मिक व प्रथागत रीति-रिवाजों का सम्मान करता है। हालांकि, यह जरूरी है कि विवाह के लिए अधिनियम की बुनियादी शर्तें मसलन उम्र, मानसिक क्षमता और जीवित जीवनसाथी का न होना आदि पूरी की जाएं। इससे राज्य के लोगों की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक आजादी सुरक्षित रहेगा। जबकि, विवाह के मूलभूत कानूनी मानकों का पालन भी सुनिश्चित होता है।अधिनियम पारंपरिक विवाह समारोहों को यथावत मान्य करता है, फिर भी यह कुछ ऐसे कानूनी प्रावधान रखता है जिनके तहत विवाह अमान्य या रद्द करने योग्य घोषित किया जा सकता है। अधिनियम लागू होने के बाद हुए किसी विवाह में ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो अधिनियम की मुख्य शर्तों का उल्लंघन करते हैं तो विवाह अमान्य माना जाएगा। इनमें विवाह के समय किसी पक्षकार का पहले से जीवित जीवनसाथी होना, मनोवैधानिक रूप से वैध सहमति देने में असमर्थता या निषिद्ध संबंधों के दायरे में विवाह शामिल हैं।
ऐसी स्थिति में दोनों पक्षकारों में से कोई भी अदालत में याचिका दायर करके विवाह को शून्य घोषित करने की मांग कर सकता है। यही नहीं यदि कोई विवाह अमान्य या रद्द करने योग्य घोषित भी कर दिया जाए, तब भी उससे जन्म लेने वाले बच्चे को वैध माना जाता है।