मां महागौरी व्रत कथा।। Mahagauri Vrat Katha

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मां महागौरी व्रत कथा

मां महागौरी व्रत कथा –मां महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार  भोलेनाथ ने मां पार्वती को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और मां पार्वती तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए शिवजी उनके पास पहुंचते हैं,
वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं।

पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत
कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है,
उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।

एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं
तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।

मां महागौरी रूप

महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं।
देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं
“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।

महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है
और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं
क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।