
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को वैश्विक मंच से आतंकवाद पर कड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के “पीड़ित” और “गुनहगार” को एक समान समझना बेहद खतरनाक है। जयशंकर ने चेतावनी दी कि जब कोई सदस्य देश खुले तौर पर उन संगठनों का समर्थन करता है जो नृशंस आतंकी हमले करते हैं, तो इससे वैश्विक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठते हैं।
जयशंकर ने कहा, “यदि आतंकवाद के पीड़ितों और गुनहगारों को वैश्विक रणनीति के नाम पर बराबरी से देखा जाए, तो यह दुनिया के लिए बेहद निष्ठुर स्थिति होगी।” उन्होंने इशारों में कहा कि यूएन सुरक्षा परिषद के एक मौजूदा सदस्य देश ने उस संगठन को संरक्षण दिया है जिसने जम्मू-कश्मीर के पाहलगाम टूरिस्ट हमले की जिम्मेदारी ली थी।
उन्होंने कहा कि आज संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली पहले से कहीं अधिक ध्रुवीकृत हो चुकी है और निर्णय-प्रक्रिया में ठहराव देखा जा रहा है। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि बदलाव का रास्ता बंद नहीं है, बल्कि इस समय बहुपक्षीयता (multilateralism) के प्रति प्रतिबद्धता और अधिक जरूरी हो गई है।
भारत का रुख और संकेत
जयशंकर की यह टिप्पणी भारत के लंबे समय से चले आ रहे रुख को दोहराती है कि पाकिस्तान “राज्य-प्रायोजित आतंकवाद” को बढ़ावा देता है। विश्लेषक इसे भारत की ओर से एक स्पष्ट संकेत मान रहे हैं कि अब सिर्फ औपचारिक बयानों से आगे बढ़कर ठोस वैश्विक कार्रवाई की जरूरत है।
संभावित प्रभाव
- भारत आतंकवाद समर्थक नेटवर्क और उनके संरक्षकों के खिलाफ अपने कूटनीतिक दबाव को और तेज कर सकता है।
- यूएन सुधारों और बहुपक्षीय संस्थाओं के पुनर्गठन को लेकर भारत की आवाज और बुलंद हो सकती है।
- वैश्विक सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी रणनीतियों में भारत की भूमिका और दिशा अब पहले से अधिक स्पष्ट दिखाई दे रही है।
भारत अब “शब्दों से नहीं, कार्रवाई से” वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की मांग कर रहा है।













