किसी भी साधना को सफल बनाने के लिए हमारे यहां यज्ञ का विधान है. यज्ञ विधान को विधि-विधान से संपन्न करने के लिए यज्ञ-कुण्डों का विशेष महत्व होता है. मूल रूप से यज्ञ कुंड आठ प्रकार के होते हैं, जिनका प्रयोग विशेष प्रयोजन हेतु ही किया जाता है. हर यज्ञ, कुण्ड की अपना एक विशेष महत्व होता है और उस यज्ञ कुंड के अनुरूप व्यक्ति को उस यज्ञ का पुण्य फल प्राप्त होता है. आइए जीवन से जुड़े तमाम दोषों को दूर करने और धन, वैभव, शत्रु, संहार, विश्व शांति, आदि की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए अलग-अलग कुण्डों का महत्व जानते हैं.
सनातन परंपरा में धार्मिक-आध्यात्मिक कार्यों के दौरान अनेक प्रकार के यज्ञों का विधान बताया गया है. दु:खों को दूर करने और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के यज्ञ कुण्ड और उनका महत्व जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
▪️जप के बाद कितना ,कैसे हवन किया जाता हैं
▪️कितना हवन किया जाना हैं
▪️हवन करते समय किन किन बातों का ध्यान रखना हैं ▪️सरल उपाय से हवन कैसे करे
▪️किस दिशा की ओर मुंह करके बैठना हैं
▪️किस प्रकार की अग्नि का आह्वान करना हैं
▪️किस प्रकार की हवन सामग्री का उपयोग करना हैं
▪️दीपक कैसे और किस चीज का लगाना हैं
▪️आवश्यक सावधानी
यज्ञ कुंड मुख्यत: आठ प्रकार के होते हैं और सभी का प्रयोजन अलग अलग होता हैं ।
1. योनी कुंड – योग्य पुत्र प्राप्ति हेतु ।
2. अर्ध चंद्राकार कुंड – परिवार मे सुख शांति हेतु ।
(पतिपत्नी दोनों को एक साथ आहुति देना पड़ती हैं )
3. त्रिकोण कुंड – शत्रुओं पर पूर्ण विजय हेतु ।
4. वृत्त कुंड – जन कल्याण और देश मे शांति हेतु ।
5. सम अष्टास्त्र कुंड – रोग निवारण हेतु ।
6. सम षडास्त्र कुंड –शत्रुओ मे लड़ाई झगडे करवाने हेतु
7. चतुष् कोणा स्त्र कुंड – सर्व कार्य की सिद्धि हेतु ।
8. पदम कुंड – तीव्रतम प्रयोग और मारण प्रयोगों से बचने हेतु ।
तो आप समझ ही गए होंगे की सामान्यत हमें चतुर्वर्ग के आकार के इस कुंड का ही प्रयोग करना हैं. सवा लाख मंत्र जाप के बाद कितना हवन किया जाए. शास्त्रीय नियम तो दसवे हिस्सा का हैं। इसका सीधा मतलब की एक अनुष्ठान मे 1,25,000 लाख जप या 1250 माला मंत्र जप अनिवार्य हैं और इसका दशवा हिस्सा होगा 1250/10 =125 माला हवन मतलब लगभग 12,500 आहुति ।
(यदि एक माला मे 108 की जगह सिर्फ100 गिनती ही माने तो) और एक आहुति मे मानलो 15 second लगे तब कुल 12,500 x15 = 187500 second मतलब 3125 minute मतलब 52 घंटे लगभग।
तो किसी एक व्यक्ति के लिए इतनी देर आहुति दे पाना क्या संभव हैं ,तो क्या अन्य व्यक्ति की सहायता ली जा सकती हैं वह सभी शक्ति मंत्रो से दीक्षित हो या अपने ही गुरु भाई बहिन हो तो अति उत्तम हैं। जब यह भी न संभव हो तो गुरुदेव के श्री चरणों मे अपनी असमर्थता व्यक्त कर मन ही मन उनसे आशीर्वाद लेकर घर के सदस्यों की सहायता ले सकते हैं ।
यदि दसवां हिस्सा संभव न हो तो शतांश हिस्सा भी हवन किया जा सकता हैं। मतलब 1250/100 = 12.5 माला मतलब लगभग 1250 आहुति = लगने वाला समय = 5/6 घंटे
यह एक साधक के लिए संभव हैं।
स्रुक स्रुव :- ये आहुति डालने के काम मे आते हैं। स्रुक 36 अंगुल लंबा और स्रुव 24 अंगुल लंबा होना चाहिए । इसका मुंह आठ अंगुल और कंठ एक अंगुल का होना चाहिए । ये दोनों स्वर्ण रजत पीपल आमपलाश की लकड़ी के बनाये जा सकते हैं ।
हवन किस चीज का किया जाना चाहिये
▪️शांति कर्म मे पीपल के पत्ते, गिलोय, घी का ।
▪️पुष्टि क्रम में बेलपत्र चमेली के पुष्प घी ।
▪️स्त्री प्राप्ति के लिए कमल ।
▪️दरिद्र्यता दूर करने के लिये दही और घी का ।
▪️आकर्षण कार्यों में पलाश के पुष्प या सेंधा नमक से ।
▪️वशीकरण मे चमेली के फूल से ।
▪️उच्चाटन मे कपास के बीज से ।
▪️मारण कार्य में धतूरे के बीज से हवन किया जाना चाहिए ।
दिशा क्या होना चाहिए
साधरण रूप से जो हवन कर रहे हैं वह कुंड के पश्चिम मे बैठे और उनका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिये ।
यदि षट्कर्म किये जा रहे हो तो शांती और पुष्टि कर्म में पूर्व दिशा की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे। आकर्षण मे उत्तर की ओर हवन कर्ता का मुंह रहे और यज्ञ कुंड वायु कोण में हो। विद्वेषण मे नैऋत्य दिशा की ओर मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण में रहे। उच्चाटन मे अग्नि कोण में मुंह रहे यज्ञ कुंड वायु कोण मे रहे। मारण कार्यों में– दक्षिण दिशा में मुंह और दक्षिण दिशा में हवन कुंड हो।
किस प्रकार के हवन कुंड का उपयोग किया जाना चाहिए
▪️ शांति कार्यों मे स्वर्ण, रजत या ताबे का हवन कुंड होना चाहिए ।
▪️ अभिचार कार्यों मे लोहे का हवन कुंड होना चाहिए।
▪️ उच्चाटन मे मिटटी का हवन कुंड ।
▪️ मोहन् कार्यों मे पीतल का हवन कुंड ।
▪️ ताबे के हवन कुंड में प्रत्येक कार्य में उपयोग किया जा सकता है ।
. किस नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चाहिए
▪️ शांति कार्यों मे वरदा नाम की अग्नि का आवाहन किया जाना चहिये ।
▪️ पुर्णाहुति मे शतमंगल नाम की ।
▪️ पुष्टि कार्योंमे बलद नाम की अग्नि का ।
▪️ अभिचार कार्योंमे क्रोध नाम की अग्नि का ।
▪️ वशीकरण मे कामद नाम की अग्नि का आहवान किया जाना चहिये
कुछ ध्यान योग बाते :-
▪️ नीम या बबुल की लकड़ी का प्रयोग ना करें ।
▪️ यदि शमशान मे हवन कर रहे हैं तो उसकी कोई भी चीजे अपने घर मे न लाये ।
▪️ दीपक को बाजोट पर पहले से बनाये हुए चन्दन के त्रिकोण पर ही रखे ।
▪️ दीपक मे या तो गाय के घी का या तिल का तेल का प्रयोग करें ।
▪️ घी का दीपक देवता के दक्षिण भाग में और तिल का तेल का दीपक देवता के बाए ओर लगाया जाना चाहिए ।
▪️ शुद्ध भारतीय वस्त्र पहिन कर हवन करें ।
▪️ यज्ञ कुंड के ईशान कोण मे कलश की स्थापना करें ।
▪️ कलश के चारो ओर स्वास्तिक का चित्र अंकित करें ।
▪️ हवन कुंड को सजाया हुआ होना चाहिए ।
हवन चाहे वैदिक हो या तांत्रिक उसके लिए हवन कुंड एवं वेदी का निर्माण एक आवश्यक अंग होता है l कहा गया हैं कुंड, वेदी और निमंत्रित देवी देवताओं कि तथा यज्ञ मण्डप की पूर्ण रक्षा करता है, उसे मंडल कहा जाता है l
यज्ञ कि भूमि का चुनाव बहुत जरूरी है l
उत्तम भूमि
नदियों के किनारे, संगम, देवालय, उद्यान, पर्वत, गुरु ग्रह और ईशान में बना हवन कुंड सर्वोत्तम माना गया है| फटी भूमि, केश युक्त और सर्प कि बाम्बी वाली भूमि वर्जित है| हवन कुंड में तीन सीढिया होती हैं| इन सीढ़ियो को ”मेखला” भी कहा जाता है| सबसे ऊपर कि मेखला सफ़ेद मध्य कि मेखला लाल और नीचे कि मेखला काले रंग कि होती है l इन तीन मेखलाओं में तीन देवताओं का निवास माना जाता है| उपर विष्णु मध्य मैं ब्रह्मा तथा नीचे शिव का वास् होता है|
जब हम आहूतियां डालते हैं तो कुछ सामग्री बाहर गिर जाती है l हवन के उपरांत उस सामग्री को कुछ लोग पुन: हवन कुंड मैं डाल देते हैं,मित्रों! ऐसा कभी नहीं करना चाहिये कहा गया है ऊपर गिरी सामग्री को छोड़ कर शेष दो मेखलाओं पर गिरी हुई हवन सामग्री वरुण देवता का हिस्सा होती है,इसलिये उसे वरुण देवता को अर्पित कर देना चाहिए अग्नि देवता को नहीं l हाँ, ऊपरकी मेखला पर गिरी सामग्री को पुन: हवन कुंड में ड़ाल देना चाहये l
वैदिक प्रयोग के साथ ही साथ तंत्र में भी विभिन्न यंत्र प्रयोग मैं लाये जाते हैं l उनमे से कुछ त्रिकोण होते हैं l तंत्र मार्ग मैं त्रिकोण कुंड का प्रयोग होता है|
हवन कुंड अनेक प्रकार के होते हैं जैसे – वृत्ताकार ,वर्गा कार,त्रिकोण और अष्ट कोण आदि| सभी प्रकार के यज्ञों, मानव कल्याण से संबंधित सभी प्रकार के हवनों ”मृगी” मुद्रा का प्रयोग करना चाहिए| हवन का यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि किसी भी प्रकार से हवन सामग्री कुंड मैं डाल दी जाये| हवन में शास्त्र आज्ञा, आचार्य आज्ञा और गुरु आज्ञा का पालन करना जरूरी होता है|
आप इस बात पर विश्वास रखें मेरे करने से कुछ नहीं होगा गुरु करे सो होए| हवन रोग नाशक, ताप नाशक, वातावरण को शुद्ध करने वाला यज्ञ से ओक्सिजन कि मात्रा बढ़ जाती है| हमे यह ज्ञान अपने प्राचीन ग्रंथों और ऋषिओं से प्राप्त होता है |
आहुति के मान से मण्डप-निर्णय होने के पश्चात वेदिका के बाहर तीन प्रकार से क्षेत्र का विभाग करके मध्यभाग में पूर्व आदि दिशाओं को कल्पना करे । फिर आठों दिशाओं में-
आठ दिशाओं के नाम इस प्रकार हैं-
पूर्व अग्नि, दक्षिण निर्ऋति, पश्चिम, वायव्य, उत्तर तथा ईशान ।
क्रमशःचतुरस्र, योनि अर्धचन्द्र, त्र्यस्र, वर्तुल, षडस्र, पङ्कज और अष्टास्रकुण्ड की स्थापना सुचारु रूप से करे तथा मध्य में आचार्य कुण्ड वृत्ताकार अथवा चतुरस्र बनाये ।
पचास अथवा सौ आहुति देनी हो तो कुहनी से कनिष्ठा तक के माप का (१ फुट ३ इंच) कुण्ड बनाना, एक हजार आहुति में एक हस्तप्रमाण (१ फुट ६ इंच) का, एक लक्ष आहुति में चार हाथ का (६ फुट), दस लक्ष आहुति में छः हाथ (९ फुट) का तथा कोटि आहुति में ८ हाथ का (१२ फुट) अथवा सोलह हाथ का कुण्ड बनाना चाहिये ।
भविष्योत्तर पुराण में पचास आहुति के लिये मुष्टिमात्र का भी र्निदेश है । इस विषय में शारदा तिलक, स्कन्दपुराण आदि का सामान्य मतभेद भी प्राप्त होता है । कुण्ड के निर्माण में अङ्गभूत वात,कण्ठ, मेखला तथा नाभि का प्रमाण भी आहुति एवं कुण्ड की आकृति के आधार से निश्चिम किये जाते हैं ।
इस कार्य में न्यूनाधिकार होने से रोगशोक आदि विघ्न आते हैं । अतः केवल सुन्दरता पर ही दृष्टि न रख कर शिल्पी के साथ पूर्ण परिश्रम से शास्त्रानुसार कुण्ड तैयार करवाना चाहिये ।
यदि कुण्ड करने का सार्मथ्य न हो, तो सामान्य हवनादि में विद्वान चार अंगुल ऊँचा, अथवा एक अंगुल ऊँचा एक हाथ लम्बा-चौड़ा सुवर्णाकार पीली मिट्टी अथवा वालू- रेती का सुन्दर स्थण्डिल बनाये ।
इसके अतिरिक्त ताम्र के और पीतल के भी यथेच्छ कुण्ड बाजार में प्राप्त होते हैं । उनमें प्रायः ऊपर मुख चौड़ा होता है और नीचे क्रमशः छोटा होता है । वह भी शास्त्र की दृष्टि से ग्राह्य है । नित्य हवन-बलिवैश्व-देव आदि के लिए अनेक विद्वान इन्हें उपयोग में लेते हैं ।