अरावली अवैध खनन और शहरीकरण के खिलाफ दिल्ली-हरियाणा-राजस्थान में उग्र विरोध

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उत्तर भारत के ‘फेफड़े’ कहे जाने वाले अरावली पर्वत श्रृंखला को बचाने के लिए दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान समेत कई राज्यों में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला तेज हो गया है। पर्यावरणविदों, स्थानीय समुदायों, युवाओं और सामाजिक संगठनों ने एकजुट होकर अरावली के तेजी से हो रहे विनाश के खिलाफ आवाज बुलंद की है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि अवैध खनन, अनियंत्रित शहरीकरण और नियमों में संभावित ढील के कारण दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।

क्यों भड़की जनता?

प्रदर्शनों के पीछे कई गंभीर कारण सामने आए हैं। राजस्थान और हरियाणा के सीमावर्ती इलाकों में प्रतिबंध के बावजूद बड़े पैमाने पर हो रहा अवैध खनन पहाड़ियों को समतल मैदान में बदल रहा है। वहीं, अरावली के वन क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते फार्म हाउस, रिहायशी कॉलोनियां और अतिक्रमण वन्यजीवों के प्राकृतिक गलियारों को तोड़ रहे हैं। इसके अलावा, हालिया वन संरक्षण कानूनों में किए गए बदलावों को लेकर यह आशंका भी जताई जा रही है कि इससे कॉर्पोरेट और रियल एस्टेट कंपनियों के लिए पहाड़ियों पर कब्जा आसान हो सकता है।

थार के बढ़ने का खतरा

पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि थार रेगिस्तान को दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा की ओर बढ़ने से रोकने वाली एक प्राकृतिक ढाल है। यदि अरावली कमजोर होती है, तो उत्तर भारत में धूल भरी आंधियों की तीव्रता बढ़ेगी और भूमिगत जल स्तर में गंभीर गिरावट आ सकती है। इसी खतरे को देखते हुए प्रदर्शनकारी पूरे अरावली क्षेत्र को ‘इको-सेंसिटिव जोन’ घोषित करने और सभी तरह के निर्माण कार्यों पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं।

राज्यों में आंदोलन की तस्वीर

  • हरियाणा: गुरुग्राम और फरीदाबाद में ‘अरावली बचाओ’ अभियान के तहत मानव श्रृंखलाएं बनाई गईं, जिनमें स्कूली बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ने हिस्सा लिया।
  • राजस्थान: अलवर और झुंझुनू में आदिवासी समुदायों और किसानों ने पहाड़ियों के कटाव और खनन के खिलाफ महापंचायतें कीं।
  • दिल्ली: जंतर-मंतर पर पर्यावरण प्रेमियों ने धरना देकर अरावली में वनीकरण बढ़ाने और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को सख्ती से लागू करने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी अरावली में खनन और अवैध निर्माण को लेकर राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगा चुका है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि “पर्यावरण की कीमत पर विकास स्वीकार्य नहीं है।” इसके बावजूद जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई न होने से लोगों में गहरा असंतोष बना हुआ है।

अब सवाल यह है कि क्या सरकारें समय रहते अरावली को बचाने के लिए सख्त कदम उठाएंगी, या फिर विकास के नाम पर उत्तर भारत की यह प्राकृतिक जीवनरेखा इतिहास बनकर रह जाएगी।