रिटायर्ड जज सुरेंद्र कुमार यादव को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य का तीसरा उप लोकायुक्त नियुक्त किया है. सोमवार को 62 वर्षीय यादव को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गई.उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने छह अप्रैल को यादव को राज्य का उप लोकायुक्त नियुक्त किया था.यह वही सुरेंद्र कुमार यादव हैं जिन्होंने लखनऊ स्थित विशेष न्यायालय (अयोध्या मामला) के पीठासीन अधिकारी रहते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी समेत सभी 32 अभियुक्तों को बरी करने का आदेश दिया था. बाबरी विध्वंस मामले में बरी होने वालों में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह भी शामिल थे.सीबीआई ने बाबरी विध्वंस मामले में अपने पक्ष में 351 गवाह और क़रीब 600 दस्तावेज़ पेश किए थे लेकिन सुरेंद्र यादव ने अपने फ़ैसले में कहा था कि यह घटना ‘पूर्व नियोजित’ नहीं थी.
अपना फ़ैसला सुनाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद का ढाँचा अभियुक्तों ने नहीं बल्कि ‘शरारती तत्वों’ ने गिराया था और इस मामले में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ कोई ‘ठोस सबूत’ नहीं है. सुरेंद्र यादव ने यह भी कहा कि अदालत में सबूत के तौर पर जो वीडियो पेश किए गए उनसे छेड़छाड़ हुई थी. उन्होंने 2300 पन्नों के अपने फ़ैसले में किसी मीडिया रिपोर्ट, अख़बार या वीडियो कैसेट को सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया और न ही इस पर विचार किया.अब सुरेंद्र यादव के उप लोकायुक्त के तौर पर नियुक्ति को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा गर्म है. ट्विटर पर एक वर्ग उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार के इस फ़ैसले को सुरेंद्र यादव के बाबरी फ़ैसले से जोड़कर देख रहा है.
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय में सचिव और प्रसार भारती के सीईओ रह चुके जवाहर सरकार ने ट्वीट किया, “बीजेपी सरकार ने बेशर्मी से उस जज को इतनी जल्दी इनाम दे दिया जिन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था. वो अब उत्तर प्रदेश के उप लोकायुक्त होंगे.
लेखक और इतिहासकार राजेश कोच्चर ने लिखा, “जजों को पेंशन के तौर पर पूरी तनख़्वाह के साथ रिटायर किया जाना चाहिए और रिटायरमेट के बाद उनके किसी भी सार्वजनिक पर पर आने पर रोक लगा देनी चाहिए.”पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के पखानपुर गांव के रामकृष्ण यादव के घर पैदा हुए सुरेंद्र कुमार यादव 31 बरस की उम्र में राज्य न्यायिक सेवा के लिए चयनित हुए थे.
फ़ैज़ाबाद में एडिशनल मुंसिफ़ के पद की पहली पोस्टिंग से शुरू हुआ उनका न्यायिक जीवन ग़ाज़ीपुर, हरदोई, सुल्तानपुर, इटावा, गोरखपुर के रास्ते होते हुए राजधानी लखनऊ के ज़िला जज के ओहदे तक पहुँचा.अगर उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के जज की ज़िम्मेदारी न मिली होती तो वह सितंबर 2019 के ही रिटायर हो गए होते.