नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन स्थित प्राचीन महाकालेश्वर मंदिर के शिवलिंग में हो रहे क्षरण को रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए है। मंगलवार को न्यायालय की एक पीठ ने कहा है कि मंदिर के शिवलिंग पर कोई भी भक्त पंचामृत नहीं चढ़ाएगा, बल्कि वह शुद्ध दूध से पूजा करेंगे।
अदालत ने मंदिर कमिटी से कहा है कि वह भक्तों के लिए शुद्ध दूध का इंतजाम करेंगे और ये सुनिश्चित किया जाए कि कोई भी अशुद्ध दूध शिवलिंग पर न चढ़ाएं। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के शिवलिंग के संरक्षण के लिए तमाम आदेश पारित किए हैं।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बैंच ने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर मामले में फैसला सुनाया। जस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने कार्यकाल के आखिर में ये फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा कि भगवान शिव की कृपा से ये आखिरी फैसला भी हो गया।
न्यायालय की पीठ ने कहा कि श्रृद्धालुओं द्वारा शिवलिंगम पर दही, घी और शहद मलने से भी क्षरण होता है और बेहतर होगा कि मंदिर समिति श्रृद्धालुओं को सीमित मात्रा में शुद्ध दूध ही अर्पित करने की अनुमति दें।
शीर्ष अदालत ने मंदिर समिति को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि भस्म आरती के दौरान प्रयुक्त होने वाली भस्म की पीएच गुणवत्ता में सुधार किया जाए और शिवलिंग को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जाए।
पीठ ने कहा कि यदि कोई श्रृद्धालु ऐसा करता है तो उसे ऐसा करने से नहीं रोकने के लिए वहां मौजूद पुजारी या पुरोहित जिम्मेदार होंगे। मंदिर की ओर से होने वाली पारंपरिक पूजा और अर्चना के दौरान शिवलिंग को मलने के अलावा कोई भी ऐसा नहीं करेगा।
पीठ ने इस मंदिर से संबंधित मामले में सुनाए गए अपने फैसले में विशेषज्ञों की समिति की रिपोर्ट का भी हवाला दिया। इस समिति में पुरातत्व विभाग और भूवैज्ञानिको के अलावा मंदिर समिति के सदस्य भी शामिल थे।
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पिछले साल 19 जनवरी को विशेषज्ञों का दल मंदिर गया था
पीठ ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि पिछले साल 19 जनवरी को विशेषज्ञों का दल मंदिर गया था और उसने अपनी रिपोर्ट में शिवलिंग में क्षरण होने का उल्लेख किया है।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि विशेषज्ञ समिति मंदिर का दौरा करेगी और 15 दिसंबर, 2020 तक अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। न्यायालय ने कहा कि यह समिति साल में एक बार मंदिर का दौरा करेगी और अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।
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शिवलिंग संरक्षण के लिए इन निर्देशों का करना होगा पालन
श्रद्धालुओं को शिवलिंग पर कोई भी पूजन सामग्री लेपने और रगड़ने की इजाजत नहीं होगी।
भस्म आरती के समय चढ़ने वाली भस्म का PH बैलेंस उचित रखा जाए।
कमिटी शिवजी के श्रृंगार में लगने वाली मुंड माला और सर्प कर्ण का वजन और कम करने का प्रयास करे। यह भी प्रयास किया जाए कि यह सामग्री धातु की न हो या उन्हें शिवलिंग पर सीधे स्पर्श न किया जाए।
श्रद्धालुओं को शिवलिंग पर दही, घी, मधु जैसी सामग्री के लेप से रोका जाए। सिर्फ थोड़ी मात्रा में शुद्ध दूध चढ़ाने दिया जाए। मंदिर प्रशासन शुद्ध दूध की उपलब्धता सुनिश्चित करे। दही, मधु, घी आदि का लेप सिर्फ पुजारी परंपरागत पूजा के समय करें।
सभी पुजारी, पुरोहित, जनेउपति आदि सुनिश्चित करें कि श्रद्धालु कोई सामग्री शिवलिंग पर लेप न करें। अगर कोई श्रद्धालु ऐसा करता है तो उसे साथ लाने वाले पुरोहित को जवाबदेह माना जाएगा।
गर्भ गृह की सारी पूजा अर्चना की 24 घंटे वीडियो रिकॉर्डिंग हो। वीडियो को 6 महीने तक सुरक्षित रखा जाए। अगर कभी कोई पुजारी, पुरोहित नियमों के खिलाफ काम करता दिखे, तो कमिटी उस पर उचित कार्रवाई करें।
कोई श्रद्धालु शिवलिंग पर पंचामृत न उढ़ेले। इसे सिर्फ परंपरागत पूजा के समय पुजारी डालें।
बेंच की तरफ से जारी किए गए आदेश के मुख्य बिंदु
विशेषज्ञ कमिटी 15 दिसंबर तक शिवलिंग और मंदिर के संरक्षण पर रिपोर्ट दे। साथ ही चंद्रनागेश्वर मंदिर पर भी रिपोर्ट दी जाए।
कमिटी हर साल मंदिर का सर्वे कर कोर्ट को रिपोर्ट दे।
कमिटी कोटि तीर्थ कुंड का फिल्टर किया हुआ साफ पानी श्रद्धालुओं को उपलब्ध कराए।
सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ढांचे की सुरक्षा के लिए 6 महीने में रिपोर्ट दे। इसके लिए जरूरी 43 लाख रुपए का भुगतान केंद्र सरकार करे।
मंदिर का मूल स्वरूप वापस लाया जाए। उसमें जोड़ी गई आधुनिक चीजों, रंग आदि को हटाया जाए।
मंदिर से 500 मीटर के दायरे में अतिक्रमण हटाया जाए।
कोरोना काल में भी सुनिश्चित किया जाए कि पूजा के विधि-विधान को अच्छी तरह जानने वाले वरिष्ठ पुजारी ही इसे संपन्न करें।
मामला जनवरी में अगली सुनवाई के लिए लगाया जाए।