बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर सियासी घमासान, विपक्षी दलों की बैठक टली, चुनाव आयोग ने दी सफाई

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बिहार में मतदाता सूची के विशेष संशोधन अभियान को लेकर सियासी तापमान तेजी से बढ़ रहा है। चुनाव आयोग की ओर से राज्य में गहन मतदाता जांच अभियान चलाए जाने की घोषणा के बाद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। हालांकि, इस विषय पर प्रस्तावित चुनाव आयोग और विपक्षी दलों की बैठक फिलहाल स्थगित कर दी गई है।

विपक्ष ने मांगी थी बैठक, लेकिन नहीं हुई पुष्टि

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने 30 जून को आयोग को ई-मेल कर 2 जुलाई को तत्काल बैठक की मांग की थी। ई-मेल में भेजने वाले प्रतिनिधि ने खुद को कई विपक्षी दलों का अधिकृत प्रतिनिधि बताया था। इसके बाद चुनाव आयोग ने बैठक आयोजित करने की योजना बनाई, लेकिन जब किसी भी विपक्षी दल की ओर से बैठक में भागीदारी की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई, तो आयोग ने बैठक स्थगित करने का निर्णय लिया।

आयोग का स्पष्टीकरण, यह कानूनी प्रक्रिया है, राजनीतिक नहीं

चुनाव आयोग ने इस बीच मतदाता पंजीकरण से जुड़े नियमों पर एक स्पष्ट बयान जारी किया है। आयोग ने कहा कि, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति उसी विधानसभा क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजीकृत हो सकता है, जहां वह सामान्य रूप से निवास करता है, न कि केवल अपने स्थायी (मूल) पते पर।

आयोग ने यह भी बताया कि कुछ लोग जानबूझकर या अनजाने में अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में एक से अधिक वोटर आईडी बनवा लेते हैं, जो दंडनीय अपराध है। बिहार में चल रहा यह विशेष अभियान ऐसे फर्जी और दोहरे पंजीकरण की पहचान के लिए है।

नामों की व्यापक कटौती हो सकती है

कांग्रेस और विपक्षी दलों का कहना है कि इस प्रक्रिया की आड़ में बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से अन्यायपूर्ण तरीके से हटाए जा सकते हैं। उनकी मांग है कि इस अभियान की निगरानी पूर्ण पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ की जाए और राजनीतिक दलों को इसमें विश्वास में लिया जाए।

जहां एक ओर चुनाव आयोग इसे एक प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रिया बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से संदिग्ध मान रहा है। बैठक का स्थगित होना इस मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच संवादहीनता को दर्शाता है। आगामी दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आयोग विपक्ष को विश्वास में लेने की कोई नई कोशिश करता है या नहीं।