
दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमतें गिरकर 65 डॉलर प्रति बैरल तक आ चुकी हैं, लेकिन भारत में महंगाई से राहत मिलना अभी भी किसी सपने जैसा ही लग रहा है। 7 अप्रैल को केंद्र सरकार ने एक ओर जहां पेट्रोल और डीजल पर 2-2 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया, वहीं रसोई गैस सिलेंडर को 50 रुपये महंगा करने का आदेश भी जारी कर दिया है।
इस दोहरी मार से आम आदमी की जेब पर बोझ और बढ़ेगा। सरकार ने हालांकि यह स्पष्ट किया है कि पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी, क्योंकि यह वृद्धि अंतरराष्ट्रीय बाजार में आई गिरावट के कारण होने वाले संभावित मूल्य कटौती के विरुद्ध समायोजित की जाएगी।
आधिकारिक सूचना के अनुसार, अब पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया है। यह नई दरें 8 अप्रैल 2025 से लागू होंगी। सरकार का कहना है कि ये कदम वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में गिरावट से पैदा हुए वित्तीय अंतर को संतुलित करने के लिए लिया गया है, जिससे राजकोषीय घाटा नियंत्रित रखा जा सके।
यह पहला मौका नहीं है जब अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट के समय भारत में उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया हो। 2014 से 2016 के बीच ऐसे 9 मौकों पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई, जिससे सरकार का राजस्व 99,000 करोड़ से बढ़कर 2.42 लाख करोड़ रुपये हो गया था।
2020 में भी महामारी के दौरान पेट्रोल-डीजल पर टैक्स में क्रमशः 13 और 16 रुपये की बढ़ोतरी की गई थी, जो बाद में अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते वापस ली गई।
जब दुनिया में तेल सस्ता हो रहा है, तब भारत में टैक्स और घरेलू गैस के दाम बढ़ना आम आदमी के लिए चिंता का कारण है। जनता को राहत की उम्मीद थी, लेकिन नीतिगत संतुलन के नाम पर फिर से बोझ जनता की जेब पर डाल दिया गया है।