दिल्ली में क्यों पड़ेगा दशहरे पर रावण का अकाल?

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दशहरे के दिन दिल्ली के गली कूचों तक में रावण के पुतले जलाए जाते हैं लेकिन इस साल वेस्ट दिल्ली में जगह की कमी के चलते रावणों के बनाने में कमी आई है। रावण बनाने वाले कारीगरों की मानें तो इस साल दिल्ली में रावणों का अकाल पड़ सकता है।

राजौरी गार्डन के पास ततारपुर में 1975 से रावण बनाए जा रहे हैं। पुतले बनाने का काम बाबा छुट्टन दास ने शुरू किया था। धीरे-धीरे और लोग भी रावण बनाने लगे। यहां बनाए गए रावण न केवल दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में बल्कि पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्यों में जाते हैं। यहां रावण बनाने वालों का दावा है कि अब भी ऑस्ट्रेलिया, कनाडा सहित कई देश ऐसे हैं, जहां छोटे साइज़ के रावण मंगवाए जाते हैं। रावण बनाने का काम टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन के साथ ततारपुर में 40 बरसों से चल रहा है।

ट्रैफिक जाम होने का हवाला देकर रावण वालों को मेन रोड से हटाकर सुभाष नगर के दो पार्क में जगह दी गई है। एक छतरी वाला पार्क और दूसरा बेरी वाला पार्क। रावण बनाने वाले करण का कहना है कि मात्र दो पार्कों में बहुत से बहुत 400 तक पुतले ही बन रहे हैं, जहां पहले डेढ़ से 2 हजार रावण बनते थे। इन्होंने बताया कि पहले 100 से सवा 100 लोग रावण बनाते थे, लेकिन इस बार मात्र दो जगहों में मुश्किल से 10 से 15 लोग रावण बना रहे हैं।

इस वजह से इस बार अंतिम समय में रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों का अकाल पड़ सकता है। छोटी जगह होने से संख्या के साथ साइज पर भी असर पड़ा है। रावण के पुतले देखने रवि नगर आई राखी पोद्दार का कहना है सरकार को इनके ऊपर ध्यान देना चाहिए। वैसे भी बिना रावण दहन के दशहरे का कोई महत्व नहीं है।

बिहार और असम से बास आते हैं

रावण बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कागज और कपड़ा तो दिल्ली में ही मिल जाता है, लेकिन बांस असम और बिहार से मंगवाए जाते हैं। वहीं कारीगरों को उत्तर प्रदेश और उड़ीसा से बुलाया जाता है।

50 फुट तक के रावण किए जाते हैं  तैयार

यहां एक से 50 फुट तक रावण बनाए जाते हैं, लेकिन स्पेशल ऑर्डर देने पर कारीगर 80 फुट के भी रावण बनाते हैं।