
केंद्र सरकार जल्द ही राष्ट्रीय सहकारिता नीति की घोषणा करने जा रही है, जो 2025 से 2045 तक प्रभावी रहेगी। यह नीति आज़ादी के शताब्दी वर्ष से पहले भारत को एक आदर्श सहकारी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।
नीति का उद्देश्य है सहकारिता को ग्राम स्तर तक मजबूत बनाना, ताकि ग्रामीण भारत में आर्थिक आत्मनिर्भरता और साझेदारी आधारित विकास को बढ़ावा मिल सके। नई नीति के तहत राज्यों को अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार सहकारिता नीति बनाने और लक्ष्य तय करने की छूट दी जाएगी। इससे नीति को जमीनी हकीकत के अनुसार लागू किया जा सकेगा।
नीति के प्रमुख उद्देश्य और प्राथमिकताएं
हर गांव में कम से कम एक सहकारी संस्था की स्थापना
राष्ट्रीय सहकारी डाटाबेस के जरिए उन गांवों की पहचान जहां सहकारी संस्थाएं नहीं हैं
छोटे किसानों और ग्रामीणों को सामूहिक पूंजी के माध्यम से आर्थिक ताकत देना
रोजगार सृजन और आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सहकारिता को मुख्य माध्यम बनाना
सरकार का मानना है कि सहकारिता सिर्फ संस्था निर्माण नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और समावेशी विकास का साधन है। अब तक देश के करोड़ों लोगों को घर, जल, शौचालय, गैस और स्वास्थ्य सुविधाएं मिल चुकी हैं — अगला लक्ष्य उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है, जिसमें सहकारिता अहम भूमिका निभाएगी।
यह डाटाबेस राष्ट्रीय से लेकर तहसील स्तर तक की सभी सहकारी संस्थाओं की विस्तृत जानकारी रखेगा। इससे यह जानने में मदद मिलेगी कि कहां संस्थाएं हैं और कहां नहीं। इसके आधार पर फंडिंग, प्रशिक्षण और योजनाएं लक्ष्य आधारित बन सकेंगी।
यह नीति सहकारिता क्षेत्र को संगठित, सशक्त और समावेशी बनाने की दिशा में निर्णायक पहल है। इसका उद्देश्य है कि सहकारिता केवल नीति का हिस्सा न होकर, जमीनी परिवर्तन का माध्यम बने। यह ग्रामीण भारत के आर्थिक भविष्य को सशक्त और सतत विकास की दिशा में ले जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हो सकता है।